अगर युवाओं को जीवन में जिगिशा चाहिए तो ज्ञान के लिए जिज्ञासा जगानी पड़ेगी
Aug 2, 2025, 09:23 IST
mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
धर्म का अर्थ है ज्ञान , अंधकार से मुक्ति, अंधविश्वास से मुक्ति, जीवन में ज्योति। जिज्ञासा रहित युवा क्या खाक जीत की इच्छा करेंगे। अरे, मानव जीवन मिला है उसे अंधकार में मत गवाओं, ऐसे पाखंडियों के चक्र में मत गवाओं जो तुम्हारे जीवन तथा पैसों का दुरुपयोग कर रहे है। इस जीवन का बहुत बड़ा अर्थ है। यहां मैं उन युवाओं को चेताना चाहता हूँ जो अपने भीतर छुपी हुई शक्तियों को पहचानने की बजाय बाहर जाकर शक्ति ढूंढ रहे है। ऐसे महानुभावों के मकड़जाल में फंस रहे है जिन्हें धर्म का "का खा" भी नहीं पता है। अरे हमारे पास श्रीमद्भगवद् गीता जैसे जीवन को दिशा देने वाले ग्रन्थ है और हम उन्हें भी झुठलाने की कौशिश कर रहे है। जीवन में चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है अगर चमत्कार होता तो महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण जी महाराज अधर्म के विरुद्ध युद्ध करने के लिए नहीं बोलते, क्योंकि एक चमत्कार से ही युद्ध जीता जा सकता था। हम महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी के जीवन संघर्ष को भी भुला देना चाहते है जिन्होंने पाखंड के खिलाफ पाखंड खंडनी पताका फहराई थी। भाई कुछ तो विचार करो, इस देश की युवा पीढ़ी पर रहम करो, क्यों इन्हें अंधकार में धकेलने का दुस्साहस कर रहे हो, क्यों महापुरुषों की बातों को, वेद जैसे ग्रंथों को झुठलाने का कार्य कर रहे हो, क्यों मानवता को पतन की ओर लेकर जाने का खतरनाक काम कर रहे हो। हम धार्मिक होने का दंभ भरते है लेकिन हमारी गतिविधियां तो धर्म के विरुद्ध ही होती है।
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
धर्म का अर्थ है ज्ञान , अंधकार से मुक्ति, अंधविश्वास से मुक्ति, जीवन में ज्योति। जिज्ञासा रहित युवा क्या खाक जीत की इच्छा करेंगे। अरे, मानव जीवन मिला है उसे अंधकार में मत गवाओं, ऐसे पाखंडियों के चक्र में मत गवाओं जो तुम्हारे जीवन तथा पैसों का दुरुपयोग कर रहे है। इस जीवन का बहुत बड़ा अर्थ है। यहां मैं उन युवाओं को चेताना चाहता हूँ जो अपने भीतर छुपी हुई शक्तियों को पहचानने की बजाय बाहर जाकर शक्ति ढूंढ रहे है। ऐसे महानुभावों के मकड़जाल में फंस रहे है जिन्हें धर्म का "का खा" भी नहीं पता है। अरे हमारे पास श्रीमद्भगवद् गीता जैसे जीवन को दिशा देने वाले ग्रन्थ है और हम उन्हें भी झुठलाने की कौशिश कर रहे है। जीवन में चमत्कार जैसी कोई बात नहीं है अगर चमत्कार होता तो महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण जी महाराज अधर्म के विरुद्ध युद्ध करने के लिए नहीं बोलते, क्योंकि एक चमत्कार से ही युद्ध जीता जा सकता था। हम महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती जी के जीवन संघर्ष को भी भुला देना चाहते है जिन्होंने पाखंड के खिलाफ पाखंड खंडनी पताका फहराई थी। भाई कुछ तो विचार करो, इस देश की युवा पीढ़ी पर रहम करो, क्यों इन्हें अंधकार में धकेलने का दुस्साहस कर रहे हो, क्यों महापुरुषों की बातों को, वेद जैसे ग्रंथों को झुठलाने का कार्य कर रहे हो, क्यों मानवता को पतन की ओर लेकर जाने का खतरनाक काम कर रहे हो। हम धार्मिक होने का दंभ भरते है लेकिन हमारी गतिविधियां तो धर्म के विरुद्ध ही होती है।
