जीवन में कैसी होनी चाहिए बेटों की परवरिश इन बातों का रखना होगा ध्यान
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आज एक ऐसे विषय पर विचार प्रकट कर रहे हैं नेहरू युवा केंद्र हिसार के उपनिदेशक डा. नरेंद्र यादव। जो बहुत ही महत्वपूर्ण है और सभी को चिंतन करने की भी जरूरत है। विषय ऐसा है कि न केवल हर मां को व हर पिता को विचार करना चाहिए बल्कि समाज के हर इंसान को तथा देश के हर नागरिक को विचार करना चाहिए जिनके घर में बेटे है। उनकी परवरिस कैसी हो, ये हर उन माता पिता को सोचना चाहिए जिनके घरों में सिर्फ लडक़े है या बेटियों के साथ बेटे भी है या फिर सिर्फ बेटे हैं।
संवेदनशीलता के साथ चिंतन मनन करने की आवश्यकता है
साथियों विषय बहुत ही गंभीर है जिस पर हम सभी को बहुत संवेदनशीलता के साथ चिंतन मनन करने की आवश्यकता है। हम सदैव बेटियों को ज्यादा हिदायत देते है कि बेटी घर से बाहर जाओ तो सम्भल कर जाना, किसी से बात मत करना, हंसना मत, अंधेरा होने से पहले घर आ जाना, झुक कर चलना वगैरा वगैरा। साथियों क्या कभी आपने विचार किया है कि ऐसा हमारी बेटियों को हर माता पिता क्यों कहता है। उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ,ये कहना जरूरी हो जाता क्यों कि हमने अपने लाडलो को कभी इस प्रकार की परवरिस दी ही नहीं जिससे हमारी हर बेटी सुरक्षित महसूस करे। हमारी प्यारी बहन व बेटियों को आखिर किसकी वजह से डर लगता है इसका एक और बड़ा स्पष्ट उतर है कि हमारी बहन बेटियों को सिर्फ और सिर्फ हमारे ही समाज के बेटों से डर लगता है ऐसा क्यों है। ऐसा इस लिए है कि हमारे बेटे उस तरह से नही पाले जाते जिस तरह से उनका पालन पौषण होना चाहिए था ।
क्या कभी अपने बेटों को कहा कि बेटा---
1. सम्भल कर जाना
2. बेटा, समाज की हर बेटी को अपनी बहन समझना
3. बस पर चढ़ढ़ कर , बेटियों को देख कर सीटी मत बजाना।
4. बेटा किसी बेटी पर मत हंसना।
5. बेटा, समाज की हर बेटी की सुरक्षा के लिए सदैव तत्पर रहना।
6. स्कूल, कॉलेज की हर बेटी को अपनी बहन का दर्जा देना।
7. बेटा कभी नशे का प्रयोग न करना और न ही किसी को इस के लिए कहना।
8. बेटा , कभी किसी अपराध के जाल में न फसना।
9. सदैव अपने चरित्र का निर्माण करना और अपना व्यवहार में विनम्रता रखना लेकिन बहादुर भी बनना।
10. अपने खानदान की परंपरा की रक्षा तथा अपने मातपिता पर गर्व करना सीखना।
जब पिता घर में आता है तो बेटा बाहर
साथियों क्या हम जब हमारा बेटा घर से बाहर कदम रखता है तो इन बातों से आगाह करते है, मुझे लगता है कि हम ये 10 बाते अपने बेटों से कभी नही कहते होंगे क्यों कि मुझे पता है कि बहुत से पिता तो अपने बच्चों से बाते ही नहींकरते है। जब पिता घर में आता है तो बेटा बाहर और जब बेटा घर मे आता है तो पिता बाहर। और हमारी माताएं जिनके बेटे है वो अपने बेटों की तो गलती मानती ही नहीं है। मुझे ऐसा लगता है कि जितनी सभ्यता अपने लड़को को सिखाना जरूरी है उतना बेटियों को सिखाने की जरूरत नहीं है।
