चिकित्सकों को अपने कार्य क्षेत्र में कुछ गतिविधियों को करुणामय तरीके से "ना " कहने की जरूरत है

 

mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट काउंसलर

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वैसे तो डॉक्टर्स को भगवान का रूप माना जाता है, लोग चिकित्सकों का न केवल आदर सम्मान करते है बल्कि उन्हें जीवन देने वाला भी समझते है। कोई भी व्यक्ति चिकित्सक के पास जाकर अपनी सभी प्रकार की तकलीफ इसलिए बताते है क्योंकि वो उनके ऊपर विश्वास करते है और यही समझते है उनका इलाज सही ढंग से तथा किफायती तरीके से होगा। जैसे शिक्षा के क्षेत्र को किसी व्यवसाय के रूप में नहीं देखा जाता है, उसी प्रकार चिकित्सा का क्षेत्र भी सेवा  ही मानी जाती है लेकिन कुछ माननीय चिकित्सक खुद को माननीय कहलाने का कार्य नहीं करते है क्योंकि वो सेवा के इस क्षेत्र को शुद्ध मुनाफे के व्यवसाय की तरह बना देते है।

जीवन में व्यक्ति कम पढ़ा लिखा हो तो जीवन जिया जा सकता है, अधिक धन दौलत भी न हो तो भी जीवन चल सकता है, अगर रहने को घर भी न हो तो भी किसी तरह किराए पर रहकर भी जीवन यापन हो जाता है, किसी  वस्तु की गारंटी होने पर भी अगर वो खराब हो जाए तो भी अधिक फर्क नहीं पड़ता है, लेकिन अगर कोई महानुभाव जीवन के साथ ही खिलवाड़ कर दे, तो फिर तो सबकुछ खत्म ही हो जाता है, या किसी प्रकार की भूल भी हो जाए तो भी जीवन जीना दूभर हो जाता है। इसीलिए चिकित्सक को ईश्वर के समान जीवन का रक्षक माना जाता है। अगर डॉक्टर और मरीज के बीच इतना बड़ा रिश्ता होने के बावजूद भी कोई मरीज के साथ किसी भी प्रकार का धोखा, या खिलवाड़ करें, या किसी भी प्रकार का झूठ बोलें, वा लूटने का कार्य करें तो इससे तो बड़ी समस्या तो कोई हो ही नहीं सकती है।

हम अक्सर देखते है कि कुछ चिकित्सक भले ही एग्जाम पास करके डॉक्टर तो बन जाते है लेकिन वो अपने चिकित्सा के क्षेत्र को बदनाम कर देते है, ऐसा नहीं है कि केवल डॉक्टर्स ही अपने क्षेत्र के अनुरूप अपना व्यवहार या भाव नहीं रखते है, बल्कि अन्य पेशे में भी लोग खूब पढ़े लिखे होने के बावजूद  अपने कार्य के साथ न्याय नहीं कर पाते है। यहां बात या भाव केवल पेशे या सेवा का है जहां एक फील्ड में सेवा कहा जाता है वहीं दूसरे क्षेत्र में पेशा या व्यवसाय कहा जाता है, बस यही एक लाइन एक दूसरे कार्य के अंतर को स्पष्ट करता है। जीवन चलाने के लिए सबसे पहली जरूरत सांस होती है जो शुद्ध पर्यावरण से ही मिलती है, उसके बात दूसरी जरूरत पानी की होती है जो जल के स्वच्छ स्रोत से मिलता है, तीसरी जरूरत भोजन की होती है जो पेस्टिसाइडमुक्त खेती से मिलती है,

चौथी जरूरत छोटे से घर की होती है जो बिना प्रकृति को नुकसान पहुंचाए भी मिल सकता है और पांचवीं जरूरत सकून की नींद की होती है जो टेंशनमुक्त जीवन से मिलती है, टेंशनमुक्त जीवन केवल अच्छे स्वास्थ्य से मिलता है और अच्छा स्वास्थ्य हमारी बेहतरीन जीवनशैली से मिलता है। अगर इन सबमें सबसे जरूरी कुछ है तो वो स्वास्थ्य है, जिसे हम सबसे अधिक इग्नोर करते है और फिर चिकित्सक के दरवाजे खटखटाते है, तथा जितना पैसा कमाया होता है उसे वहां देने का कार्य करते है, लेकिन एक बार पिटारा खुलता है तो फिर पता नहीं कौन कौन से रोग हमारे शरीर में आ जाते है कुछ तो हमारे भोजन,

जीवनशैली के कारण होते है और कुछ माननीय चिकित्सक की कभी न भरने वाली भूख के कारण भी हो सकते है। हम यहां डॉक्टर्स के लिए कुछ आधारभूत करुणामई जरूरतों को देखते हुए अपनी कुछ गतिविधियों को आवश्यक रूप से ना कहने की आवश्यकता है, क्योंकि कुछ महानुभाव अपने जरा जरा से लालच या लोभ के कारण अपने बहुत महत्वपूर्ण सेवा के कार्य को बदनाम करने का काम करते है, जिससे छुटकारा पाया जा सकता है, अगर थोड़ी सी सचेतता बरती जाए तो। कुछ अनावश्यक जरूरतों व कार्यों को हर चिकित्सक को ना कहने का संकल्प लेना ही होगा, तभी तो प्रत्येक डॉक्टर्, आई एम ए के ध्येय वाक्य "सभी को किफायती तरीके से सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा उपलब्ध कराने" की शपथ के अनुसार कार्य कर सकेंगे। इनमें कुछ स्टेप्स दिए गए है,

जैसे :
1. भले ही चिकित्सक किसी को प्रेरक शब्द न बोले, लेकिन कड़ुए शब्दों या हतोत्साहित करने वाले शब्दों को ना कहना सीखना चाहिए।
2. बिना जरूरत के किसी भी पेशेंट के अनावश्यक टेस्ट कराने को ना कहने की कसम लें।
3. बिना जरूरत के अनावश्यक दवाइयां भी लिखने को ना कहने की शपथ लेनी चाहिए।
4. एक चिकित्सक होने के नाते और डॉक्टर बनने से पहले ली गई शपथ के अनुसार किसी के साथ चीटिंग ना करने की कसम खानी चाहिए।


5. चिकित्सा जैसे सेवा का कार्य है इसलिए इसमें करुणा के भाव को जिंदा रखने के लिए अपने खुद के अनावश्यक खर्च व जरूरतों को ना कहना चाहिए, ताकि किसी से अधिक पैसा लेने की जरूरत ही न पड़ें।
6. चिकित्सा सेवा है इसे व्यवसाय बनाने को ना कहने की हिम्मत जुटाएं।
7. किसी भी मरीज को ग्राहक या मुर्गे की तरह ट्रीट करने को ना कहना होगा, क्योंकि वो पेशेंट है, कोई सामान खरीदने वाला ग्राहक नहीं है।


8. हर मरीज को राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माने, और उन्हें राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण मान कर ही किफायती चिकित्सा देने के अपने ध्येय वाक्य को पूरा करें, जीवन में चिकित्सा के नाम पर लालच  ना करने की कसम खाएं।
9. अपने क्लिनिक या अस्पताल में समय पर जाएं, हर प्रकार की देरी को ना कहना सीखे, क्यूंकि मरीज बहुत दूर दूर से आपके पास आते है और दूसरा वो शारीरिक व मानसिक रूप से भी वेदना में रहते है।
10. एक चिकित्सक को कभी भी फार्मास्युटिकल कंपनी के अनुसार नहीं, बल्कि मरीज की बीमारी के अनुसार दवाई देनी चाहिए, और इन कंपनियों के विभिन्न लालच को ना लेने का संकल्प लेना चाहिए।


11. दवा कंपनियों के विदेशी टूर के लोभ को तिलांजलि देने के लिए अपनी मरीज की आर्थिक हालत को ध्यान में रखने के लिए उनके ऑफर्स को ना कहने को तत्पर रहना चाहिए।
12. कभी भी एक चिकित्सक होने के नाते किसी भी व्यक्ति को उनके जरूरी शारीरिक अंग न बेचने के लिए किसी प्रलोभन को ना कहना चाहिए।
13. अगर किसी मरीज की बीमारी समझ ना आवे तो उन्हें तुरंत दुसरे हस्पताल में रैफर करें ताकि समय से इलाज मिल सकें, अपने लाभ के लिए, किसी भी प्रकार की देरी को ना कहना सीखना चाहिए।


14. किसी भी बड़े अस्पताल में चिकित्सक के रूप में सेवा का कार्य गर्व से करें, लेकिन किसी भी प्रकार के एजेंट बनने को ना कहने की ईमानदारी दिखाना चाहिए।
15. चिकित्सक होना अपने आप में ऐश्वर्य कार्य है, इसलिए इसके लिए कभी आलस, देरी, या भय को ना कहने का संकल्प लेना चाहिए।
16. किसी भी सरकारी दिशानिर्देश को ईमानदारी से पालन करना सीखे, किसी भी प्रकार से भ्रूण हत्या आदि को ना कहने का संकल्प लेना चाहिए।
17. अपने चैंबर में बैठकर किसी दोस्त या किसी भी प्रकार के अन्य बिसनेस या दवाई कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ गप्पे मारने को निश्चित रूप से ना कहने का नियम बनाए, ताकि मरीज को समय से देखा जाए।


जीवन को बचाना, वास्तव में सेवा ही नहीं, बल्कि ईश्वरीय कार्य है, इसलिए इस कार्य में कभी कोताही नहीं बरतनी चाहिए, ताकि समय रहते हर किसी को बेहतर इलाज मिल सकें। जो विश्वास मरीज और चिकित्सक में बीच होता है, जो विश्वास मरीज और हस्पताल के बीच होता है, और जो विश्वास डॉक्टर्स और अस्पताल के मध्य होता है उसको भी कायम रखा जा सकें। जब कोई चिकित्सक गैर कानूनी तथा गैर मानवीय कार्य करने की चेष्टा करने लगता है जो यह सेवा का कार्य भी मुनाफाखोरी के चक्कर में फंस कर रह जाता है। जीवन देने वाले चिकित्सक को अपने गौरव को स्थापित करने के लिए कुछ अनावश्यक कार्यों को जरूरी रूप में ना कहना ही होता है, अगर ऐसा नहीं हुआ तो ऐसे चिकित्सक राष्ट्र के लिए घातक है और संपूर्ण विश्वास को धराशाही करने का कार्य करते हैं।
जय हिंद, वंदे मातरम