रक्षा बंधन पर्व, उन बहनों के लिए सुरक्षा कवच की परंपरा को कायम रखने का उत्सव है, जिनके अपने सगे भाई नहीं
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने अपने लेख में बताया है कि रक्षा बंधन एक ऐसा पर्व है जो भाई और बहन के स्नेह, प्रेम को दर्शाता हैं। यह पर्व श्रावण मास की अंतिम तिथि अर्थात पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। अगर हम सतयुग की बात करें तो राजा बलि को लक्ष्मी मां ने राखी बांधी थी। अगर हम प्राचीन काल में जाएं तो सिकंदर जिसे एलेकजेंडर द ग्रेट कहते थे, की पत्नी ने अपने पति के बचाव के लिए पोरस को अपना भाई माना था और उन्हे राखी बांध कर, अपने पति सिकंदर की रक्षा का कवच पोरस से लिया था। ऐसे ही प्राचीन काल की बहुत सी घटनाएं और कहानियां है, जिससे हमे रक्षा बंधन के महत्व का पता चलता हैं।
उन्होंने बताया कि वैसे आमतौर जो वर्तमान वक्त में चलन में है वो यह दर्शाता है कि रक्षा बंधन का त्यौहार भाई बहन का उत्सव है, बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती है या रक्षा सूत्र बांधती और अपनी सुरक्षा का वचन लेती हैं। या फिर इसको इस अर्थ में लिया जाए कि बहन अपने भाई की सुरक्षा के लिए उसको रक्षा सूत्र, राखी के रूप में बांधती हैं। परंतु ये विषय बहुत ही विचारणीय है कि एक सगी बहन, क्या अपने सगे भाई को अपनी रक्षा के लिए राखी बांधेगी, क्या हमारे समाज में एक भाई अपनी सगी बहन की रक्षा के लिए भी राखी बंधवाकर ही रक्षा का वचन देगा, बिना राखी के नहीं?
अगर कोई बहन अपने सगे भाई को राखी बांधेगी तो ही उसका भाई अपने सगी बहन की रक्षा करेगा। इसमें एक बात जो विशेष रूप से देखती है कि बहन अपने सगे भाई की बेहतरी तथा उसके जीवन की सुरक्षा की कामना के लिए रक्षा सूत्र बांधती हैं, ये अर्थ कुछ सिरे लगता हैं। चलो अगर हम प्राचीन काल की कुछ घटनाओं पर नजर डालते है तो हम बहुत ही स्पष्ट तौर पर समझ आता है कि रक्षाबंधन वो संकल्प उत्सव है जिसमें एक बहन जिसका कोई सगा भाई नही है या एक ऐसी बहन जो अपने बचाव या सहयोग करने या रक्षा करवाने के लिए एक भाई को रक्षा सूत्र बांध कर, ये संकल्प लेती है कि वो भाई भविष्य में अपनी उस बहन की मुसीबत के समय रक्षा करेगा , जिसकी कलाई पर उस धर्म बहन ने राखी बांधी हैं। ये सूत्र उपयुक्त लगता हैं क्योंकि जो बहन अकेली होती है शायद उसे लगता है कि उसका भी कोई भाई हो और वो उसकी रक्षा के लिए संकल्प करें। वैसे तो समाज में हर बहन बेटी के जीवन की रक्षा होनी ही चाहिए, चाहे वो अकेली हो, चाहे उसके कोई भाई हो। रक्षाबंधन सावन के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा को इसीलिए मनाया जाता है क्योंकि यह माह बेटियों के लिए उमंगों, झूले की तरह पंख लगाकर खुली हवा में उड़ने का तथा सपने देखने का महीना होता है, इसी माह के फूल मून डे पर ही उन बेटियों को उनके सपनों को साकार करने के लिए उन्हे रक्षा सुरक्षा की भी जरूरत पड़ती है, इसी लिए पूर्णिमा के दिन हम अपनी बेटियों अथवा बहनों को संकल्प देते है कि बेटी बहन कोई भी उनको सुरक्षा दी जाएगी। वो अपने सगे भाइयों को तथा किसी भी भाई को अपनी सुरक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांध कर ,
उनसे अपनी सुरक्षा की शपथ दिलवाती हैं। रक्षाबंधन, ऐसा स्नेह का त्यौहार है जिसमें इस धरती पर हर बेटी किसी ना किसी की बहन होगी और वो भाई रक्षा सूत्र के बदले उस बहन की रक्षा का संकल्प करेंगे। यहां मेरा ऐसा मत है कि ये त्यौहार संकल्प के लिए मंथन का दिवस है। हमारे यहां आए दिन बेटियों के साथ दुर्व्यवहार, दुराचार और बहन बेटियों के साथ आखिरी रेप की घटनाएं तक कैसे करते है व्यभिचारी लोग। जब एक तरफ हम नागरिकों की सुरक्षा, सम्मान, उत्साह, उमंग, विजय, धर्म की स्थापना के लिए विभिन्न उत्सवों का आयोजन करते हैं। क्या हम समाज में ऐसे लोगों को आइडेंटिफाई नही कर सकते है जो समाज को अपने व्यभिचार से प्रभावित करते है और भविष्य में भी ऐसा करके सामाजिक शक्ति को कमजोर करना चाहते है, समाज में लोगों को भयभीत करना चाहते है, जिससे ऐसे नकारात्मक लोग अपने नेगेटिव लक्ष्यों की पूर्ति कर सकें। आओ मिलकर हम सब एक एक बहन बेटियों की रक्षा की शपथ लें और आज रक्षाबंधन के पवित्र दिन अपने अपने क्षेत्र की महिलाओं को गौरव प्रदान करने का कार्य शुरू करें। जिससे बहन बेटियां बेखौफ, सम्मान के साथ अपने जीवन में आनंदमय तरीके से जी सकें।
जय हिंद, वंदे मातरम