डा. सुरजीत पातर ने अपने लेखन में मानवजाति की वेदना व पीड़ा को दी ज़ुबाँ: डा. हरविंदर सिंह SIRSA

 
mahendra india news, new delhi

हरियाणा में  SIRSA के राजकीय नेशनल महाविद्यालय में पंजाबी विभागाध्यक्ष एवं अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के राष्ट्रीय सचिवमंडल के सदस्य, हरियाणा प्रलेस के महासचिव, पंजाबी साहित अकाडमी, लुधियाणा के उपाध्यक्ष डा. हरविंदर सिंह सिरसा ने प्रख्यात पंजाबी लेखक डा. सुरजीत पातर के आकस्मिक निधन पर गहरे शोक का इज़हार किया है।


 बिरख अरज़ करे, हनेरे विच सुलघदी वर्णमाला', 'लफ़ज़ां दी दरगाह', 'हवा विच लिखे हरफ़', 'सदी दीआं तरकालां (संपा.)', 'पतझड़ दी पाज़ेब', 'सुरज़मीन', 'सूरज मंदर दीआं पौड़ीआं', 'इह बात मेरी एनी ही नहीं' इत्यादि पुस्तकों के सृजक डा. सुरजीत पातर ने विश्व साहित्य के कुछ महान नाटकों व कविताओं 'अग्ग दे कलीरे', 'सईओ नी मैं अंतहीण तरकालां', 'शहर मेरे दी पागल औरत', 'हुकमी दी हवेली' इत्यादि का पंजाबी में अनुवाद भी किया। उन्होंने 'शहीद ऊधम सिंह' फिल्म के संवाद भी लिखे और अपनी मख़मली आवाज़ में 'बिरख़ जो साज़ है' के नाम से अपने कलाम की रिकार्डिंग भी करवाई। उनके कलाम का प्रसिद्ध पंजाबी गायकों द्वारा गायन भी किया गया है। 


पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाणा से सेवानिवृत्त डा. सुरजीत पातर पंजाबी साहित अकाडमी, लुधियाणा व पंजाब साहित अकाडमी, चंडीगढ़ के अध्यक्ष एवं पंजाब आर्ट्स काउंसिल के चेयरमैन भी रहे। उन्हें देश के प्रतिष्ठित सम्मानों 'सरस्वती सम्मान', 'भारतीय साहित्य अकादमी सम्मान' व 'पद्मश्री' सम्मान से भी अलंकृत किया गया। डा. हरविंदर सिंह सिरसा ने डा. सुरजीत पातर को युगकवि बताते हुए कहा है कि उनके निधन से पंजाबी शायरी के एक युग के अंत के रूप में साहित्य के क्षेत्र की जो क्षति हुई है वह अपूरणीय है। 

उन्होंने कहा है कि डा. सुरजीत पातर मानवजाति की वेदना और पीड़ा को अभिव्यक्ति प्रदान करने वाले लेखक थे। डा. हरविंदर सिंह सिरसा ने डा. पातर के निधन पर उनके पारिवारिक सदस्यों, स्नेहियों और प्रशंसकों के प्रति हार्दिक सहानुभूति एवं गहन शोक संवेदनाएं व्यक्त करते हुए कहा है कि साहित्य के क्षेत्र में प्रदत्त अनथक विलक्षण योगदान हेतु उनकी स्मृति सदैव बनी रहेगी।