श्रीमद्भागवत महा पुराण कथा: अत्यंत दुखों को भोगने के बाद मिलता है मनुष्य जीवन: पंडित सुगन शर्मा
श्रीमद्भागवत महा पुराण कथा: अत्यंत दुखों को भोगने के बाद मिलता है मनुष्य जीवन: पंडित सुगन शर्मा
सुप्रसिद्ध कथा व्यास पण्डित सुगन शर्मा बंशीवट मंदिर ने कहा कि पित्रों कि सद्गति एवं मानव कल्याण के उद्देश्य से बंशीवट मंदिर सिरसा के प्रांगण में आयोजित की जा रही श्रीमद्भागवत महा पुराण कथा के पहले दिन भगवान श्रीकृष्ण के सच्चिदानंद रूप का विस्तृत वर्णन करते हुए मंगलाचरण किया। उन्होंने इस भागवती गंगा के महत्व को समझाया। नैमिषारण्य तीर्थ व सूत जी महाराज के विषय में विस्तृत वर्णन किया।
सुप्रसिद्ध कथा व्यास पण्डित सुगन शर्मा ने साधकों को सिद्धि प्रदान करने वाली नैमिषारण्य की पावन भूमि की कथा सुनाई। पण्डित जी ने इस कलियुग में परमात्मा के इस भागवत कथा स्वरूप के महत्व को समझाते हुए बताया कि इस पावन भागवती गंगा को कलिकाल में सभी संतों, बुद्धिजियों द्वारा भांति-भांति प्रकार से सुनाया जाता है और जो इस पावन गंगा में श्रोता बन कर डूबकी लगाता है, वो उस परम धाम को पाता है। स्वयं को व अपने पूर्वजों को मोक्ष प्रदान करता है।
पंडित जी ने श्री मद्भागवत कथा की महत्वता इस अति दुर्लभ मानव जीवन के बारे में बताया कि किस प्रकार अनेक योनियों में जन्म और मृत्यु को पाकर अत्यंत दुखों को भोगने के पश्चात यह अति दुर्लभ मानव तन प्राप्त होता है और इस मानव जीवन को प्राप्त कर किस प्रकार हरि भजन करके मोक्ष को प्राप्त किया जा सकता है, का वर्णन किया। व्यासजी ने राजा परिक्षित की जीवन में शिक्षा प्रदान करने वाली कथा सुनाई, कि किस प्रकार कलियुग के आगमन होने पर परिक्षित जी कि मति पर कलि प्रभाव के कारणवश केवल सात दिवस का जीवन शेष पाकर भी उसको अपना मोक्ष साधन बनाया।
प्रत्येक जीव इन्हीं सात दिवस में जन्मता है और मृत्यु भी इन्हीं सातवारों में ही प्राप्त करता है, परन्तु जो हरि नाम का सहारा लेता है, वह अपने जीवन को सात दिवस मात्र में ही परमगति को पा लेता है। इस कलिकाल में परमात्मा के नाम का सुमिरन करने मात्र से ही भगवान को पाया जा सकता है, जो कि सतयुग में भी संभव नहीं था। केवल नाम ही आधार है, हमें जीवन के हर पल गृहस्थ में रहते हुए भी परमात्मा का सुमिरन करते रहना चाहिए। पण्डितजी ने श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से आज के समाज, युवाओं को अपना जीवन किस प्रकार जीना चाहिए, का अनमोल ज्ञान प्रदान किया।
आज समाज की जो स्थिति है, उस पर चिंता व्यक्त करते हुए समस्त उपस्थित श्रोताओं को अपने बच्चों को श्रेष्ठ संस्कार प्रदान करने का उपदेश श्रीमद्भागवत कथा के विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से सुनाया। पण्डित जी ने श्रोता, वक्ता के गुणों का वर्णन किया कि कथा व्यास में कौन से गुण होने चाहिए, कौन सी मर्यादा व नियमों का पालन कर इस पवित्र कथा का श्रवण करना चाहिए। कथाव्यास द्वारा अनेक मधुर व मन को आनंदित करने वाले भजनों उपस्थित श्रोतागण झूम उठे।
कथाव्यास ने बताया कि कथा रोजना सांय 3 बजे से 7 बजे चलेगी। इस अवसर पर श्री बंसीवट कथा समिति के प्रधान इंद्रकुमार चिड़ावेवाला उपप्रधान सुनील गोयल, सचिव संजय तायल, कोषाध्यक्ष रामकुमार जैन, सदस्य दयानंद वर्मा, संदीप सोनी, दीपक शर्मा, मुनीष शर्मा, संजय गोयल, राजेंद्र, कृष्ण आरे वाले, ममता शर्मा, राधा, राधेश्याम बांसल व अन्य सदस्य उपस्थित थे।