भारतीय भाषाएं केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि समूचे भारत को जोड़ने वाली सांस्कृतिक कड़ी >डॉ. प्रीतम सिंह
चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसा के मानविकी संकाय द्वारा आयोजित दो दिवसीय भारतीय भाषा परिवार सम्मेलन का समापन बुधवार को टैगोर भवन एक्सटेंशन में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। भारतीय भाषाओं की एकता, संरचना और सांस्कृतिक समृद्धि पर केंद्रित यह 2 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी भारतीय भाषा समिति, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा प्रायोजित थी।
समापन सत्र में विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रोफेसर विजय कुमार, कुलसचिव डॉ सुनील कुमार, मानविकी संकाय के डीन प्रो. पंकज शर्मा, संयोजक प्रोफेसर अनु शुक्ला, सहसंयोजक प्रोफेसर उमेद सिंह, विभिन्न विभागों के प्राध्यापकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। संगोष्ठी के दौरान भारतीय भाषाओं की उत्पत्ति, उनके पारिवारिक स्वरूप, भाषाई एकता, अनुवाद, बोली–विविधता और संस्कृति से जुड़े अनेक विषयों पर सारगर्भित प्रस्तुतियाँ दी गईं।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्टडी सेंटर, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के निदेशक डॉ. प्रीतम सिंह ने कहा कि भारतीय भाषाएं केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं, बल्कि समूचे भारत को जोड़ने वाली सांस्कृतिक कड़ी हैं। भाषाएं परिवारों को एक सूत्र में पिरोती है और पीढ़ियों को परंपरा से जोड़ने का काम करती हैं। उन्होंने कहा कि भारत में जब एक बच्चा जन्म लेता है, तो उसके मस्तिष्क में भारतीय भाषा सीखने की स्वाभाविक रूपरेखा पहले से मौजूद होती है। भारतीय भाषाओं से उसका पहला जुड़ाव सहज और जन्मजात होता है। किसी अन्य भाषा को सीखने के लिए उसे अतिरिक्त प्रयास करने पड़ते हैं, जबकि भारतीय भाषाएं उसके मानसिक गठन का स्वाभाविक हिस्सा होती हैं। डॉ. प्रीतम सिंह ने भारतीय परिवार व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारतीय परिवार पूरे विश्व में परिवार की एक मिसाल प्रस्तुत करते हैं। इन परिवारों की मजबूती के मूल में हमारी भाषाएं, संस्कार और सांस्कृतिक संवाद निहित हैं।
देश की स्वतंत्रता पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि भारत की आजादी में किसी एक भाषा का योगदान नहीं था, बल्कि भारत की सभी भाषाओं ने मिलकर स्वतंत्रता आंदोलन को स्वर, चेतना और दिशा दी। हर भाषा ने स्वतंत्रता की लड़ाई में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषा परिवार सम्मेलन जैसे आयोजन नई पीढ़ी को भारत के मर्म, उसकी सांस्कृतिक संहिता और भाषाई संवेदनशीलता को समझने का अद्भुत अवसर प्रदान करते हैं।
विशिष्ट अतिथि के रूप में हरियाणा ग्रामीण विकास संस्थान, नीलोखेड़ी के निदेशक प्रो. वीरेंद्र चौहान ने अपने विचार साझा करते हुए कहा कि भारतीय भाषाएं हमारी पहचान, हमारी सोच और हमारे बौद्धिक विकास की मूल आधारशिला हैं। भाषाई विविधता हमारे देश की ताकत है और इसका संरक्षण समय की सबसे बड़ी मांग है। उन्होंने कहा कि ऐसे अकादमिक आयोजन देश में भाषायी चेतना को प्रखर करते हैं और शोधार्थियों को नए आयाम प्रदान करते हैं।
अंत में प्रोफेसर अनु शुक्ला ने अतिथियों, प्रतिभागियों और सहयोगी विभागों का धन्यवाद किया। संगोष्ठी के सफल आयोजन हेतु सभी सहभागी विभागों की भूमिका की सराहना की गई।