TV पर चलने वाले विज्ञान हमारे बच्चों को डरपोक बनाने का काम कर रही है, तभी तो कॉकरोच तथा मच्छर से भी डर लगता हैं।

 
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर ने बताया कि आज कल टीवी पर आ रहे विज्ञापन को लेकर लिखा है। इस लेख में उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया दी है। वह काफी हैरान करने वाली है। क्योंकि टेलीविजन पर चलने वाली एडवर्टिसमेंट  तो हमारे समाज में डर पैदा कर रही है। आपने सभी भारतीय टेलीविजन पर चलने वाले विज्ञापनों को तो देखा ही होगा, और रोज ही देखते होंगे। हमारे यहां कुछ विज्ञापन इतने वाहियात होते है जो लगातार हमारे छोटे छोटे बच्चों को इतना डरपोक बना रहे है कि बच्चों को कोकरौच से भी डरता दिखा रहे है और दूसरी तरफ मच्छर मारने वाली एडवर्टिस्मेंट भी कुछ इसी तरह से दिखाई जाती है, जिसमें ऐसा लगता है जैसे मच्छर तो किसी की जान ही ले लेगा। जागरूक करना एक अलग विषय है लेकिन उसी की आड़ में अपनी मच्छर मारने की दवाई बेचने की तरफ बढ़ रहे हैं। मैं आपको एक विज्ञापन जिसमें एक बच्चा चिलाता है कि मां कोकरोच , मां कोकरोच आ गया हैं, जिसमें दिखाया जाता है कि बच्चे की मां हिट नामक स्प्रे लेकर आती है और कोकरोच पर स्प्रे करती है जिससे कोकरोच मारता है, इसका अर्थ यह हुआ कि कोकरोच केवल हिट से ही मरेगा। नही तो कोई बच्चें इन कोकरोच से बच नहीं पाएंगे, ऐसा कुछ ऐसे विज्ञापन में दिखाया जाता हैं।


 जब मच्छर की बात आती है तो मां अपने बच्चे के साथ ऐसे बिहेव करते दिखाई जाती है जैसे कि बिना आल आउट के तो बच्चे मच्छर से बच ही नही पाएंगे। इसका अर्थ यही हुआ कि हमारा सिस्टम कभी भी किसी विज्ञापन का आंकलन नही करता है, जो उनको आसान तथा अधिक प्रभावशाली लगे, उसे ही दिखाना शुरू कर देते है। उसका क्या असर पड़ेगा हमारी नई पीढ़ी पर, इसकी चिंता किसी को नहीं हैं। हमारी अथॉरिटी को चाहिए कि ऐसे सभी विज्ञापनो का सही तरीके से आंकलन के उपरांत ही टेलीविजन पर दिखाना चाहिए। किसी भी चीज को बेचने के लिए बनाए गए एड ऐसे नही होने चाहिए , जो हमारे छोटे बच्चों को डरपोक बनाने का काम करें। क्या हमे ये विचार नहीं करना चाहिए कि हम अपने लाभ के लिए देश के बच्चों को किस तरफ धकेल रहे है? हम अपने छोटे नन्हे मुन्नों को किस तरह की एड दिखा रहे है? हम सामान बेचने के लिए कोकरोच तथा मच्छर से डराने वाले विज्ञापनों का सहारा ले रहे हैं। मेरा ऐसा मानना है कि जिस प्रकार से हमारे भारतीय शहरी परिवारों में अपने बच्चों को अवश्यकता से अधिक सहारा दिया जा रहा है, उससे तो ये विज्ञापन हमारे शहरी पेरेंट्स को और भी कमजोर करने का कार्य कर रहे है। उन्ही मातापिता की मानसिक रूप से कमजोरी का फायदा उठा कर ही, कोकरोच एवम् मच्छरों जैसे मामूली कीट को मारने या बचने के लिए ऐसी जहरीली दवाओं की एड तथा बिक्री धडल्ले से बेच रहे हैं। इन्ही की वजह से हमारे बच्चे आज छिपकली, कोकरोच, मक्खी मच्छर तथा घरों में आमतौर पर मिलने वाले छोटे छोटे कीट पतंगों से भी डरने लगे हैं। क्या हमे बच्चों की परवरिश इस ढंग से करनी चाहिए? क्या हमे अपने बच्चों की परवरिश में निर्भीकता की जरूरत नही है ? क्या भारतीय शहरी क्षेत्रों में हर मातापिता को अपने बच्चों को इतना कमजोर , कायर, असामाजिक, असहयोगी बनाने का जो कार्य चल राह है वो वास्तव में बहुत दुखद हैं। हर मातापिता अपने बच्चों को हॉर्लिक्स से सशक्त बनाना चाहते है, हर पेरेंट्स अपने बच्चों को घर में बंद करके ही विकसित करना चाहते है, अधिकतर पेरेंट्स बच्चों को खेल के मैदान में नही ले जाना चाहते, अधिकतर मातापिता अपने बच्चों को सामाजिक कार्यों से नही जुड़ने देते है, अधिकतर पेरेंट्स अपने बच्चों को व्यायाम नहीं करवाते है। बच्चा अगर खेलने चला जाए तो घर में पढ़ाई को लेकर क्लेश हो जाता हैं।


आज मातापिता अपने बच्चों को किसी भी सामाजिक कार्यक्रम में भी जाने से रोकते हैं और अगर कोई बच्चा अपनी रुचि से ऐसे सामाजिक कार्यक्रमों में चले जाते है तो पेरेंट्स उनसे पूछते है कि तुम्हारा वहां पर क्या काम था। मैं यहां भारत के हर पेरेंट्स से पूछना चाहता हूं कि क्या आप अपने बच्चों को ऐसे ही कोकरोच से , छिपकली से, मच्छर से, मक्खी से, छोटे छोटे कीट पतंगों से डराते रहेंगे तथा ना उन्हे सामाजिक बनने देंगे, ना उन्हे शारीरिक रूप से अथवा मानसिक रूप से सशक्त बनने नही देंगे। 


 और फिर चाहते है कि हमारे बच्चे संस्कारित बनें, सामाजिक बनें, बहादुर बनें, मजबूत बनें, लेकिन ऐसा कभी हो नही सकता है कि हम सिखाएं तो स्वार्थी बनना और चाहते है कि वो राष्ट्रभक्त बनेंगे, वो मातापिता भक्त बनेंगे, बिलकुल नहीं बनेंगे। आओ हम सब मिलकर अपने बच्चों के खातिर ऐसे विज्ञापनों पर रोक लगवाने के लिए खड़े हो, अपने बच्चों के व्यक्तित्व विकास के लिए सामाजिक, संस्कारित,तथा बहादुर बनाने के लिए उनके लिए व्यक्तित्व निर्माण के सभी रास्ते खोल दें। 
जय हिंद, वंदे मातरम