बिना हंस के मां सरस्वती की मूर्ति सम्पूर्ण नहीं है, इसे सबको समझने की आवश्यकता
Mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
जब भी विद्या, विद्यार्थियों, शिक्षण संस्थानों, आर्ट, आर्ट संस्थानों या फिर शिक्षकों की बात होती है तो विद्या की देवी मां सरस्वती की चर्चा होनी जरूरी है। विद्या का क्षेत्र बहुत विस्तृत है, इसमें ज्ञान, क्रियात्मकता, संगीत, गीत, आर्ट, क्रिएटिविटी, कल्चर, वाणी, किसी भी प्रकार स्किल, वाद्य यंत्र, भाषण, संभाषण सभी विद्या के क्षेत्र में आते है।
मां सरस्वती पवित्रता एवं ज्ञान की प्रतीक है, इसके बहुत से प्रयाय है जैसे वाक की देवी वाग्देवी, प्रकाश व ज्ञान की देवी मां भारती, ज्ञानदा जो ज्ञान देने वाली हो, शारदा मां जो परिपक्वता प्रदान करने वाली हो, जो मैच्योरिटी प्रदान करने वाली हो, सरस्वती नदी की तरह पवित्र बहने वाली नदी के स्वरूप में सरस बहता ज्ञान भी सरस्वती मां का प्रतीक है। हम सभी को सनातन संस्कृति को समझने के लिए वेदों का ज्ञान लेना चाहिए, क्योंकि वेदों में जो ज्ञान है, वहीं सच्चा है, वैज्ञानिक है वो पुराणों में प्रतीकों के रूप तथा आसान भाषा में कहानियों के माध्यम से समझाया गया है।
पुराणों में कहानियां तथा प्रतीक है जिससे सामान्य ज्ञान वाले व्यक्ति भी सब कुछ समझ सके। सिंबल को समझने के लिए साइंस ऑफ सिंबल समझने की आवश्यकता होती है। हमने शास्त्रों में उपलब्ध ज्ञान को प्राप्त करने की अपेक्षा उन प्रतीकों को ही पूजना शुरू कर दिया, यहीं से पाखंड शुरू हुआ, यहीं से अंधविश्वास शुरू हुआ, यहीं से पाखंडियों ने जन सामान्य को बहकाना शुरू किया। हमने वेदों तक पहुंचने की बजाय पुराणों में दिए गए प्रतीकों पर ही मत्था टेकना शुरू कर दिए और हम अपने वेदों के गूढ़ ज्ञान से वंचित रह गए, हम में साइंटिफिक टेंपरामेंट उत्पन्न ही नहीं हो पाया।
हम विज्ञान से दूर चले गए और पाखंड में उलझकर लोभ मोह के कारण दुख में डूब गए। अगर जीवन में हैप्पीनेस या आनंद को समझना है तो साइंटिफिक टेंपरामेंट को अपनाने पर फोकस करना पड़ेगा। जिस प्रकार हम वेदों के ज्ञान को साइंटिफिक मानते है, उसी प्रकार उसी ज्ञान को लेने की जरूरत है। पाखंड से बचना है तो जो प्रतीक हमारे समझने के लिए रखे गए थे उनके वास्तविक अर्थ को समझने की जरूरत है। प्रतीकों को मत पूजो, उनके अर्थ समझो और उन में आनंदित होना सीखो। हमारे सामने बहुत से प्रतीक है जिनके द्वारा हमे वेदों का ज्ञान लेना था लेकिन हमने सिंबल को समझने की बजाय उसे ही सच्चाई मान ली और जीवन में दुख को अपना लिया, चिंता में डूब गए,
मोह लोभ में अटक गए। हमे यहां मां सरस्वती की मूर्ति के प्रतीकात्मक स्वरूप को समझकर जीवन को सार्थक करने की भी जरूरत है। मां सरस्वती श्वेत साड़ी में है, हाथ में वीणा है, मां के एक हाथ में पुस्तक है, उनके सिर पर मुकुट शोभायमान है और उनके वाहन के रूप में हंस है। हर सिम्बल का एक साइंस है,
क्योंकि विज्ञान एक निश्चित परिणाम देता है चाहे वो किसी भी स्थान पर हो, चाहे वो किसी के द्वारा भी किया जाए, विज्ञान का परिणाम एक ही होता है कोई उसमें पाखंड नहीं फैला सकते है। मां सरस्वती की मूर्ति के रूप में जो प्रतीक हमारे सामने है उसमें विशेष महत्व हंस जैसे पक्षी का है। जहां संगीत है, गीत है, जहां संस्कृति है, जहां संस्कार है, जहां स्किल्स है, जहां सुंदर वाणी है, जहां ज्ञान है ज्ञान का प्रसार है, जहां विज्ञान है,
और जहां विश्लेषण है तर्क है विश्लेषण करने की क्षमता है वहीं माता सरस्वती है। हर प्रतीक के अपने मायने है परंतु यहां हम हंस के प्रतीक को समझने के लिए ये विमर्श कर रहे है। जीवन में ज्ञान, विज्ञान मां सरस्वती की देन है, परिपक्वता की देन मां सरस्वती है, वाक्पटुता व वाणी में प्रभावशीलता की देन भी मां बागेश्वरी देवी की देन है। जीवन में ज्ञान का प्रकाश करने वाली ही मां भारती है। हमारे सामने मां सरस्वती की मूर्ति की संपूर्णता हंस के बिना संभव नहीं है क्योंकि विद्या का वास्तविक अर्थ हंस से ही पूरा हो पाता है। हंस प्रतीक है नीर क्षीर को अलग अलग करने की क्षमता का प्रतीक हंस है विश्लेषण करने का, हंस प्रतीक है तर्कशीलता का, और अगर शिक्षित व्यक्ति में विश्लेषण की शक्ति नहीं है, तर्कशीलता नहीं है, वैज्ञानिक टेंपरामेंट नहीं है तो उस शिक्षा विद्या का कोई लाभ न होगा।
इसलिए लिए मां सरस्वती का वाहन हंस है जो दूध में से भी नीर व क्षीर को अलग करने की ताकत रखता है। आजकल अधिकतर देखने में आ रहा है कि हम भारतीय संस्कृति के ज्ञान को छोड़ते जा रहे है और पाखंड की ओर बढ़ रहे है, युवाओं में भी पाखंड की वृति बढ़ती जा रही है,क्योंकि हमने प्रतीकों के अर्थ को भी समझना बंद कर दिया है, ऐसे लगता है जैसे हमारी चेतना सो गई है, ऐसे लगता है जैसे हमारी सजगता मिटती जा रही है। हम जिस मां सरस्वती की मूर्ति के सामने दीप जलाते है, पुष्पांजलि अर्पित करते है उसी हम मां सरस्वती को कभी निहारने की भी जरूरत नहीं समझते है दर्शन करने को तो भूल ही जाओ, दर्शन का तो हमे अर्थ भी मालूम नहीं है।
हर शिक्षण संस्थान के किसी भी कार्यक्रम में मां सरस्वती की मूर्ति तो रखी जाती है, वहां तेल का दीपक भी जलाया जाता है, पुष्प भी अर्पण किए जाते है परंतु हम कभी भी मां सरस्वती की मूर्ति को ध्यान से निहारते नहीं है इसी लिए हम यह देख ही नहीं पाते है कि वहां हंस है या नहीं है। वैसे अधिकतर मूर्ति बिना हंस के ही दिखाई देने लगी है, जो सम्पूर्ण नहीं है। मां सरस्वती हंस पर विराजमान होनी चाहिए, तभी संपूर्णता है। यहां विद्या का अर्थ है बिना तर्क या बिना विश्लेषण या बिना साइंटिफिक टेंपरामेंट की शिक्षा नहीं है। डिग्री तो होगी हाथ में है,
लेकिन तर्कशीलता नहीं मिलती है, विश्लेषण नहीं है, एनालिसिस पावर नहीं है। बिना तर्क शक्ति, बिना विश्लेषण या बिना वैज्ञानिक दृष्टिकोण के शिक्षा पाखंड बन जाती है। प्रतीकों को बिना समझे पाखंड बन जाते है, बिना हंस के साइंटिफिक टेंपरामेंट आ ही नहीं सकता है इसलिए मां सरस्वती की मूर्ति वही सम्पूर्ण है जहां मां हंस पर है, जहां मां सरस्वती हंस पर सवार है, क्योंकि हंस को सवारी इसलिए बनाना है ताकि हंस वहां से हटे नहीं, तभी हमारी शिक्षा में हंस तत्व उपलब्ध होगा और हम तर्कशील बनेंगे, पाखंड को समझ पाएंगे।
जय हिंद, वंदे मातरम