Tips for students and parents: विद्यार्थिओं को जीवन मे ब्रह्मचर्य के अर्थ को समझना क्यों है जरूरी
mahendra india news, sirsa
नेहरू युवा केंद्र के उपनिदेशक डा. नरेंद्र यादव ने कहा कि जब जीवन मिलता है तो ये हम सब के लिए वरदान होता है जीवन देना परमात्मा का आशीर्वाद है वो हमें परमात्मा के कारण हम सब को मिला। परन्तु इसको सही तरीके से चलाना हमारा काम है, और जीवन को सिद्धान्तों के साथ चलाना ही हमारा धर्म है, या इस जीवन को भी हम दूसरे के अनुसार चलाएंगे।
शिक्षण काल मे सजने संवरने से समय नष्ट होता है
विद्यार्थियों से अपील है कि शिक्षण काल मे सजने संवरने से समय नष्ट होता है और लक्ष्य में भी भटकाव होता है, उस लेख को पढ़ कर हमारे एक साथी ने कहा कि न तो अब कोई ऐसे अभिभावक है, न टीचर है और ना ही ऐसे विद्यार्थी है इस लिए इन मे बदलाव होना चाहिए। मैं ये जानना चाहता हूँ कि कौन से ऐसे अभिवावक है जो अपने बच्चों को बिगाडना चाहते है।
जीवन के इन सिद्धान्तों में
ये जिम्मेदारी सदैव ही शिक्षक व शिक्षण संस्थानों की होती है और जीवन के इन सिद्धान्तों में कभी कोई बदलाव नही हो सकता, अगर आप इनको लिबरल करना चाहते हो तो करो, इससे तो शिक्षकों का,विद्यार्थिओं का तथा अभिभावको का व शिक्षण संस्थानों का क्षरण ही होगा। शिक्षा का स्तर हमेशा उच्च ही होना चाहिए, अगर इनमें ढील दी तो ना हम शोध कर पाएंगे, वैज्ञानिक तैयार कर पाएंगे , न हम कोई अच्छे शिक्षक तैयार कर पाएंगे और न ही हम अच्छे नागरिक तैयार कर पायेंगे। जीवन के सिद्धान्तों के साथ कभी भी समझौता नही हो सकता और अगर किया जाता है तो हम अपनी नई पीढ़ी को ही बर्बाद करने का काम करेंगे। क्या मैं ये लिखूं की बच्चो को बगड़ने के लिए छोड़ दो और ख़ूब फैशन करके लड़के लड़कियां स्कूल, कॉलेज में आये, या मैं ये कहूं कि बच्चे उटपटांग कपड़े पहन कर स्कूल में आएं या मैं ये लिखू की सभी शिक्षक भी स्कूल को फैशन शो का रैंप बना दे।
शिक्षा के नाम पर फिर अक्षर ज्ञान भी नही होगा
जीवन के जो सिद्धान्त है अगर उनका पालन नही किया गया तो शिक्षा के नाम पर फिर अक्षर ज्ञान भी नही होगा। जीवन के सिद्धान्त कभी नही बदले जा सकते, पश्चिमी देशों ने सब कुछ बदल कर देख लिया , खूब मौज मस्ती करके देख लिया, तो फिर क्यों परेशान है अपने बच्चों से , जिनके बच्चे स्कूल्स में रिवाल्वर लेकर जाते है और कितने कितने कितने बच्चो को मार देते है, क्राइम बढ़ता जा रहा, छोटी छोटी उम्र में सेक्स की तरफ आकर्षित हुए और सेक्स को छोटी से आयु में ले आये तो, कौन से वो श्रेष्ठ इंसान बन गए, जीवन को जंगली ही बना लिया। जो परिपक्वता आनी थी वो नही आई। और 13 - 13 साल के बच्चे अंदर से खोखले हो गए, क्यों अब पाश्चत्य संस्कृति के लोग भारत की संस्कृति को अपनाना चाहते है, क्यों योग की तरफ लोग जा रहे है, क्यों लोग इस मांस मछली के खाने को छोड़ शाकाहार अपना रहे है, क्यों विदेशी लोग शान्ति की तलाश में घूमते है अगर जीवन को ऐसे ही छोड़ दिया जाए तो इंसान पशु बनने में देर नही लगाएंगे।
अंधविश्वास से ऊपर उठने की है
मनुष्य के सिवा कोई भी ऐसा जीव नही है जिसके जीवन को तरसना पड़ता हो या उन्हें चलना सिखाना पड़ता हो या किसी जीव के बच्चे को तैरना सिखाना पड़ता हो या उनको खाना खाने की ट्रेनिंग देनी पड़ती हो , सिर्फ इंसान के बच्चे ही है जिन्हें हर चीज की ट्रेनिंग देनी पड़ती है नही तो ये तो चलना भी न सीखे, खाना भी न सीखे, बोलना भी न सीखे।
इसलिए मैं यही कहना चाहता हूँ कि हमे अपने जीवन सिद्धान्तों में बदलाव करने की जरूरत नही है अगर जरूरत है तो हमे अपनी सोंच वैज्ञानिक बनाने की है, अंधविश्वास से ऊपर उठने की है, वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है ताकि हम वैज्ञानिक पैदा कर सके, ताकि हम पृथ्वी को सुंदर बना सके, ताकि हम पेड़ पौधों की रक्षा, पानी का संरक्षण व नदियों की साफ सफाई रख पाए। और इंसान ऐसे बन जाये कि सभी जीवों का , वृक्षो का , जल का, नदियों का ध्यान रख पाए।
हम ऐसे बने की हमे किसी की हत्या न करनी पड़े, हम सभी जीवों के रक्षक बने पाएं, हम अपने बड़े बुजुर्गों का देखभाल कर पाए, अंधविश्वास में न डूब कर हम अपने माता पिता की सेवा कर पाए। हमे कोई बहकाने वाला न हो , हमे कोई फुसलाने वाले न हो, हमारी अपनी बुद्धि काम करे। ये बड़ा कार्य तभी होगा जब हमारे विद्यार्थी अपने जीवन मे ब्रह्मचार्य का अर्थ समंझ पाएंगे। साथियों , अब मैं ऐसे विषय पर अपनी बात रख रहा हूँ जिसकी जरूरत आज सभी घरों में, सभी स्कूल में , सभी कॉलेज में तथा सभी विश्वविद्यालयों में है। विषय बहुत गम्भीर है लेकिन आवश्यक भी है चाहे भले ही लोग कुछ भी कहे।
पीढ़ी दर पीढ़ी और उभर कर ऊपर आ रहा है
आप इस विषय की तरफ कितनी भी आंख बंद कर लो लेकिन ये पीढ़ी दर पीढ़ी और उभर कर ऊपर आ रहा है। विषय है विद्यार्थिओं में ब्रह्मचर्य के पालन का, जो हमारे जीवन का सार है। पहले के समय मे जब हमारे यहां गुरुकुल होते थे तो प्रत्येक बच्चो को पढ़ने के लिए गुरुकुल में पढ़ने के लिए भेजा जाता था, और हमारी आश्रम परम्परा के अनुसार जीवन के पहले 25 वर्ष ब्रह्मचर्य के पालन के साथ शिक्षा दीक्षा ग्रहण करने के होते थे। उस समय मे बच्चो से खूब श्रम, मेहनत, शिक्षा, शारीरिक व्यायाम, बुद्धि के लिए योग प्राणायाम , ध्यान कराये जाते थे। शरीर को वज्र का बनाने का काम किया जाता था, आलस्य नाम की कोई व्यवस्था नही थी , हर बच्चे को इतना सशक्त बनाया जाता था कि वो अकेला भी जीवन मे घबराए नही, और न ही किसी भी प्रकार की सुख सुविधा को जीवन मे घुसने न दे। जीवन को तपस्या के माध्यम से तपाया जाता था।
सभी को एक जैसा भोजन
गुरुकुल में हर बच्चे को अपना कार्य खुद करने की परंपरा होती थी, सभी को एक जैसा भोजन, एक जैसा व्यायाम, एक जैसा परिश्रम, एक जैसा सोने का समय , एक जैसे जीवन के सिद्धांत, एक जैसी रहने की व्यवस्था होती थी। किसी को भी सुख सुविधा वाला जीवन उपलब्ध नही था, इसका एक कारण था कि बच्चो को विद्यार्थी काल मे इतना सशक्त बनाया जाए कि वो हर परिस्थिति में रहने में काबिल बन जाये, उनको इतना परिश्रमी बनाया जाता था कि वो कैसा भी कार्य, कैसी भी जिंदगी, कैसी भी परिस्थिति में रह सके और 25 साल की ब्रह्मचर्य पूर्ण जिंदगी के बाद जब वो गृहस्थ आश्रम में जाये तो वो अलग तरह के जीवन को जी सके।
ब्रह्मचर्य क्या है ये शायद मुझे बताने की आवश्यकता नही है फिर भी यहां मैं बताने जा रहा हूँ, कृपया ध्यान से सुने, ब्रह्मचर्य का पालन मतलब वीर्य( ओज) की रक्षा करना। जब कोई भी बच्चा बड़ा होने लगता है और जैसे ही वह किशोरावस्था जो प्राप्त करते है तो उसके शरीर मे हार्मोन्स चेंज होने शुरू होते है, इसी प्रकार उनके शरीर मे बदलाव , आवाज में बदलाव, स्वभाव में बदलाव, उसके हावभाव में बदलाव, शर्माना, अपने आप को बड़ा शो करना , ये सब एक लड़की व लड़के के जीवन मे बदलाव आने लगते है। जो सबसे बड़ा बदलाव होता है वो लड़को में ओज का बनना व लड़कियों में मासिक धर्म का शुरू होना। ये समय ऐसा होता है कि अडोलोसेंट या किशोरावस्था के युवाओं को बहुत ही जागरूकता की जरूरत होती है, इस अवस्था मे विपरीत लिंग की तरफ आकर्षण शुरू होने लगता है। यह समय किसी भी युवा के लिए बड़ा ही कठिन समय होता है कि कैसे उस वासना के नीचे होते दबाव को रोके और उसे कैसे ऊपर की तरफ मोड़े, अगर ऐसे समय मे हमारे किशोरो को अच्छी मेंटरिंग मिल जाये तो उनमें बनने वाले ओज को वासना से प्रार्थना में ले जाया जा सकता है।
आप सभी विद्यार्थियों को ये मालूम होना चाहिए कि ये जो वीर्य शक्ति है या ओज बाकी शक्ति है वो इतनी शक्तिशाली होती है कि उससे शरीर वज्र बन जाता है, मन बहुत नियंत्रित हो जाता है, बुद्धि बहुत ही तीव्र हो जाती है। और हमारा ध्यान शरीर से मन , मन से बुद्धि, व बुद्धि से बोध की तरफ अग्रसर हो जाता है जिससे हमारा मष्तिष्क की यादगार बहुत तेज हो जाती है, मैं विद्यार्थिओं को कहना चाहता हूँ कि ये ओज जो बनता है वो हमारे शरीर को चमक देता है, मन को नियंत्रित करता है, बुद्धि को तीव्र करता है, जीवन मे तपस्या लाता है, शरीर को वज्र का करता है और जीवन की आनंद से भर देता है। मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ कि जितना आनंद ब्रह्मचर्य में एक विद्यार्थी कर सकता है उतना तो वो वासना में फस कर नही कर सकता है।
लेखक, डा. नरेंद्र यादव, उपनिदेशक, नेहरू युवा केंद्र, हिसार व राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता।