अपनी जिंदगी के चित्रकार खुद बनें, जो रंग मन को भाएं वही भरें। जीने का ये नजरिया भी कमाल है
mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
कहते है कला और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू है, स्नेहिल भाव से कला के भाव उपजते है। ब्रह्मांड की सभी क्रिएशन भी तो एक कलाकार की ही देन है, जिन्हें हम सर्वशक्तिमान कहते हैं। ये प्रकृति भी तो उसी कलाकार की कला है, जिसने हम सब को बनाया है। उसी सर्वज्ञ, कण कण में विराजमान कलाकार की क्रिएशन, जिन्होंने हिंदुस्तान की कला को नए आयाम दिए है और निखारा है,
उन्ही महान कलाकारों के चरण हिसार ए फिरोजा की पावन धरा पर पड़े है, जिनके हृदय की विशालता हमे सभी अगले दो दिनों तक हिसार स्थित गुरु जम्भेश्वर विश्वविद्यालय फॉर साइंस एंड टेक्नोलॉजी के सुंदर प्रांगण में देखने को मिलेगी। मै आज बहुत खुश इसलिए भी हूँ , क्योंकि सुरभि आर्ट सोसाइटी द्वारा अपनी रजत जयंती अवसर पर हिसार में जी जे यू के संयुक्त तत्वाधान में एक विशाल कला उत्सव आयोजित किया जा रहा है। सुरभि आर्ट सोसाइटी, जिसने बहुत ही सरलता के साथ हमे देश के बड़े बड़े महान कलाकारों से रूबरू कराने का बीड़ा उठाया है,
उसकी नींव हिसार के दो युवाओं राजेश जांगड़ा तथा पवन सिंधु ने वर्ष 2000 में रखी थी, जिसे बाद में संरक्षण देते हुए डॉ राजेश जांगड़ा ने उसे आगे बढ़ाया। सुरभि आर्ट संस्थान के बीजारोपण से लेकर वट वृक्ष बनाने के इस रजत जयंती सफर में राजेश जांगड़ा की पत्नी डॉ गीता जांगरा का सहयोग निरंतर वा कारगर रहा। इस संस्था को इस स्तर पर पहुंचाने में वैसे तो हजारों कलाकारों का सहयोग रहा,
परंतु वर्तमान में जिन कलाकारों ने अपने अथक परिश्रम से इस वृक्ष को सींचा, उनमें इस सोसायटी की सचिव डॉ नेहा और कोषाध्यक्ष डॉ कविता मोर, संस्थान के सदस्य विनीत, राजेंद्र भाटी, सलोनी शर्मा, राजेश कुमार , विकास जांगड़ा तथा बनी सिंह का नाम लिया जा सकता है। सुरभि आर्ट संस्थान ने इन पच्चीस वर्षों में न केवल बेहतरीन कलाकारों को तैयार किया है ब
ल्कि फाइन आर्ट जैसे विषय को हरियाणा के हर स्कूल, कॉलेज तक पहुंचाने का बड़ा कार्य किया है। हिसार जैसे शहर में पहली बार राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के कलाकारों को आमंत्रित कर हरियाणा का गौरव बढ़ाने का कार्य किया है। हिसार में आयोजित इस भव्य कला उत्सव में पद्मश्री से सम्मानित माननीय प्रोफेसर बीमन बी दास जी ने मुख्य अतिथि के रूप में पहुंच कर न केवल हमारे शहर का गौरव बढ़ाया, बल्कि यहां की युवा पीढ़ी को कला की ओर आकर्षित भी किया। इस कला फेस्टिवल में वैसे तो सैकड़ों कलाकारों ने भाग लिया, लेकिन मुख्य रूप से दिल्ली से वयोवृद्ध कलाकार श्रीमान रूप राम जी, सुमित्रा जी अहलावत जी ने भी हिसार के युवा कलाकारों को प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर प्रख्यात कलाकार विजय विश्वास जी, वा निरापद पांडे जी की उपस्थिति ने भी युवाओं कलाकारों को उत्साहित किया। वैसे तो हिंदी का कलाकार शब्द अपने आप में संपूर्ण है, जो अपने कौशल, अपनी स्किल, हूनर, अपने हृदय की विशालता से हृदय के उद्गार अपने चित्रों, अपने स्कल्पचर तथा अपने शब्दों के माध्यम से कागज, पत्थर, मिट्टी, दीवार व काठ पर उकेरते है। इसके अलावा इसे लैंड स्केलिंग के माध्यम से, डेकोरेशन के जरिए, रंगों के द्वारा प्रदर्शित करते है।
मैने आज पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित प्रोफेसर बीमन बी दास से चर्चा करते हुए महसूस किया कि जो कला को अपने हृदय में संजोए हुए होते है उनके व्यक्तित्व में विनम्रता, स्नेह, सादगी तथा देशभक्ति के भाव उनके चेहरे को न केवल सुंदर बनाते है बल्कि बड़प्पन के भाव उजागर करते है। कला हर कार्य को सौन्दर्य प्रदान करने में सहयोग करती है, उसे सार्थक बनाने में भी उपयोगी है। श्री बीमन बी दास जी से बात करते हुए ऐसा एहसास हुआ जैसे इनके ज्ञान को मै अपनी झोली फैला कर उसमें समेट लूं, उनकी सादगी,
उनकी विनम्रता को अपने व्यक्तित्व में भर लूं, उनकी भारतीय कला के प्रति श्रद्धा व प्रेम को मै भी अपने व्यवहार में उतार लूं, उनके चेहरे पर विशाल अनुभव के भावों से हर युवा को रूबरू करा दूं, ऐसा लग रहा था जैसे उनकी सुंदर बातों को सुनता रहूं, और अपने जीवन को कला को समर्पित कर दूं। इस कला उत्सव को देखकर हर कोई कलाकार बनना चाहते है, कलाकार शब्द अपने आप में व्यक्तित्व का संपूर्ण रूप है। वैसे तो जीवन में कलाकारी की सदैव जरूरत होती है क्योंकि इससे जीवन को श्रेष्ठ बनाने का अवसर मिलता है। हम समझते है कि कला तो अपने आप में संपूर्ण होती है तथा कलाकार का अर्थ भी तो संपूर्णता तक पहुंचना ही है लेकिन फिर ये कला से भी आगे फाइन आर्ट क्या है अर्थात ललित कला क्या है तो समझ में आता हैं कि जो लालित्य प्राप्त हो, जो सौंदर्यता का भाव रखती हो, जिसमें मधुरता हो, अभिव्यक्ति के भाव हो या फिर जो जीवन में स्नेह के भाव भर दें वो ही ललित कला है।
वैसे कला को सात श्रेणियों में विभक्त किया जाता है जिसमें चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, साहित्य, संगीत, रंगमंच और सिनेमा आते है। कला एक वृहद क्षेत्र है जिसमें श्रीकृष्ण जी महाराज की 64 कलाओं से ही कला जगत का जन्म हुआ है। जो आत्मिक आनंद प्रदान करें वहीं ललित कला है और जो प्रायोगिक हो उसे कला की श्रेणी में रखते है। कलात्मक दृष्टिकोण वाले महानुभाव के हृदय में सरलता, प्रेम, स्नेह, आनंद तथा विनम्रता के भाव प्रकट होते है, उनका जीवन जनमानस को श्रेष्ठ बनने के साथ साथ विनम्र बनने का संदेश भी देता है। उनकी देह से निकलने वाली वाइब्रेशन एकता व शांति का संदेश देती है। इंसान के जीवन में कला से जीने की समझ बदल जाती है। आर्ट साधना है, आर्ट ध्यान है, आर्ट समाधि भी है, और आर्ट एब्सोल्यूट भी है जिसे हम ध्यान की चरम अवस्था भी कहते है।
कार्य के साथ ध्यान का एक मात्र साधन है कला, मन के भावों की अभिव्यक्ति के साथ ध्यान का एक मात्र साधन कला ही है। वर्तमान समय में दुनिया की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चों और युवाओं के जीवन में फैले तनाव, दबाव , चिंता वा अवसाद से मुक्ति का भी एक मात्र साधन है कला, क्योंकि ये हर किसी में जीने की कला विकसित करती है। कर्म के साथ ध्यान को गहरा करने का भी साधन है कला। अगर मेरे कहने में अतिशयोक्ति ना हो तो विश्व शांति का मार्ग है कला, ललित कला, जो समरसता, प्रेम व स्नेह, करुणा का प्रसार करती है, और वही से शांति उपजती है। जीवन को कला से जोड़ने का मतलब है जीवन को ईश्वरीय शक्ति जोड़ना और संपूर्णता की ओर बढ़ना है।
जय हिंद, वंदे मातरम