ना तो हम महर्षि स्वामी दयानंद जी सरस्वती के जीवन से सीखना चाहते है, ना हम श्रीमद्भगवद् गीता में लिखे संदेश को मानना चाहते है जो केवल कर्म पर बात करती है, ना ही हम वेदों के ज्ञान को मानना चाहते है। युवा दोस्तों, आपकी युवावस्था पाखंड को ढोने के लिए नहीं है, एक एक दिन हमारे लिए महत्वपूर्ण है, पाखंड में समय बिताने से अच्छा है कि इस जीवन को राष्ट्र को समर्पित करें। हम कब तक अपने ऋषियों तथा महर्षियों द्वारा किए गए कार्यों तथा दिशा निर्देशों की लहरों पर सवार रहेंगे, कब तक हम उन महापुरुषों के मानव जीवन को विभिन्न क्षेत्रों में किए गए कार्यों को याद कर करके जीते रहेंगे और खुद के कार्य इन सब महर्षियों के कथनों के खिलाफ करते रहेंगे। महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन दिया, महर्षि सुश्रुत ने शल्य चिकित्सा पर कार्य किया, महर्षि धनवंतरि ने आयुर्वेद का ज्ञान दिया, महर्षि वशिष्ठ ने श्री राम जैसे महापुरुष तैयार किए, महर्षि संदीपनी ने भगवान श्री कृष्ण जी महाराज जैसे महापुरुष तैयार किए, महर्षि कणाद ने वैशेषिक दर्शन दिया। महर्षि कपिल ने सांख्य दर्शन दिया, महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने सत्यार्थ प्रकाश जैसा महान ग्रन्थ दिया, वेदों की व्याख्या की, पाखंड के विरुद्ध जनसामान्य को जगाया, स्वामी विवेकानंद जी ने धर्म की सही व्याख्या की।
बड़े बड़े महापुरुषों ने शिक्षा की अलख जगाई, फिर भी हम उनसे कुछ सीखना नहीं चाहते है और पाखंडियों के चक्र में उलझकर रह जाते है, और खुद को धन्य समझते है कि फलां पाखंडी हमे जनता है, फलां पाखंडी हमारा गुरु है। फिर क्यों हम अनपढ़ पाखंडियों के पाखंड में फंस जाते हैं। मुझे तरस आता है ऐसे विज्ञान के शिक्षकों पर, विज्ञान के विद्यार्थियों पर जो साइंस पढ़ने के बाद भी महापखंडियों के चक्र में फंस कर अपना जीवन बर्बाद कर देते है, चौक चौराहों पर टोने टोटके करते फिरते है, अरे भाई क्यों आप लोगों ने साइंस की शिक्षा ली। मैं युवाओं से कहना चाहता हूँ कि अगर जीवन में किसी भी प्रकार की सफलता चाहते हो तो ज्ञान प्राप्त करो, किसी पाखंडी के चक्र में समय किल मत करो। जानने को आतुर रहो, हमेशा प्रश्न करने की आदत डालो, खुद को सशक्त बनाओ अन्यथा तुम्हे ऐसे ऐसे पाखंडी मिलेंगे जो तुम्हारा शोषण करेंगे और अपना उल्लू सीधा करेंगे, तुम्हे अहसास भी नहीं होने देंगे। अपने बच्चों को विदेशों में पढ़ाएंगे और तुम्हे पाखंड में, अंधविश्वास के गर्त में धकेल देंगे। हमारे यहां शास्त्रों में सूर्य, दीप, प्रकाश सभी ज्ञान को दर्शाने के लिए ही दिए गए है। जैसे आपने नदी में लोगों द्वारा जलते हुए दीपक तैराते हुए देखे होंगे, इसका अर्थ यही है कि ज्ञान रूपी प्रकाश ही भव सागर में तैर सकता है अर्थात बड़ी से बड़ी विकट परिस्थिति में भी ज्ञान से ही पार पाया जा सकता है,
