mental fitness: बच्चो को रफ़ टफ बनाने के लिए पेरेंट्स और टीचर उनके मेंटल फिटनेस के लिए काम करे

आज के बच्चे कल के नेता 
 

mahendra india news, sirsa
नेहरू युवा केंद्र के उपनिदेशक डा. नरेंद्र यादव ने बताया कि जब हम स्कूल में पढ़ते थे तो एक नारा बहुत लगाया जाता था, वो था "आज के बच्चे कल के नेता"। एक और दूसरा नारा हम लगाया करते थे कि" जो हमसे टकराएगा, चूर चूर हो जाएगा"। ये नारे जब हम बचपन मे लगाते थे तो कोई मरे हुए मन से नही लगाते थे, हम पूरे जोश और होंश में ये बाते नारो के रूप में बोलते थे। 

ऐसे नारे लगाने पूरा जोर लगाते थे
इसका अर्थ ये रहता था कि हमारे देश के बच्चे और खासकर गांवो में बच्चे इतने मजबूत होते थे कि वो ऐसे नारे लगाने पूरा जोर लगाते थे। हमारे बचपन मे दो काम बहुत ही जोर से किये जाते थे, एक तो जोर जोर से पहाड़े बोलना और दूसरा नारे भी जोर जोर से लगाते थे । नारे चाहे स्कूल में थे या स्कूल से बाहर हो, उस समय बच्चे बहुत जोश और हौंसले से बोलते थे, कई बार तो दो ग्रुप में बोलने की कॉम्पिटिशन भी हो जाता था कि कौन ग्रुप तेज बोलेगा।

बोलने का आनंद भी था
यहां मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि उस समय के बचपन मे ताकत थी, होंसला था, हिम्मत थी, आत्मविस्वास था, जोश था और बोलने का आनंद भी था। वो इसमे खुशी का इजहार करते थे। उनके बीच मे मारकाट वाली प्रतिस्परदा भी नही होती थी। लेकिन जब हम आज कल के बच्चो को देखते है प्रतिस्परदा है, ईर्ष्या है, द्वेष है, आत्मविश्वास की कमी है, बोलने में झिझक है, नारे लगाने में शर्म है, आजकल बच्चे ही, बच्चे वाले कार्य करने में झिझक महसूस करते है। 

चूर चूर हो जाएगा।
अगर ऐसी स्थिति रहेगी तो क्या हम कह पाएंगे कि आज के बच्चे कल के नेता या फिर हमारे आजकल के बच्चे ये नारा लगा पाएंगे कि जो हम से टकराएगा, चूर चूर हो जाएगा। नही कदापि नही, क्योंकि आजकल बच्चो पर पहली कक्षा से ही पढ़ाई का इतना दबाव पड़ जाता है कि वो बड़ी क्लासेज में पहुंचते पहुंचते तो स्कूल, कॉलेज से ऊब चुके होते है। अब पेरेन्ट्स अपने बच्चों को ढीला नही छोड़ना चाहते है। 

किशोरावस्था कब गुजर गई जान ही नही पाते
स्कूल के साथ साथ ट्यूशन भी चलता है, बच्चे के पास खेलने का समय भी नही होता है। हर बच्चा डॉक्टरी, इंजीनियर, वकील, सिविल सर्विसेज की दौड़ में लगा हुआ है और भाग रहा है अंधाधुंध। न कोई शकुन है , न कोई आनंद है, न कोई मस्ती है और न कोई इसकी सीमा है कि कहां तक दौड़ना है।

बचपन कब गुजर जाता है पता ही नही चलता, किशोरावस्था कब गुजर गई जान ही नही पाते, युवा कब बन गए और कब युवावस्था कब चली गई जान ही नही पाते और एक दिन लगता है कि कब जीवन चला गया, हम इसका आनंद ही नही ले पाए। न तो आज के बच्चो ने नारे लगाए, न पेड़ पर चढ़े, न कभी जोहड़ तालाबो में तैरना सीखा, न कभी ऊंट की सवारी की , न कभी गर्मी की भारी दोपहरी में कांटो में दौड़े, न ही कभी एक कुल्फी को मिल कर चूसा, न ही कभी भरी दोपहरी में गर्म रेत पर चले, ये अनुभव जब जीवन से दूर रहते है तो शायद जीवन उतना आनंद भरा बचपन लिए हुए नही होता है। 

रफ टफ रहने वाली एक्टिटीज की
आज के बच्चो को जो सबसे अधिक जरूरत है रफ टफ रहने वाली एक्टिटीज की , जो आज बच्चो के मातपिता उन्हें नही करने देते। मैं , ये बहुत ही अचरज से बता था हूँ कि आज कोई भी बच्चा या किशोर या युवा नंगे पैर चलते नही दिखाई देंगे और हमारे आज भी अगर नंगे पैर घर मे टहल ले तो बहुत कुछ सुनने को मिलता है। मानसिक रूप से तेज हो सकते है लेकिन रफ टफ नही है, कुछ तो पेरेंट्स को करना होगा जिससे बच्चे मजबूत बने। आज के बच्चे न तो पेड़ पर चढ़ सकते है, 

गिल्ली डंडा नही खेला
बहुत को तैरना नही आता, किसी ने भी कैंचीमार साईकल नही चलाई, किसी ने भी गिल्ली डंडा नही खेला, किसी ने भी कंचे नही खेले, कोई भी अपने कपड़े खुद नही धोते, कोई भी अपने बर्तन खुद साफ नही करते, कोई भी पैदल नही चलते। ये सभी कमियां बच्चो को कमजोर बनाती है । बच्चो को मानसिक रूप से स्ट्रांग बनाना बहुत जरूरी ताकि वो अपने जीवन मे आने वाली सब मुशीबतों को आसानी से झेल सके, ये नही की मुशीबत आते ही  रोने लगे, तनाव में आ जाये, अवसाद में आ जाये। 

एक और बात मैं, बच्चो से सुनता हूँ कि मेरा मूड खराब है, मुझे गुस्सा आ रहा है,मैंने जो कहा है वो ही करो। ये सब उनके जीवन के लिए घातक है। आओ अब बच्चो को रफ टफ बनाने के लिए कुछ गतिविधियो की चर्चा करते है:-
1. बचपन से ही बच्चो की आदत स्ट्रांग बनने की बनाएं।
2. बच्चो कोई भी चीज आसानी से न दे।

3. बच्चो नंगे पैर चंलने दे, इधर उधर नंगे पैर चंलने की आदत डालें , इससे उनमें सहन करने की आदत बढ़ेगी।
4. बच्चो के लिए अलग से खाना न बनाएं, जो घर मे बनता है उसे ही खाने की आदत बनाएं।
5. बच्चो की कोई भी डिमांड , उनके कहते ही पूरी न करे, कम से कम चार छह बार कहने पर ही करे।
6. जब उसकी छह साल की उम्र हो तो उसे अपने काम करना सिखाये , जैसे खुद का अंडर वियर धोना, जैसे अपने बर्तन धोना। इससे उसमे कार्य करने की आदत विकसित होगी, अहंकार से दूर रहेगा।


7. बचपन मे ही उसे सामाजिकता का ज्ञान कराए।
8. बचपन मे ही उसे मैडिटेशन करना सिखाएं ताकि उसमें अधीरता न आये।
9. उनसे कभी कभी मेहनत का काम भी कराए, जैसे घर मे झाड़ू लगाना, पौछा लगाना, कपड़े धुलवाना, सावर्जनिक रास्ते पर झाड़ू लगवाना , ये सब गतिविधियां , उनमें उत्साह और आत्मविश्वास पैदा करेगी।
10. बच्चो बचपन मे कोई कलात्मक अभ्यास, कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट वादन, किसी प्रकार का गायन जरूर सिखाये। बच्चो को आठ साल की उम्र से दौड़ना जरूर सिखाये, तैराकी सिखाये, घुड़सवारी सिखाएं, ऊंट की सवारी करवाएं, रोप कलाइमिंग, लांग जम्प, हाई जम्प आदि की प्रैक्टिस जरूर कराए , इससे उनका आत्मविश्वास , रिस्क लेने की क्षमता बढ़ती है।

ये सब गतिविधियां , बच्चो को मानसिक रूप से रफ टफ बनाती है और उनका मानसिक भय भी कम हो जाता है, जीवन मे मजबूती से आगे बढ़ते है। इससे मानसिक फिटनेस आती है, सहनशक्ति बढ़ती है, डिमांड कम होती है, कुछ भी खा पी सकते है, मेहनत की आदत पड़ती है , कैसी भी परिस्थिति में जीने की आदत बन जाती है, इमोशनली स्थितिरता आती है, मानसिक रूपसे वीकनेस नही रहती।
इम्पेक्ट क्या होगा:- इन सब प्रकार की गतिविधीयो से बच्चो की मानसिक फिटनेस बेहतरीन होगी और वो रफ टफ बनेंगे, सहनशक्ति बढ़ेगी, धर्यवान बनेंगे, चूजी नही होंगे, क्रोध नही आएगा।
लेखक डा. नरेंद्र यादव, उपनिदेशक, व राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता