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हम कब बड़े होंगे,हम कब जिम्मेदारी लेंगे, हम कब जवाबदेह बनेंगे, सामाजिक नेतृत्व के किए युवाओं को आगे आने की जरूरत

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When will we grow up, when will we take responsibility, when will we become accountable, youth need to come forward for social leadership

mahendra india news, new delhi
विषय इतना गंभीर है कि हर किसी को खुद गंभीर बनने पर ही समझ आएगा। निसंदेह हम नैतिक रूप से क्षरण की ओर बढ़ रहे है। हमारे पास एक पीढ़ी थी जो खुद हर कार्य के लिए जवाबदेह मनाते थी, लेकिन अब धीरे धीरे वो माननीय आयु के उस पड़ाव पर पहुंच गए है कि सभी व्यवस्थाओं को संभालने में उन सम्मानित नागरिकों की उम्र साथ नहीं दे पा रही है। वो पीढ़ी शनै शनै हमे छोड़कर जा रही है।

हमने अपनी युवा अवस्था में देखा है कि हमारे बुजुर्ग समाज की, घर परिवार की हर समस्या का समाधान करने में सक्षम इस लिए थे, क्योंकि वो खुद को बड़ा, जिम्मेदार,जवाबदेह मानते थे, वो सही हो सही और गलत को गलत कहने हिम्मत रखते थे, उनका व्यक्तित्व इतना विशाल और पारदर्शी होता था कि गलत लोग उनके सामने बोल भी नहीं पाते थे। उनमें उतनी ईमानदारी, सत्यता तथा संवेदनशीलता होती थी कि वो हर परिस्थिति को समझकर निर्णय देने की बहादुरी दिखाते थे और सभी लोग उनका सहयोग करते थे।

जैसे जैसे वो पीढ़ी इस धरा से जा रही है, समाज में ही नहीं बल्कि हर क्षेत्र में एक वैक्यूम सा बनता सा रहा है, और वैक्यूम को भरने के लिए सकारात्मक लोगों के पीछे हटने वा घरों में दुबकने के कारण नकारात्मक वृत्तियां बहुत तेजी से उस वैक्यूम को भरते दिख रही है। चाहे आप किसी परिवार को देख लो, चाहे किसी समाज को देख लो, चाहे किसी कम्युनिटी को देख लो, चाहे राजनीति का क्षेत्र देख लो, चाहे अफसरशाही को देख लो, चाहे आप की निर्णय लेने की क्षमता की बात हो, या फिर बहन बेटियों की सुरक्षा की बात हो, घर परिवारों में माताओं बहने या हमारी बहुओं के रूप हमारी बेटियों को न्याय देने की बात हो, हर क्षेत्र में पॉजिटिव नेतृत्व का बहुत बड़ा वैक्यूम क्रिएट हो रहा है,

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जिसको भरने के लिए हमारी नेक्स्ट पीढ़ी खुद को तैयार ही नहीं समझती है। कोई  भी किसी भी समस्या की जिम्मेदारी लेना ही नहीं चाहते है, इसी लिए हमारे व्यक्तित्व से नैतिकता का ह्रास हो रहा है, हमारी जवाबदेही में कमी आ रही है। हम चाहे किसी भी क्षेत्र में कार्यरत हो, हम खुद को इतना बड़ा समझते ही नहीं है कि उस समस्या का समाधान कर सकें। यहां बड़े होने का अर्थ, उम्र के साथ समझदार तथा निर्भय बनने से है, नेतृत्व की क्षमता विकसित करने से है। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि वर्तमान सिस्टम में कुछ गैर जवाबदेह लोग हावी हो रहे है, समाज में ऐसे लोग हावी हो गए है जो चालाक है, बेईमान है, समाज के ताने बाने को छीन भिन्न करने में लगे हुए है और जो लोग काबिल है, ईमानदार है, सत्य या सादगी पर रह कर जीवन चलाते है,

वो पीछे ही हटते जा रहे है क्योंकि उनका व्यक्तित्व नेतृत्व वाला है ही नहीं, वो लोग ईमानदार होते हुए भी बेईमान धनाढ्यों के सामने नतमस्तक हो जाते है, अपने पड़प्पन से भी समझौता करके छोटी उम्र के धनाढ्यों या राजनीतिक लोगों के पैर तक छू लेते है। जैसे खाली खेत में खरपतवार उग जाते है उसी प्रकार समाज में भी जब वैक्यूम बन रहा है और अच्छे लोग आगे आना नहीं चाहते है तो खरपतवार उस समाज के वैक्यूम को भी भर देंगे, जिसका हर्जाना हमे आने वाले समय में भरना पड़ेगा। हम जीवन के उस दौर से गुजर रहे है जिसमें लोग खुद को बड़ा या जिम्मेदार समझने के लिए ही तैयार नहीं है। समाज चाहता है कि कुछ अच्छे ईमानदार लोग आगे आए और समाज को संभाले,

लेकिन हम है कि पता नहीं खुद को कब बड़ा मानना शुरू करेंगे। उम्र बड़ी हो जाती है लेकिन मन से बड़े नहीं हो पाते है, आयु भले ही ज्यादा हो जाए लेकिन खुद की जवाबदेही तय नहीं कर पाते है, आयु भले अधिक हो जाए, लेकिन हम किसी समारोह में, शादी विवाह आदि समारोह में भी आगे आने को तैयार नहीं होते है।आजकल अक्सर हम देखते है कि जब किसी के घर में शादी विवाह होते है तो लोग केवल खाना खाने के लिए ही जाते है, वो शादी के किसी प्रबंधन में शामिल होना नहीं चाहते है, शादी विवाह में फेरे आदि की रस्म तक कोई रुकना ही नहीं चाहते है केवल घर के ही लोग बामुश्किल रुक पाते है। कोई भी सामाजिक कार्यक्रम इस लिए आयोजित नहीं होते है

क्योंकि कोई इसके लिए तैयार ही नहीं होते है। इसी लिए समाज छीन भिन्न हो रहा है, कोई एक प्रश्न उठाने की हिम्मत नहीं रखते है। हमारे यहां सामाजिक नेतृत्व छीन भिन्न हो रहा है, हमारे सामाजिक नेतृत्व को भी पॉलिटिकल लोगों ने हथिया लिया है, इसी लिए समाज का कोई वालिवारिस नहीं बचा है। उनसे आगे चलने की बात करते है, वो पीछे पीछे सरकते नजर आ रहे है। राष्ट्र को, समाज को सामाजिक नेतृत्व की जरूरत है, सभी को अपनी सशक्त संस्कृति के संरक्षण हेतु अपने भीतर की कमी को झांककर देखने की हिम्मत करनी चाहिए, सामाजिक नेतृत्व के क्षेत्र में वैक्यूम क्रिएट नहीं होने देना है, ताकि समाज सशक्त बन सके।

हमे अलग अलग क्षेत्र में चाहे वो सामाजिक हो, राजनीति हो, चाहे वो किसी भी प्रकार के समारोह  हो, कोई खेलकूद का क्षेत्र हो, चाहे व्यवसाय का क्षेत्र हो, चाहे शिक्षा का क्षेत हो, चाहे नौकरी पेशे का क्षेत्र हो, हमे सभी क्षेत्र में ही हिम्मती सामाजिक नेतृत्व देने की जरूरत है। यहां कुछ बातों पर विमर्श करना होगा, जैसे ;
 1. खुद में सशक्त नेतृत्व तैयार करें, अपनी आने वाली पीढ़ी को भी सामाजिक नेतृत्व की शिक्षा दें।
2. स्वयं को न केवल उम्र में बड़ा समझे, बल्कि खुद को हर प्रकार से जिम्मेदार तथा जवाबदेह भी समझें।
3. जिस भी क्षेत्र में आप सामर्थ्यवान है उसी के साथ नेतृत्व करने के लिए आगे बढ़े। हर प्रकार के सामाजिक या व्यक्तिगत कार्यक्रमों में आगे बढ़कर अपनी जिम्मेदारी निभाने का संकल्प लें।
4. अपने ज्ञान के आधार पर समाज को सशक्त करने के लिए अपना महत्वपूर्ण समय देने के लिए शपथ लेने की जरूरत है। 
5. समाज को राजनीतिक नेतृत्व ने हाइजैक कर लिया है, उनसे निजात पाने के लिए सामाजिक नेतृत्व को विकसित करने तथा सामाजिक गतिविधियों में सहयोगी बनने के लिए आगे आने की जरूरत है। ऐसे राजनीतिक नेताओं से सतर्क रहने की जरूरत है जो सामाजिकता का लिबास ओढ़कर सामाजिक बनने के नाम पर समाज को बेचने का कार्य करते है।
6. अगर किसी को नेतृत्व करने में कोई दिक्कत है तो कम से कम जो समाज को सही दिशा देने वाले महानुभाव है उनका ही साथ देने के लिए आगे आएं।


7. अगर सकारात्मक वृति या राष्ट्रभक्त लोग आगे नहीं आयेंगे तो फिर तो नकारात्मक लोगों का बोलबाला हो जाएगा। इसलिए समाज को, राष्ट्र को विकसित करने के लिए बेहतरीन लोगों को अपना जीवन खपाना होगा, चाहे जैसी भी परिस्थिति क्यों न हो। अगर अच्छे लोग घर में आराम दायक जोन में रहेंगे, घर में छुपे रहेंगे, तो आने वाली पीढ़ी आपको कभी माफ नहीं करेगी, क्योंकि आपकी गिनती भी मूक दर्शकों में होगी, चीर हरण में हम सब को भागीदार माना जाएगा।
8. "हमे किसी से क्या लेना देना है"  इस वृति से उभरना पड़ेगा, इस वृति को छोड़ना होगा, क्योंकि नकारात्मकता की आग तुम पर भी आयेगी, जो ये कहते कि हमे इनसे क्या लेना देना है, उनको भी समाज के कमजोर होने के परिणाम भोगने पड़ेंगे।


9. दोस्तों इस राष्ट्र के लिए लाखों युवाओं ने अपने प्राणों का बलिदान किया है, वंदे मातरम को अपने दिलों में संजोया था, भारत माता की जय के नारों के साथ आगे बढ़े थे,इसे अपने दिलों में सजों कर रखने की जरूरत है, अगर उन्होंने भी "मुझे क्या लेना देना है कि वृति दिखाई होती तो" देश को आजाद कौन कराता। इसलिए उनके ऋण को उतारने के लिए आगे आना होगा, अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।


10. अपने बच्चों को सामाजिक कार्यों में लगातार भागीदार बनाएं ताकि उनमें सामाजिक नेतृत्व सशक्त बन सकें।
 हम अपना जीवन किन्हीं ऐसे लोगों के हवाले नहीं कर सकते है जो हमारे तथा हमारे बच्चों के जीवन को नकारात्मकता की ओर धकेलने का कार्य करें, जो काबिल नहीं है वो हमारा सामाजिक नेतृत्व करें, ऐसा नहीं होना चाहिए। जो गुनहगार है वो  हमारे सामाजिक कार्यों का नेतृत्व करे या फिर जो अनपढ़ है, आचारहीन है वो हमारे समाज को अपने इशारे पर चलाएं, ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमे ईमानदार , कर्मठ, परिश्रमी, सत्यवादी, बुराइयों से दूरी रखने वाले लोग, न्यायकारी , निष्पक्ष तथा निर्भीक सामाजिक लोगों की जरूरत है ताकि राष्ट्र को विकसित तथा नागरिकों को संस्कारित करने में अपना महत्वपूर्ण समय दे सकें। राष्ट्र की मजबूती हमारी सनातन संस्कृति व नैतिक बल है। हम सभी को ईमानदार लोगों की इज्जत करने के लिए तैयार रहना चाहिए। बेईमान लोगों की चुटकारिता करने से अच्छा  है, अपने परिवार, समाज या राष्ट्र के लिए चुपचाप अपने परिश्रम के माध्यम से योगदान देना सीख जाए, ताकि समाज को द्वेष, पक्षपात , अन्याय या अपराधी प्रवृत्तियों से बचाया जा सके। आओ अपनी झिझक को दूर करें तथा हर सामाजिक कार्यों में अगली पंक्ति में खड़े होने का साहस और हिम्मत दिखाएं, ताकि राष्ट्र का निर्माण नैतिक आधार पर हो सके। इन सभी को निभाने के लिए अपनी आयु के साथ साथ बड़ा होना सीखें, अपनी उम्र के साथ साथ जिम्मेदार बनना सीखें, अपनी आयु के साथ साथ जवाबदेही लेना भी सीखें। सही को सही तथा गलत को गलत कहने की हिम्मत तथा नेतृत्व विकसित करने की जरूरत हम सभी को है।

जय हिंद, वंदे मातरम