लेकिन हम उसे समझने की बजाय उसे एक रीति के रूप में देखते है। घर में रोज सुबह शाम दीपक जलाने का अर्थ भी तो यही है कि अपनी जिंदगी में प्रकाश ले आओ, ज्ञान के आओ, अन्यथा जीवन अंधकार के कारण अन्धविश्वास में जाएगा। हमारे ऋषि मुनियों ने हमे जगाने के लिए बहुत बड़े बड़े ज्ञान के श्रोत दिए, परंतु हम तो अज्ञान में जीना चाहते है, अंधकार में रहना चाहते है, हम अपने ही नॉर्मल में रहना चाहते है। मैं यहां युवाओं को जो विद्यार्थी है, उन्हें यही आह्वान करना चाहता हूँ कि जानने की इच्छा पैदा करो, केवल मानने से काम नहीं चलेगा। श्रद्धा के नाम पर अंधविश्वास में रहना गलत है। श्रद्धा शब्द श्रत अर्थात ट्रुथ अथवा सत्य तथा धा अर्थात धरता से बनता है, इसका अर्थ हुआ जो सत्य को धरने के लिए प्रयासरत हो, वहीं श्रद्धावान होता है। श्रीमद्भगवद् गीता में भगवान श्री कृष्ण जी महाराज ने कहा है कि " श्रद्धावान लभते ज्ञानं" अर्थात जो श्रद्धावान है वहीं ज्ञान प्राप्त करते है। जिस श्रद्धा से ज्ञान प्राप्त ना हो वो श्रद्धा नहीं है वो अंधविश्वास है। ज्ञान की प्राप्ति हेतु श्रद्धा के मायने होते है, अंधभक्ति के लिए नहीं। जिगिशा का अर्थ है जीवन में जीतने की इच्छा करना, जीवन में सार्थक बनने की इच्छा रखना और जिज्ञासा का अर्थ है ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा, यही तो जीवन का सार है कि खूब ज्ञान प्राप्त करो और जीवन को दीप की तरह जगमगाओं। यहां विद्यार्थियों के लिए तीन संकल्प जरूर लेने चाहिए,
जैसे;
1. पढ़ने में खूब ध्यान लगाओ और पढ़ने लिखने का अभ्यास करो, कोई बहाना मत बनाओ, मोबाइल से दूरी रखो।
2. प्रश्न करने की आदत विकसित करो। बार बार खुद वा दूसरों से प्रश्न करो।
3. जानने की इच्छा विकसित करो, मानने की नहीं।
युवाओं को यही तो करना है फिर देखना जीवन बड़े बड़े जंजाल से भी आसानी से निकल जाएगा। जो शास्त्रों में लिखा है उसे समझने की जिज्ञासा रखो, वो साइंसटिफिक सिंबल है जिनमें जीवन को सार्थक बनाने के सूत्र है। उनपर धोक मत मारो, उन्हें शरीर के मत लपेटो। जिज्ञासा से जानने की इच्छा बढ़ती है, ज्ञान की इच्छा बढ़ती है, ज्ञान अंधकार से मुक्ति दिलाता है, उसी से सार्थकता वा सफलता मिलती है, जहां ज्ञान है वहीं तो विवेक है, वही तो साहस है, वही तो हिम्मत है, वही तो निर्भकता है, वहीं तो सहन करने की शक्ति है।
जय हिंद, वंदे मातरम
1. पढ़ने में खूब ध्यान लगाओ और पढ़ने लिखने का अभ्यास करो, कोई बहाना मत बनाओ, मोबाइल से दूरी रखो।
2. प्रश्न करने की आदत विकसित करो। बार बार खुद वा दूसरों से प्रश्न करो।
3. जानने की इच्छा विकसित करो, मानने की नहीं।
युवाओं को यही तो करना है फिर देखना जीवन बड़े बड़े जंजाल से भी आसानी से निकल जाएगा। जो शास्त्रों में लिखा है उसे समझने की जिज्ञासा रखो, वो साइंसटिफिक सिंबल है जिनमें जीवन को सार्थक बनाने के सूत्र है। उनपर धोक मत मारो, उन्हें शरीर के मत लपेटो। जिज्ञासा से जानने की इच्छा बढ़ती है, ज्ञान की इच्छा बढ़ती है, ज्ञान अंधकार से मुक्ति दिलाता है, उसी से सार्थकता वा सफलता मिलती है, जहां ज्ञान है वहीं तो विवेक है, वही तो साहस है, वही तो हिम्मत है, वही तो निर्भकता है, वहीं तो सहन करने की शक्ति है।
जय हिंद, वंदे मातरम