गृह शांति का अर्थ घर की शांति होता है, उन ग्रहों की शांति नहीं जो हमारे कंट्रोल से बाहर है

 

 लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
विषय बहुत ही गंभीर है, कुछ अधिक ही विचारणीय है, लेकिन हर उस इंसान के लिए जरूरी है जो जीवन में इस पाखंड से बाहर निकलकर बिना द्वंद्व के जीवन जीना चाहते है, जो जीवन को निर्भीक होकर जीना चाहते है। ये पूरा खेल भय का है। महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने पाखंड के खिलाफ ध्वज उठाया था, और सनातन संस्कृति को सशक्त बनाने का अथक प्रयास किया था। हमे तो गृह की परिभाषा ही समझ में नहीं आती है, हम अपने घर की शांति के लिए पता नहीं क्योंकि दूसरे ग्रहों पर चले जाते है, हमारा पहला घर ये वसुधा है, ये पृथ्वी है, ये धरती है, उसके बाद हमारा थोड़ा छोटा घर ये हमारा गांव समाज है, उसके बाद हमारा घर आता है

जिसे हम गृह कहते है वो हमारा अपना अपना घर है, उसी की शांति की बात करते हुए हमे दूसरे ग्रहों की सैर करा दी जाती है। हम है कि गृह और ग्रह का अंतर ही नहीं समझ पाते है। हम अगर वैज्ञानिक तौर पर भी देखें तो जिन ग्रहों के बारे में हमे भ्रमित किया जाता है वो असल में ग्रह है ही नहीं। हमारे नव ग्रहों में चंद्रमा ग्रह नहीं है, राहु वा केतु ग्रह नहीं है फिर भी हमे बहका दिया जाता है। हम अब ऐसी दुनिया में जी रहे है जहां विज्ञान की बात होती है, लेकिन हम है कि विज्ञान पढ़ने के बाद भी पता नहीं क्यों पाखंड में चले जाते है। जब हम गृह शांति की बात करते है तो सबसे पहले हमें अपनी धरती मां को शांत वा संतुष्ट करना चाहिए, जिस प्रकार आजकल पृथ्वी पर चारों ओर जल प्रलय आई हुई है उसे देखते तो ऐसा लगता है जैसे हमारा बड़ा घर अशांत है जिसे हम अपना गृह मानते है, हमने अपने गृह को गंदगी से भर दिया है, हमने उसे अय्याशी वा अपने झूठे प्लेजर से भर दिया है, पूरे पहाड़ी को खोखला कर दिया है।

हमारी अपनी करतूतों की वजह से ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है, क्लाइमेट चेंज की बड़ी प्रॉब्लम खड़ी है, धरती माता का तापमान बढ़ता जा रहा है, पेड़ो को चारों ओर काटा जा रहा है, धरती के पेट को चीर कर सारे मिनरल निकालने का प्रयास किया जा रहा है और उन लोगों को संतुष्ट किया जा रहा है जिनके पेट बहुत बड़े है। प्लास्टिक की भरमार है, पूरी धरती को जहर या पेस्टीसाइड से भर दिया है। उसके उपरांत अपने गांवों में, शहरों में जोहड़ तालाब को खत्म किया जा रहा है, सारे जल श्रोतों को बर्बाद किया जा रहा है, उसके अगर और नीचे आए तो हमारा खुद का घर है जहां रिश्तों की मधुरता से अधिक षडयंत्र रचे जाते है, खुद के स्वार्थ से सभी रिश्तों को तबाह किया जा रहा है और हम अपने घर की शांति दूसरे ग्रहों में ढूंढ रहे है। अरे जिन ग्रहों का इस पृथ्वी पर ही कोई प्रभाव नहीं है, अगर है भी तो एक व्यक्ति विशेष पर कैसे प्रभाव होगा। अरे कितनी बेवकूफी भरी बाते हम करते है और उन पाखंडियों की सुनते है जिन्होंने एस्ट्रोनॉमी पढ़ी ही नहीं है। कोई मुझे बता सकता है कि राहु या केतु कौन से ग्रह है,


जिनकी बात हमे डराने के लिए की जाती है। मैने बड़े बड़े पंडितों को ये कहते हुए सुना है कि फलां व्यक्ति पर शनि ग्रह की साढ़े साती चल रही है, अरे भाई शनि ग्रह  किसी एक व्यक्ति को ढूंढकर उसी पर प्रभाव क्यों डालेगा, उसने शनि ग्रह का क्या बिगाड़ा है, या उसके शरीर में कोई ऐसे यंत्र है जो शनि ग्रह को अपनी ओर आकर्षित करेगा, या कोई भी ग्रह की अशांति किसी एक व्यक्ति को ही प्रभावित करेगी, ये कैसे संभव है। कोई ग्रह जो सौरमंडल में सूर्य की परिक्रमा कर रहा है वो अशांत कैसे हो सकता है और अगर अशांत हो भी जाए तो पूरे सौरमंडल में विघ्न नहीं डालेगा क्या। मैं यहां सभी कमजोर दिल के लोगों को तथा अस्थिर मन के व्यक्तियों को कहना चाहता हूँ कि दोस्तों अगर आपके घर में कोई दिक्कत है या कोई अशांति है तो वो आपके रिश्तों के कारण है, वो आपके कर्म की वजह से है, वो आपकी अनियमित गतिविधियों के कारण है, वो आपके जीवन शैली के कारण है, उन्हें सुधारने की जरूरत है, उन्हें ठीक करने की जरूरत है। अपने आपसी रिश्तों में मधुरता लाने की आवश्यकता है।

अपने मातापिता के रिश्तों के बीच आदर सत्कार लेकर आएं, भाई बहनों के रिश्तों में शालीनता लेकर आए, अपनी भाषा में शालीनता लेकर आए, अपने शब्दों में आकर्षण लेकर आए, जीवन में धैर्य से सुनने की कला विकसित करे, अपने आपसी संबंधों को सशक्त बनाएं। गृह शांति का सीधा सा अर्थ है कि जहां हम रह रहे है वहां शांति रहे, शांति तभी रहेगी जब सभी सदस्यों को संतुष्टि होगी, अन्यथा शांति नहीं हो सकती है, अगर सभी स्वार्थी हो गए तो गृह क्लेश ही रहेगा। ऐसी स्थिति में हमे अपने अपने रिश्तों की अहमियत तथा जिम्मेदारी वा जवाबदेही का एहसास होना चाहिए, तभी हर व्यक्ति की ओर ध्यान दिया जा सकेगा।

मेरा सभी से अनुरोध है कि साथियों हमारे बड़े बड़े महापुरुषों ने अपना जीवन खपाया है इस पाखंड से लड़ने के लिए। इस पाखंड व अवैज्ञानिकता में जीवन को तबाह मत करो,  इतना तो हम समझ ही सकते है, हमारे महापुरुषों में हमसे तो ज्यादा ही ज्ञान होगा, हमसे तो ज्यादा ही तप होगा, हमसे तो ज्यादा ही परिश्रम किया होगा, हमसे तो ज्यादा ही सत्य पर चलने वाले होंगे, हमसे तो ज्यादा ही इस प्रकृति का ज्ञान होगा, इसलिए उनका आदर करते हुए ही हम ऐसे पाखंड से बचने के लिए कुछ तो अपनी जिम्मेदारी निभाएं। एक पिता की क्या जिम्मेदारी है, एक मां की क्या जिम्मेदारी है, एक बुजुर्ग की क्या जिम्मेदारी है, एक विद्यार्थी की क्या जिम्मेदारी है और एक बच्चे की क्या जिम्मेदारी है, एक शिक्षक की क्या जिम्मेदारी है, इसका अहसास सभी को होना चाहिए। गृह शांति आपसी रिश्ते, ईमानदारी तथा मेहनत से तय होगी। जिन ग्रहों की हम बात करते है वो तो हमारे किसी के हाथ में नहीं है, क्या कोई रिमोट है जो शनि ग्रह को कंट्रोल कर सकें, क्या कोई रिमोट है जो मंगल ग्रह को कंट्रोल कर सकें, क्या कोई रिमोट है जो बृहस्पति ग्रह को कंट्रोल कर सके, और वो भी कुछ पाखंडी लोगों द्वारा, कैसी विडंबना है हमारी युवा पीढ़ी के सामने, जिन्हे वैज्ञानिक बनाना था,

उन्हें कर्मकांडी बनाया जा रहा है, जिन्हे मेहनती बनाना था उन्हें आलसी बनाया जा रहा है। अगर सौरमंडल के किसी भी ग्रह को ऐसे ही किसी भी व्यक्ति द्वारा कंट्रोल किया जाने लगे तो फिर ये स्पेस में जाने वाले सभी कार्यक्रम बंद कर देने चाहिए क्योंकि हमने तो कितने ही पैसे अपने मंगलयान पर खर्च किए तब जाकर कुछ थोड़ी बहुत जानकारी मिल पाई थी। विश्व के कितने ही एस्ट्रोनॉट स्पेस में जाते है, अपनी जान जोखिम में डालते है, फिर तो इन बुझा करने वालों से ही हर ग्रह का हाल पूछ लेना चाहिए। हमने गृह शांति को भी ग्रह शांति का रूप दे दिया, क्योंकि एक गृह की शांति का तो सीधा उपाय है परंतु एक ग्रह की शांति जो हमारे हाथ में ही नहीं है, उसमें ठगी के सिवाय कुछ नहीं है। अरे हमे तो युवाओं को सशक्त बनाना था परंतु बना रहे कमजोर, क्योंकि हर व्यक्ति बिना कुछ किए सब कुछ पाना चाहते है और ऐसा संभव नहीं है।

युवा दोस्तों, ये पाखंड केवल स्वार्थ वा भय का खेल है इसे वैज्ञानिक तरीकों से समझे। जीवन में संबंधों को समझे तथा अपनी जिम्मेदारी को निभाने के लिए खूब परिश्रम करे, मेहनत करें, अपनी जवाबदेही का निर्वाहन करना सीखे। विद्यार्थी हो तो खूब पढ़े, किसान हो तो खेत में काम करो, मां हो तो बच्चों की परवरिश बेहतर ढंग से करो,पिता जो तो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दो, स्वास्थ्य दो, उनमें अच्छे संस्कार डालो, अपनी तुच्छ सी लालच में बच्चों को बर्बाद मत करो। सभी ये बात समझ ले कि कोई भी वस्तु मुफ्त नहीं मिलती है उसके लिए कुछ तो खपना पड़ता है जो बहुत कीमती है या तो वो समय हो सकता है, या वो विवेक हो सकता है, या वो रिश्ते हो सकते है या फिर वो आपसी समरसता हो सकती है या फिर खुद की स्वतंत्रता को दांव पर लगाना पड़ेगा, समझ आपकी है, इसे समझने के लिए।
जय हिंद, वंदे मातरम