Chanakya Niti: हर व्यक्ति बहुत बड़ा बुद्धिमान बनना चाहता है और बन भी जाता है परंतु वो कभी भी ये नहीं विचार करता है नरेंद्र यादव
इंसान की बुद्धि ही है जो बिना विवेक के उसकी ईमानदारी, सरलता, संवेदना, सत्य, निर्भकता और निस्वार्थ भाव को खत्म कर देती है
mahendra india news, new delhi
आज के समय हर इंसान अपने को होशियार तथा इंटेलजेंट बनाने में लगा हुआ है। हर व्यक्ति बहुत बड़ा बुद्धिमान बनना चाहता है और बन भी जाता है परंतु वो कभी भी ये नहीं विचार करता है, कि जैसे जैसे उसकी बुद्धि उसपर कंट्रोल करने लगती है वैसे वैसे वो इंसानियत से दूर होता जाता है। बुद्धि की लगाम है विवेक , बस हम सब यही बात कभी भी नही सीखते, हर व्यक्ति बुद्धि को प्रखर करने की कोशिश तो करता है, लेकिन विवेक को कहीं और ही छोड़ देते है।
हम आपको बता दें कि जीवन में अगर क्रोध तमस है तो बुद्धि रजस है और विवेक होता सत्व, इसीलिए इन दोनो से ऊपर है विवेक , विवेक बैलेंस है। जैसे किसी गाड़ी में क्रोध स्पीड है, बुद्धि ब्रेक है तथा विवेक स्टेयरिंग है वो विवेक है जो संभालने का कार्य करता है । परंतु मैं यहां ये समझाना चाहता हूं कि बगैर ब्रेक और स्टेयरिंग के स्पीड जान लेवा होती है यही तो जीवन में घटित हो रहा है, ना तो हम विवेक का इस्तेमाल करते है और केवल बुद्धि का ही प्रयोग करना चाहते है कोई भी थोड़ा भी सरल हो तो सभी कहने लगते है, कि क्या तुम्हारे अंदर बुद्धि नही है मूर्खो जैसी बाते करते हो।
जो चालाक है वो उतना ही बुद्धिमान कहलाता है। बुद्धि एक परदा है जो विवेक को ढक लेती है, सरलता को ढक लेती है, ईमानदारी को पीछे धकेल देती है, संवेदना तथा करूणा को दबा देती है , ये तो सभी जानते है कि जो जितना बुद्धिमान होगा वो उतना ही चालाकी से काम करेगा फिर भी हम समझ नहीं पाते है कि बुद्धिमान बनना उतना ही खतरनाक होता है जितना बिना स्टेयरिंग की गाड़ी होती है।
बुद्धिमान व्यक्ति सदैव अहंकारी हो जाता है, स्वार्थी हो जाता है, बुद्धि विश्लेषण करने लगती है कि उसके खुद के लिए क्या लाभदायक है और क्या अहितकर है। बुद्धि जब तीव्र होती है तो वो दूसरो को हराने की सोचती है , दूसरो पर काबू करने की योजना बनाती है, भ्रष्टाचार की तरफ दौड़ती है, करूणा दया से ऊपर अपने को समझने लगती है, समझने की कोशिश को मार देती है, अत्याचार करने से नही डरती, दूसरो को कैसे छला जाए इसकी प्लानिंग करती है, षड्यंत्र रचना जान जाती है। अपने को कभी हारने न देने की भरसक प्रयास करती है, किसी को कैसे भी करके चुप कराने की योजना गढ़ती है।
हमारे परिवार मे ,समाज में , देश में को लोग बेचारे सरल होते है उन्हे बेवकूफ समझा जाता है, जो जितने ईमानदार होते है उन्हे ना केवल समाज बल्कि परिवार वाले भी मूर्ख समझते है, जो जितना सज्जन होता है उसे उतना ही बुद्धू समझा जाता है, जो जितना सच बोलता है उसे उतना ही कटाक्ष झेलने पड़ते है क्यों कि बुद्धि तो ये कहती है कि अगर बुद्धिमान बने रहना है, तो क्रोध करो, क्रूर बनो, तेज बनो, निर्मम बनो, स्वार्थी बनो, दूसरो का बुरा करो, दूसरो का हक हड़प लो, झूठ बोलो, किसी का सम्मान मत करो, मातापिता को पुराने ख्यालात के समझो, हर जालसाजी में माहिर बन जाओ, भयभीत बनो, किसी का सहयोग मत करो।
बुद्धिमान व्यक्ति वही तो होता है जो किसी पडौस के व्यक्ति को भी नही जानता, बुद्धिमान वही तो होता है जो सामाजिक नही होता है, उसे सामाजिक क्रियाक्लापो से कोई सरोकार नहीं होता है, वो केवल अपने लिए तथा अपने बच्चो के लिए जीता है , मातापिता भी उसकी लिस्ट से बाहर होते है। मैं युवा साथियों आप से यही कहना चाहता हूं कि बुद्धिमान बनो परंतु विवेक के साथ बनो अगर विवेक को विकसित नही करते हो तो बुद्धि के चक्रव्यूह में मत फंसना। लोग कहते कि जो जितना शातिर होता है उसे उतना ही होशियार समझा जाता है, जो जितना ही चरित्रहीन होता है उसे उतना ही चरित्र वान समझा जाता है।
युवा दोस्तो बुद्धि अकेली कभी आपको जीवन के दर्शन नही करा सकती है इसके लिए विवेक का साथ होना जरूरी है। बुद्धि , हमारे विवेक को ढक देती है, बुद्धि हमारे सरल स्वभाव को ढक देती है। इसका सीधा सीधा अर्थ ये है कि जब हम किसी को कोई बात बताते है तो वो हमेशा यही कहते है कि हम जानते है, समाज में सभी यही तो कहते है कि हम सब जानते है परंतु हमारे व्यवहार में कभी परिवर्तन नहीं होता क्योंकि हमारी बुद्धि उसे सुनती तो है जो हम या कोई भी ज्ञान देने वाला ज्ञान तो देता तथा लोग कहते है की हम ने सब पहले सुन रखा है फिर भी हमारी आदतों में बदलाव क्यों नही होता है? हम हमारा मन नाचना चाहता है, हंसना चाहता है।
किसी के चरणस्पर्श करना चाहते है, सभी को प्रेम करना चाहते परंतु ये बुद्धि है कि रोक देती है कि लोग क्या कहेंगे ? इसका कारण साफ है कि हमारी बुद्धि सब कुछ सुनती तो है परंतु उसे अचेतन मन तक जाने ही नहीं देती है। मैं आप सभी को एक महत्वपूर्ण बात और कहना चाहता हूं कि बुद्धि कभी भी एक्शन नही करती है, बुद्धि कभी भी किसी सुनी हुई बात को अपने से आगे नहीं जाने देती क्योंकि ये अहंकार है बुद्धि का , कि मुझसे ज्यादा होशियार कोई नहीं है। परंतु किसी भी बात को क्रिया रूप देने के लिए , किसी बात को समझने के लिए उसका बुद्धि के पार जाना आवश्यक है, अचेतन मन तक जाना जरूरी है क्योंकि वही से उस सुनी हुई बात को कार्य रूप दिया जाएगा। इसी लिए तो लोग सभी बातो को जानते तो है कि चोरी नही करनी चाहिए, भ्रष्टाचार नही करना चाहिए, झूठ नही बोलना चाहिए, स्त्रियों की इज्जत करनी चाहिए लेकिन होती तो नहीं।
उसका एक छोटा सा कारण वही है की वो संदेश अचेतना तक गया ही नहीं है। हम कितनी बार सुनते है कि स्वच्छता रखनी चाहिए, इधर उधर कूड़ा नही डालना चाहिए परंतु फिर भी हम उसे बार बार करते है इसका भी वही कारण है कि बुद्धि नही मानती और जिसे मानना है उस तक संदेश , बुद्धि जाने नही देती है इसीलिए वर्षो से प्रयास के बावजूद , हम सफल नहीं हो पाते है। यहां पर यही एक सीख है की बुद्धि के साथ विवेकशील बनने का अभ्यास भी करें।
जय हिंद
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी