good education: बचपन से ही अपने बच्चों को भय का वातावरण ही देने की कोशिश करते है, इससे क्या है नुकसान 

बच्चों की तरफ ध्यान देने योग्य बातें बता रहे हैं डा. नरेंद्र यादव 
 

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स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि युवा निर्भय बने, भय को जीवन से निकाल दे। स्वामी जी ने कहा " भय ही मृत्यु है और निर्भीकता ही जीवन है" । स्वामी जी की इन लाइनों का बहुत गहरा अर्थ है कि हर व्यक्ति को भय मुक्त होना चाहिए। राष्ट्र को ऐसे युवाओं की फ़ौज चाहिए जो निर्भीक हो, जो भयमुक्त हो, वो ही राष्ट्र के काम आएगा। परंतु सबसे बड़ी समस्या ये है कि हम बचपन से ही अपने बच्चों को भय का वातावरण ही देने की कोशिश करते है, बच्चो को कभी भी निर्भीक नहीं बनाते, हम शुरू से ही बच्चो को डरा कर ही अपनी बात मनवाने का प्रयास करते है। हमारे समाज मे ऐसी ऐसी कहावतें बनी हुई है।

भय के आगे भूत नाचता है
जिसमें भय को सबसे ऊपर रखा जाता है जैसे एक कहावत है। जिसकी लाठी उसकी भैंस" और एक दूसरी चौपाई है " भय बिन प्रीत नही होती"। एक और कहावत है" भय के आगे भूत नाचता है"। ये जिनती भी बातें है ये सभी दर्शाती है कि भय ही सबसे ऊपर है हम सभी अपने घरों में भी बच्चो को कोई शिक्षा देने के लिए या दो डर का सहारा लेते या फिर लालच का सहारा लेते है तथा ये ही बच्चो  को शिक्षा देने के हमारे पास साधन है। जब हम बचपन में, किशोरावस्था में अपने बच्चों व नवयुवको को भय से या लालच से सुशिक्षित करना चाहते है तो उनमें निर्भीकता कैसे आएगी, ये बात तो सभी को पता है और ये तो शोध भी कहते है कि डर से घृणा पैदा होती है और प्रेम सदैव प्रेरणा पैदा करती है।

जिसमें ताकत है उसी का सब कुछ है
इसी लिए मैं ये कहना चाहता हूँ कि हमे अपने बच्चों को हमेशा प्रेम स्नेह सिखाना चाहिए। अगर हम समाज में, कुटुंब में ये बात प्रचारित करते है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस, तो समाज मे ये ही फैलेगा ना कि जिसमें ताकत है उसी का सब कुछ है, चाहे भले ही वो किसी कानून को न माने। जिसके हाथ मे लाठी है उसी को  सारा लाभ मिलेगा, तब तो सभी लठ बजाने वाले मिलेंगे। कोई भी कानून व  विनम्रता को नही जानेंगे। जिसके हाथ मे लठ है वो ही सब चीजो का मालिक है।

 इसके बाद अगर हम इस कहावत को चरितार्थ करे कि भय के आगे भूत भी नाचते है तो फिर समाज मे सभी भय ही उतपन्न करेंगे क्योंकि ये तो सभी के मन मे समा रहा है कि भय ही सबसे महत्वपूर्ण है। अगर भय से ही सब कुछ होने लगे तो हमे ये अपेक्षा नही करनी चाहिए कि परिवार में, समाज मे हम प्रेम की धारा बहा सकते है बिल्कुल नही बहा सकते। मैं इस मामले में सौ प्रतिशत पक्का हूँ कि भय से केवल घृणा पनपती है, भय से भले ही एक बार कोई भी डर जाए लेकिन वो कभी भी डराने वाले इंसान से प्रेम या स्नेह नही करेगा बल्कि वो उससे बदला लेने की कौशिश करेगा। मैं कदापि इस बात से सहमत नही हूँ कि भय बिन प्रीति नही होती। 

 प्रिय युवाओं प्रीति सिर्फ निर्भयता से ही होती है। हां डर से व्यक्ति सतर्क जरूर हो जाता है वो दिखाने के लिए एक बार या दो बार बात जरूर मान लेगा परंतु जैसे उसको मौका मिलेगा, वो बदला अवश्य लेने का प्रयास करेगा। इस्कू ऐसे कहा जा सकता है कि" भय बिन माने न कोई"। लेकिन भय से प्रीति होती है ये तो बिल्कुल मानने वाली बात नही है। हां, आप भय से कोई कार्य तो करा सकते हो लेकिन भय से प्रेम पैदा नही कर सकते। 


आप जिस समस्या को प्रेम से हल कर सकते हो , उसे क्रोध या घृणा से तो कदापि नहीं कर सकते हो। क्या हम किसी से डरा कर स्नेह प्रेम या आदर सम्मान पा सकते है बिल्कुल नही पा सकते। मैं अपने शोध के अनुसार एक बात और स्पष्ट करना चाहता हूँ कि प्रेम , सम्मान, आदर व केअर का आधार है बिना प्रेम के कोई भी आपको दिल से सम्मान, आदर नही करेंगे। जब हम कहते है अगर यश और कीर्ति पाना है तो वो तभी मिलेगा जब आपको सभी प्रेम करेंगे , अगर प्रेम नही करते तो हमे कुछ दिन के लिए या जब तक हम पावर में रहते है या आंसन्द पर रहते है तब तक तो लोग आपको दिखाने के लिए सम्मान देंगे लेकिन जैसे हम, आप पावर से हटे या आंसन्द से अलग हुए , हमे कोई नमस्ते करने वाले भी नही मिलेंगे। 


स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता है 
अगर हमने अपने घर की पाठशाला में किसी प्रशिक्षण की व्यवस्था की होती तो इससे दो फायदे होते एक तो रेवन्यू बढ़ता और दूसरा लोगो को समय समय पर प्रशिक्षण देकर उनके स्वभाव में बदलाव लाया जा सकता था। अगर डर से सब कुछ सुधरता तो चोरी बन्द होनी चाहिए थी , अगर डर से छेड़छाड़ रुकती तो आज हमारी सभी बेटियाँ सुरक्षित होती और अगर डर से ही बच्चे संस्कारित बनते तो आज हमारे समाज मे जो किशोरावस्था में युवा है या नवयुवक है वो अच्छे संस्कारीत नागरिक होते लेकिन ऐसा नही हुआ क्योंकि हमारी परवरिस में खोट है।


 हमारे यहां सालों से जो बाते चली आ रही है वो बिल्कुल विपरीत है, की भय से ही प्रीति होती है, या जिसकी लाठी उसकी भैंस या भय के आगे भूत नाचता है। इसके विपरीत मैं बात करूं तो हमारे यहां एक कहावत और है कि भय का भूत बन जाता है इसका अर्थ यह हुआ कि जब कोई भी व्यक्ति डर जाता है तो उसे डर के कारण अच्छा भला इंसान भी भूत नजर आने लगता है इसका अर्थ यही है कि जब हम डर में होते है तो हमारे शरीर और मन मस्तिष्क का मैकेनिज़्म सिकुड़ जाता है और हमारा नर्वस सिस्टम सही से काम नही करता तथा हमारी आर्टरीज़ सिकुड़ने के कारण हार्ट को रक्त की सप्लाई में बाधा उत्तपन्न होती है जो कि हमारी सेहत के लिए खतरनाक होती है। इसलिए कभी भूल कर भी बच्चो को डराने का काम नही करना चाहिए। 

मैंने बहुत बार देखा है कि हम छोटे छोटे बच्चों को सुई का डर दिखाते है, उसे हाऊ का डर दिखाते है और उन्हें बहादुर बनाना चाहते है ये कभी भी सम्भव नही होगा। जिस व्यक्ति में निर्भकता होती है वो स्वर्ग समान है। अब मैं यहां एक बात और बताना चाहता हूँ कि केवल गलत पालन पौषन ही नही बल्कि व्यक्ति अपने कर्मो के वजह से भी भयभीत रहता है और उससे किसी का भी जीवन नरक बन जाता है । जैसे जो व्यक्ति झूँठ बोलते है, जो बेईमानी करता है, जो गलत कार्य करते है, जो चोरी करते है उनमे अपने आप ही भय पैदा हो जाता है और उसको दिल व रक्त दबाव की बीमारीं होती है। 


इसलिए मैं यही कहना चाहता हूँ कि जीवन मे भय नरक के समान है और निर्भयता स्वर्ग समान है। इन सब कहावतों की वजह से हमारे राष्ट्र, समाज, कुटुंब व व्यक्ति को सबसे बड़ा नुकसान ये हुआ कि आज एक सभ्य व्यक्ति तो दबू बन गया और एक झूठा, फरेबी, उदण्डी, भ्रष्टाचारी व्यक्ति समाज मे अपना वर्सचव दिखाता है। 


जो देशभक्त है जो सच्चा है, जो ईमानदार है, वो बेचारा भय के कारण चुप रहता है क्योंकि उसे समझाया ही ऐसे गया है और जो डकैत है चोर है , अपराधी है वो निर्भय होकर चलते है। इस परंपरा ने हमारी संस्कृति को बहुत डैमेज किया है। इसलिए मैं यही कहना चाहता हूँ कि अपने बच्चों को जितना प्रेम स्नेह कर सकते हो करो, उन्हें भयभीत मत करो। उन्हें बचपन से ही बहादुर बनाने की कौशिश करो ताकि उनकी पर्सनलिटी उत्तम बने।जो राष्ट्र के निर्माण में काम आवे।
लेखक, डा. नरेंद्र यादव, उपनिदेशक नेहरू युवा केंद्र हिसार व राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता