ये जानना ही होगा, हमारे युवाओं या बच्चो से बुरे काम कौन करवा लेते है, तीन शक्तियां है जो निम्न है

सनातन प्रकृति के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने बताए है ये तीन गुण
 

mahendra india news, new delhi

लेखक 
नरेंद्र यादव
राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता ने बताया है कि हम तो बुरा नही करना चाहते थे परंतु ये कैसे हो जाता है, हमने तो कभी किसी का बुरा भी नही सोंचा लेकिन फिर भी कौन हमे गलत की तरफ धकेल देता है। ये सवाल अक्सर लोग करते है, मैं किसी का कत्ल नही करना चाहता था परन्तु फिर भी ये कैसे हो गया मुझ से , ये प्रश्न आये दिन सुनने को मिलते है। कैसे बच्चे या युवा  गलत कार्यो की तरफ बढ़ जाते है उनको खुद को भी इसका ज्ञान नही होता है और बाद में उन्हें पछतावा भी होता है। अब सवाल ये उठता है कि जब एक युवा या बच्चा , खुद बुरा नही करना चाहता तो क्या भगवान उससे गलत काम कराता है,

 

नही भगवान भला अपनी ही रचना में बुराई क्यों उत्तपन्न करेगा ,इतनी सुंदर पृथ्वी को क्यों बुराइयों या अपराध से भरेंगे। तो फिर कौन ये अपराध , ये हत्या, ये नशा, ये बुरे कार्य युवाओं या बच्चो से करवाता है, ये एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जिसका हल ढूंढना जरूरी है। हमारी सनातन संस्कृति में एक श्लोक है" यथा पिंडे तथा ब्रह्माण्डे" यानी कि ये मनुष्य या जीव का शरीर ब्रह्मण्ड का एक अंश मात्र है और इस प्रकृति के अनुसार चलता है। जैसे शायद आप जानते हो या नही जानते हो कि ये प्रकृति त्रिगुणा है और इन्ही तीन गुणों की वजह से ही किसी भी व्यक्ति के कर्म निर्धारित होते है, ये नेचर तीन गुणों से समाहित है। 

भगवान श्री कृष्ण,  भगवतगीता मे अर्जुन से कहते है कि किसी भी मनुषयो के कर्म , उसके त्रिगुणों के आधार पर बनते है कोई ताकत नही जो उन्हें रोक सके। इन तीनो गुणों को जब हम धार्मिक आधार पर लेते है तो हम उन्हें ब्रह्मा, विष्णु व महेश कहते है। ये ही तीन नाम हम देते है यानी ब्रह्मा सृजन करने वाला, विष्णु मतलब पालन करने वाला और महेश यानी विध्वंस करने वाला। प्रकृति के ये ही तीन रूप है। 


मानव के जीवन मे भी यही तीन रूप काम करते है। सनातन प्रकृति के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने बताए है वो तीन गुण निम्न है:-
1. सत्व गुण
2. रजस गुण
3. तमस गुण


  इसी प्रकार अगर वैज्ञानिक आधार पर भी देखे तो पदार्थ के अंतिम परमाणु भी तीन हिस्सों में टूटता है जो निम्न है :-
1. इलेक्ट्रान
2. न्यूट्रॉन
3. पॉज़िट्रान
  यानी इलेक्ट्रान , संतुलन का फैक्टर है।
न्यूट्रॉन , नेगेटिव फैक्टर है।
और पॉज़िट्रान यानी यह पाजिटिविटी का संकेत है।
 इसी प्रकार , हमारी सनातन संस्कृति में भी सत्व हमारा संतुलन का तत्व है।
रजस, हमारा प्रगति का तत्व माना जाता है ।
तमस , हमारा अवरोधक या अड़चन का तत्व माना जाता है या इनर्सिया का तत्व माना जाता है।


और अगर हम शारीरिक स्तर पर देखें तो भी हम तीन तत्वों पर ही आधारित हमारा स्वास्थ्य है:-
1. वात
2. पित
3. कफ
अगर इससे आगे बढ़े तो फिर तीन शक्तियां है जो निम्न है:-
1. प्रेम यानी निर्माणक
2. क्रोध यानी दुख व कष्ट
3. विवेक यानी हमारा सन्तुलन।

और अगर इससे भी आगे बढ़े तो तीन दशाएं और है:-
1. स्वर्ग
2. नरक
3. मोक्ष
     जब हम प्रकृति को तीन भागों में देखते है तो हमे पता चलता है कि किसी भी बच्चे , युवा या व्यक्ति के कर्म भी इन तीनो गुणों के आधार पर ही तय होते है। जब हमारा शारीरिक स्वास्थ्य हमारे भीतर उपलब्ध वात, पित, और कफ के आधार पर निर्धारित होता है तो हमारे कर्म , हमारे भीतर उपलब्ध सत्व, रजस व तमस गुणों के आधार पर निश्चित होते है। और ये तीन गुण है जिसके वशीभूत होकर हम सब कर्म करते है, अगर हमारे भीतर तमस ज्यादा है तो हर बाधा, अड़चन व नकारात्मकता हमारे पास रहेगी, अगर हमारे भीतर रजस गुण है तो हमारे सारे कर्म प्रगति के होंगे परन्तु अगर हमारे भीतर सत्व गुण है तो हम सभी कार्य विवेक से करेंगे और हमारे जीवन मे संतुलन रहेगा । जैसे एक गाड़ी में अगर स्पीड है तो ब्रेक भी चाहिए तथा एक स्टीयरिंग सम्भालने वाला भी चाहिए जिसे हम सत्व तत्व बोलते है। इन सभी गुणों को साधने के लिए हमे साधना करनी पड़ती है। 

   जब कोई भी बच्चा या युवा कोई गलत काम करता है तो उसमे तमस गुण हावी होता है, यानी तमस क्रोध, गाली गलौच, मारपीट, झगड़ा, हत्या या छेड़छाड़ आदि उस पर वो प्रवृति हावी होती है परंतु जब किसी के भीतर सत्व तत्व होता है तो वो बुरे कार्य नही सकता है क्यों उसका विवेक उस कार्य को करने से रोकता है और ऐसे व्यक्ति को गलत सोचने मात्र से भी बहुत पछताता है।

अब मैं , इस विषय पर यह कहना चाहता कि जब हमारे बच्चे या युवा बुरे या गलत कार्य करते है तो हम सभी को उनके भीतर तीनो गुणों के बारे में जानने की आवश्यकता होती है ताकि सभी बच्चे और युवा सही राह अपनाएं। कर्मो का निर्धारण निश्चित तौर पर प्रकृति के त्रिगुणों के आधार पर होता परन्तु इनको जानने व नियंत्रित करने के लिए हमे भी कुछ प्रयास करने पड़ेंगे, 


जानने के वो कौन से तरीके है:-
1. उनका खानपान कैसा है?
2. उनकी मित्र मंडली कैसी है ? 
3. उनकी दिनचर्या कैसी है ? 
4. रात मे वो कितने बजे सोते है ?
5. सुबह वो कितने बजे उठते है ? 
6. उनका स्क्रीन टाइम कितना है ?
7. बच्चे अपने मातपिता से कितनी देर बात या इंटरेक्शन करते है ?
8. वो कैसी किताबे पढ़ते है ?
9. उनके जीवन मे खेल कूद व मेडिटेशन कितना है ?
10. वो सरल है या फैशनेबल है।

      इन सब बातों से हम इनके भीतर के त्रिगुणों के बारे में पता लगा सकते है। कि उनके भीतर कौन सा तत्व जागृत अवस्था मे है कौन सा तत्व निष्क्रिय अवस्था में है। अगर किसी बच्चे या युवा में तमस ज्यादा बढ़ रहा है तो उसमे सत्व से युक्त व्यवहार, खानपान, संगत व विचारों को बढ़ाना होगा ताकि   सन्तुलन बन सके , अगर रजस भी बढ़ रहा है तो भी सत्व गुण की तरफ अपनी दिनचर्या या जीवनशैली को लेकर जाना पड़ेगा। कुछ ऐसी गतिविधियां होती है जिसकी वजह से तीनों गुणों में असंतुलन हो जाता है वो गतिविधियां निम्न है:-

1. रात भर जगने के कारण, तमस बढ़ता है।
2. भोजन में शराब, नशा, नॉनवेज खाने वालो में तमस बढ़ता है।
3. आपराधिक लोगो की संगत से तमस ज्यादा बढ़ता है।
4. स्वार्थी लोगो के बीच रहने से रजस और तमस बढ़ता है।
5. ध्यान, व्यायाम, शाकाहार से सत्व गुण बढ़ता है।
6. र्भ्ष्टाचार, नशा, बेईमानी, चालाकी, से तमस बढ़ता है ।
7. सबसे सदाचार, सम्मान, इज्जत, विनम्रता से बात करने से सत्व गुण बढ़ता है।
8. सादा जीवन व सरलता से सत्व गुण बढ़ता है।
9. अहंकार से रजस तत्व व तमस तत्व बढ़ता है।
10. सभी से राम राम , नमस्ते, करने से सत्व गुण की बढ़ोतरी होती है।


 इसी प्रकार किसी भी बच्चे को बुरे या गलत काम की तरफ उनका तमस गुण लेकर जाता है, उनमें अहंकार , उनका रजस गुण लेकर जाता है, उनको सरलता की तरफ उनके सत्व गुण लेकर जाते है। उनके ना चाहते हुए भी कई बार उनके भीतर बढ़े हुए तमस की वजह से, वो बुरे या गलत कामो की ओर बढ़ जाते है। हर बच्चा या युवा व व्यक्ति उसे प्रकृति द्वारा प्रदत्त तीन गुणों के आधार पर ही अपनी सभी गतिविधियां या कर्म करता है और वो उनके आधार पर ही बुरे कर्म की ओर जाते है, वो तमस गुण ही है जो उनसे गलत, व बुरे कार्य करवाते है। मैं इस लेख के माध्यम से हर बच्चे के मातापिता अथवा अभिभावक को कहना चाहता हूं कि वो अपने बच्चो की गलती पर कोसने की बजाय होने सत्व तत्व की लेकर जाने का अभ्यास कराएं, और इस अभ्यास के लिए एक ही महत्वपूर्ण टूल है और वो प्रेम, स्नेह तथा वात्सल्य है, इसे अपने घर के कण कण तथा कोने कोने में फैलाएं ताकि बच्चे प्रेममय होकर सत्व गुण को अपनाए और बढ़ाएं।
जय हिंद जय भारत