बेटों को सिखाना जरूरी है
अब समय आ गया है कि हमे अपनी बेटे और बेटियों की परवरिस में आमूल चूल परिवर्तन करने की जरूरत है। बेटियों को दबाने की जरूरत नही है, बेटों को सिखाना जरूरी है क्यों कि वो जब अपने घर मे रहते है तब तक तो उसे महिलाओं के सारे रिश्ते समंझ में आते है । उन्हें बहन भी नजर आती है, उन्हें माँ भी नजर आती है, उन्हें बेटी भी नजर आती है उन्हें चाची, ताई भी नजर आती है। लेकिन जैसे ही वो घर की दहलीज से बाहर निकलते है उन्हें सभी महिलाएं , सिर्फ औरते ही दिखती है उन्हें वहां कोई रिश्ते नजर नही आते ।
सभी बहन, बेटियां, माताएं सिर्फ एक ही रूप में नजर आती है और वो होती है सिर्फ औरते। अपने घर से बाहर निकलते ही ये सभी रिश्ते कहां गायब हो जाते है हमारे बेटों को बाहर रिश्ते क्यों नजर नही आते। अगर ये रिश्ते बाहर भी नजर आए तो हमारी बेटियां तो वैसे सुरक्षित होंगी और वे बेखौफ सब जगह घूम सकती है। इस लिए मेरा हर उस मातपिता से गुजारिश है कि वो अपने बेटों की परवरिस में कभी भी कोताही न बरतें। और कभी भी ये न सोंचे की ये तो लड़के है और कोई गलती कर भी दे तो कोई फर्क नही पड़ता है । भाइयों बहनों , फर्क बहुत पड़ता है आपकी गैर जिम्मेदारी पूर्ण परवरिस ने पूरे समाज को खौफनाक बनाने में सहयोग कर रहे है जिसमे हमारी बेटियां असुरक्षित महसूस करती है। वो भी तो किसी मातापिता के नालायक और असभ्य बेटे होंगे जो हमारी बेटियों पर तेजाब से वार कर देते है या छेड़छाड़ करते है जो समाज मे भेडिये के रूप में रहते है।
क्या उनके मातपिता ने उनकी सही समय पर सही परवरिस की है या सिर्फ उनको पक्ष ले कर उनको बिगाड़ने का काम किया है क्या कभी उनने अपने बेटों को समाज मे बेटियों के साथ कैसे रहा जाता है क्या ये सिखाने के लिए उसकी घर मे हर दिन पाठ शाला लगाई। क्या कभी हमने अपने बेटों को अपने समाज मे बहन, बेटियों की इज्जत करनी सिखाई, क्या हमने अपने बेटों को देश का एक सच्चा, बहादुर नागरिक बनना सिखाया, बेटियों की इज्जत करना, व हर बेटी को सुरक्षा देना सिखाया, क्या हमने अपने बेटों को कभी समाज मे सभ्यता स्वरूप रहना सिखाया अगर नही तो हम बेहद गैर जिम्मेदार मातपिता है अगर हाँ तो मुझे लगता है कि हमने अपने बेहतर समाज के निर्माण में अपनी जुम्मेदारी निभाई है।
अपने बेटों को ऐसी परवरिस दो
दोस्तो मैं आज हर मातपिता से दादा दादी से नाना नानी से चाचा चाची से बहन, बेटियों से, हाथ जो कर दिल की गहराइयों से यही अनुरोध करना चाहता हूँ कि अपने बेटों को ऐसी परवरिस दो जिससे वो समाज की हर बहन, बेटियों को सम्मान व इज्जत देना सीखे। और वो जहां रहे वहां हर बहन , बेटी अपने को असुरक्षित नही बल्कि अत्यधिक सुरक्षित समझे। और समाज मे हर तरफ बेखौफ आ जा सके। साथियों , आप इसके लिए अपने बेटों की आयु के हिसाब से चार वर्गों में बांट ले और उनकी परवरिश के लिए कुछ गतिविधियां तय कर ले।
यह करें
