तीज पर्व पर विशेष : तीज, सिंधारा, पेड़ में टंगे झूले, पींग, कसार और पीहर, नई पीढ़ी को क्या संदेश देते हैं ? इसके मायने बहुत गहरे हैं : डा. नरेंद्र यादव 

 
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर ने बताया कि भारतीय त्यौहार में सावन माह के अंदर तीज माह का पर्व भी है। सावन का माह भारतीय महिलाओं और खासकर उत्तरी भारत की स्त्रियों को पंख लगा देता है, महिलाओं के लिए ये बेहद महत्वपुर त्यौहार है। यह देश में ही नहीं बल्कि नेपाल में भी तीज का उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है। यह इसलिए कि यह हिंदुओं का त्यौहार हैं। तीज का शाब्दिक अर्थ है तीन, तीन हमारी भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि प्रकृति के तीन गुण ही हमारे जीवन का आधार हैं। 


तीज, श्रावण मास में अमावस्या के बाद नए चांद के पक्ष में तिथि तीन के दिन मनाया जाता हैं। तीज उत्सव को तीन तरह से मनाया जाता है, पहली सावन मास की अमावस्या के बाद तीज को हरियाली तीज या सिंधारा तीज कहा जाता है, इसके पंद्रह तीन बाद यानी पूर्णिमा के बाद जो तीज आती है उसे बड़ी तीज अथवा बूढ़ी तीज भी बोला जाता है , फिर उसके 15 दिन बाद भाद्रपद में आने वाली अमावस्या के बाद तीज मनाई जाती है उसे हरतालिका तीज बोला जाता हैं। यही तीज नेपाल में भी सेलिब्रेट की जाती है। इस हरतलीका तीज के अर्थ से समझा जाएं तो इसमें पार्वती के कहने पर ही पार्वती मां को किडनैप करके, ये दिखाना कि पार्वती मां, शिव के साथ विवाह से बचना चाहती है, जैसा कि आम तौर पर भारतीय विवाहों में होता है कि वर पक्ष को चिढ़ाया जाए। 


यह त्यौहार विवाहित महिलाओं तथा अविवाहित लड़कियों द्वारा बहुत ही खुशी से मनाया जाता हैं। तीज का उत्सव मां पार्वती तथा शिव से संबंधित हैं। इसमें कहा जाता है कि तीज सिंधारा के दिन ही भगवान शिव ने पार्वती के साथ विवाह करने की हामी भरी थी, इसीलिए यह तीज उत्सव महिलाओं द्वारा अपने पति की खुशहाली के लिए मनाया जाता है। कहते है मां पार्वती ने भगवान शिव के साथ विवाह के लिए 108 बार जन्म लिया था, इसीलिए स्त्रियां अपने पति के शौभाग्य के लिए तथा अविवाहित लड़कियां उनके लिए अच्छा पति मिले, इसलिए इस तीज के उत्सव को बहुत खुशी के साथ आयोजित करती हैं। इसमें नृत्य, लोक गीत, नए वस्त्र पहनना जिसमें लाल ,पीला तथा हरे रंग के वस्त्रों को ज्यादा पहना जाता हैं। सिंधारा तीज का मतलब क्या है इसे जानना जरूरी है, यहां सिंधारा शब्द श्रृंगार से लिया गया हैं, सिंधारा का अर्थ होता उपहार या गिफ्ट जो शादी के उपरांत अपनी बेटी को श्रृंगार के प्रसाधन दिये जाते है, उसमें सुंदर कपड़े, श्रृंगार के प्रसाधन, मिठाइयां, या गुलगुले, कसार, शकरपारे भी अपनी बेटी की ससुराल उपहार के रूप में भेजा जाता हैं। शादीशुदा बेटी को उनके भाई पीहर लेकर आते है और वो अपने पीहर में बड़ी खुशी के साथ तीज का उत्सव मनाती हैं। अगर मैं सिंधारा के रूप में दिए जाने वाले उपहार की बात करूं तो इसकी यात्रा एक साधारण सा उपहार जिसे हम ग्रामीण क्षेत्र में कसार कहते है, वो ही तैयार कर अपनी बेटी के यहां भेंट के रूप में भेजा जाता था। कसार , साधारणतया गेहूं के आटे को भून कर उसमें शकर या गुड डाल कर बनाया जाता था क्योंकि ये दोनों सामान हमारे घरों में बहुत आसानी से मिल जाता था। ये सिंधारे की यात्रा कसार से शुरू होकर गुलगुले, पूड़े, मीठी पूरी , शक्करपारे से होते हुए बत्तासे और घेवर या मिठाइयों तक पहुंच गई हैं। अब हमारी नई पीढ़ी को तो शायद पता नहीं कसार को बनते देखा है या नहीं ? शायद नहीं। पीहर का अर्थ होता है मायका अर्थात एक बेटी के लिए माता पिता का घर या उसके भाई भाभी भतीजों भतीजियों का घर। पेड़ों में लटकते झूले ही तो हमारे  होँशलों को पंख लगाते हैं, जब हमारी बेटियों तथा बहुओं द्वारा झूलों पर बैठ कर झूलने और ऊंची ऊंची पिंग भारती है, वही तो उन बेटियों की उड़ान है चाहे वो विवाहित है या फिर अविवाहित हैं। तीज त्यौहार के दिन या इससे पहले और कुछ बाद तक झूले पर भरी जाने वाली पिंग ही तो इस उत्सव का मर्म हैं। झूला हमे जीवन में उड़ना सीखता है, ऐसे पींग भरी जाती है जैसे हर बहन बेटियां अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए पंख लगा कर उड़ना चाहती हैं। यही तीज उत्सव के माध्यम से हमारी बेटियों , बहने तथा माताओं में खुशी की लहर दौड़ जाती हैं। इस तीज उत्सव को नई पीढ़ी तक लेकर जाने के लिए इसे जीवित रखना होगा। ये तीज का त्यौहार, इसमें झूले पर बैठ कर भरी जाने वाली पिंग ही तो हमारे समाज में तथा बेटियों में प्रसन्नता की बात है, ऊपर और ऊपर उड़ने के पल होते हैं। 

यही वो उत्सव है जो हमे खुली हवा, खुले विचार, खुले पॉजिटिव व्यवहार तथा उत्साह उमंग प्रदान करती हैं। आज तो तीज के त्यौहार की बेहद जरूरत है, जब हमारा समाज पैसे की अंधी दौड़ में भाग रहे है तथा खुशी के स्थान पर अवसाद बहुत से युवाओं के जीवन को लील रहा हैं। जीवन में उत्साह, उमंग तथा समाज में भाई चारे को बढ़ावा देने के लिए तीज के त्यौहार का सार्वजनिक आयोजन होना चाहिए। जिससे हर बेटी को अपने मन की बात कहने का अवसर मिल सकें। समाज में बेटियों को सशक्त किया जा सके, यही हमारा सामाजिक , सावर्जनिक लक्ष्य होना चाहिए।
जय हिंद, वंदे मातरम