पहला आयु वर्ग रखे 6 से 10, दूसरा आयु वर्ग रखे 11 से 14, तीसरा आयु वर्ग रखे 15 से 19 और चौथा आयु वर्ग रखे 20 से 24 वर्ष तक । पहले के लिए सभी बेटों को अपने से बड़ो को नमस्ते करना सिखाए, उन्हें बड़ों के चरण स्पर्श करने सिखाएं, गुस्से पर कंट्रोल करना सिखाएं, पौष्टिक आहार लेना सिखाएं, व्यायाम का महत्व बताएं , दौड़ने की आदत व खेलने की आदत डालें, पढ़ाई के साथ साथ खेल के मैदान में भी लेकर जाए, अपने अपने अंडर गारमेंट्स खुद धोना सिखाएं, अपने घर मे ही झाडू लगाना सिखाए, मोबाइल व टेलीविजन से दूरी बनाने की आदत डालें, सभी बेटियों की इज्जत कराना सिखाएं,
उसे आध्यात्मिकता की ओर लेकर जाए और धर्म के बारे में ज्ञान कराएं तथा पाखंडियों से बचना सिखाएं, प्रात: जल्दी उठना सिखाए, कहते है अर्ली राइजर इज ऑलवेज विनर । दूसरे आयु वर्ग में ब्रह्मचर्य का पालन सिखाए, ध्यान लगाना सिखाएं, अपने सभी कपड़े धोने के लिए बोले, घर के सामने गली में झाडू लगाना सिखाएं, रोज रनिंग करना सिखाएं, आपस मे बांट कर खाना सिखाएं, अपने से बड़ो के साथ विनम्रता से बात करना सिखाएं, घर मे इंटरेक्शन का माहौल बनाएं, इस आयु वर्ग के बेटों की बात को सुनने की आदत व कहने की आदत विकसित करें, अपने घर के बाहर सभी महिलाओं को इज्जत देना व इज्जत से बोलने की आदत डालें, कभी भी अपने बेटे की गलती पर पर्दा न डाले उसमे सुधार करने की आदत डालें,
सदा अच्छे कार्य के लिए बच्चे को प्रोत्साहित करें व परितोषित भी दे, और गलत करने पर सजा भी दे, बच्चे की गलत जीवन शैली की तरफ सदैव रोके, भागवत गीता पढ़ने की आदत डालें, महान व्यक्तियों की जीवनी पढ़ना सिखाएं, स्वतंत्रता आंदोलन का महत्व बताएं । तीसरे वर्ग में बेटों को पढ़ाई पर फोकस करना सिखाएं, किसी भी बात का दबाव न बनाए बल्कि उसे करना सिखाएं, आप भी अपने आप पर सयम रखे , जीवन शैली भड़काऊ न रखे और मातपिता की छवि प्रदर्शित करें, अच्छे दोस्तो की पहचान बताएं, गलत संगत में न जाने दे, जरूरत के अनुसार दान करना सिखाएं , अपनी संस्कृति को जनाना सिखाएं चौथा अपने सारे कार्य खुद करना सिखाएं, जीवन मे स्वावलम्भन सिखाएं, स्वाभिमान सिखाएं, जीवन सभी इज्जत करना सिखाएं , मातपिता को ही आदर्श मानना सिखाएं, पर्यावरण का संरक्षण सिखाएं , पानी की पूजा करना सिखाएं, देश हित मे बलिदान करना सिखाएं, सर्व जन हिताय की बात करे ।
आज अपने समाज के सभी बेटों को चिंतन करने की नसीहत देना चाहता हूँ कि अपना चरित्र इतना उच्च स्तर का निर्मित करे जो ना केवल युवाओं को उच्च सिद्धान्त दे बल्कि हर बहन , बेटी भी अपने आपको ऐसे समाज का हिस्सा माने जो सुरिक्षत है, जो सुंदर है, जो सभ्यता लिए हुए है, जो रिश्तों नातो से मजबूत हो। जिस दिन बेटों , तुममें ये संवेदना आ गई उस दिन तुम से समाज सुरक्षित माना जायेगा , असुरक्षित नही। इस लिए हर मातपिता अपने बेटों की परवरिस को ज्यादा ईमानदारी से निभाएं।
नरेंद्र यादव
उपनिदेशक, नेहरू युवा केंद्र, हिसार
राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता।