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2 APRIL AUTISM AWARENESS DAY, क्या आपका बच्चा भी नजरें नहीं मिलाता ? -सुनीता कम्बोज

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  2 APRIL AUTISM AWARENESS  DAY, क्या आपका बच्चा भी नजरें नहीं मिलाता ?  -सुनीता कम्बोज 
mahendra india news, new delhi

हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने कहीं आपका बच्चा भी तो हर किसा से नजरें नहीं दुराता? कहीं उसे सामाजिक कम्युनिकेशन में दिक्क्त तो नहीं आ रही? क्या वह भी अन्य बच्चों से जल्दी से घुल-मिल नहीं पाता? एक ही काम बार-बार कर रहा है? अगर आपके बच्चे में भी ऐसा व्यवहार करते हैं, तो अलर्ट हो जाएं। दरअसल यह स्थिति बच्चों में ऑटिज्म की ओर इशारा करती है। उन्होंने बताया कि ऐसे में जरूरी है कि आप समय रहते बच्चे को डिवलपमेंटल पीडियाट्रिशियन के पास ले जाएं और उनका ट्रीटमेंट शुरू करवाएं। ऑटिज्म क्या है? इसकी पहचान कैसे की जाए? उपचार कहां करवाया जाए? कैसे कराया जाए? आपके इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए  सुनीता कम्बोज ने बात की स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर सिरसा 

क्या है ऑटिज्म
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि ऑटिस्टिक बच्चे सोशल कम्युनिकेशन नहीं कर पाते हैं। वैसे वह अपनी बात आपको कर सकते हैं, लेकिन जब उनसे कुछ पूछते हैं, तो वह आपको उस बात का जवाच नहीं देते। अगर आप बच्चे से पूछेंगे कि तुम्हारे पैरंट्स कीन हैं, उनका क्या नाम है, आप क्या करते हो, तो वह ऐसे बेसिक सवालों का जवाब नहीं दे पाएंगे। कह दूसरे बच्चों के साथ मिक्सअप नहीं हो पाते हैं। अपने ही मस्त रहते हैं। वह कभी भी नजरें मिलाकर या करें कि आंखों में आंखे डालकर बात नहीं करते। जैसे यदि किसी खिलौने वाली कार का पहिया घुमा रहे हैं, तो उसे ही बार-बार घुमाते रहेंगे बजाय कार को चलाने के। ऑटिज्म को इन्हीं लक्षणों से पहचाना जा सकता है।

बुद्धि नहीं तय करने का आधार
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि जरूरी नहीं होता कि ऑटिज्म के बच्चे मंदबुद्धि ही हों। ये दोनों तरह हो सकते हैं। अधिकतर बच्चों में बुद्धि नॉर्मल होती है और कुछ बच्चे मंदबुद्धि भी होते हैं। इसलिए बुद्धि
के आधार पर यह तय नहीं किया जा सकता कि बच्चे को ऑटिज्म है या नहीं।

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3 वर्ष तक के बच्चों में यूं पहचाने
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि यदि एक से तीन साल के बच्चे को ऑटिज्म है, तो उसकी पहचान स्पीच डिले यानी बोलने में होने वाली देरी से की जाती है। पैरंट्स या कोई और इन बच्चों से कितनी भी बात कर लें, लेकिन बच्चे जवाब नहीं देते। इनों कुछ चीजों से परेशानी होती है और डर लगने लगता है। या परेशान हो जाते हैं। बहुत से पैरेंट्स 3 साल की उम्र तक इसे पहचान नहीं पाते।

3 से 6 साल के बच्चों में ऐसे
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि 
3 से 6 वर्ष आयु के ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे स्कूल में एडजस्ट नहीं हो पाते हैं, क्लासमेट्स के साथ घुल-मिल नहीं पाते। उन्हें यह भी नहीं पता चलता कि वह क्या करें और पढ़ाई भी समझ में नहीं आती। इस तरह की दिक्कत इस उम्र के बच्चों में देखने को मिलती है। इससे बड़ी आयु के बच्चों में

भी इसी तरह की समस्याएं देखने को मिलती हैं और।

एक नहीं, कई कारण
हरियाणा के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि ऑटिज्म का कोई एक नहीं, वल्कि इसके कई कारण हैं। मुख्य रूप से जेनेटिक और एन्वॉयरनमेंटल फैक्टर होते हैं। जेनेटिक को लेकर विदेशों में कई स्टडीज भी चल रही हैं। वहीं एन्वायरनमेंटल फैक्टर्स में स्क्रीन टाइम का अधिक होना और आसपास की अन्य चीजें शामिल हैं। इन्हें मल्टी फैक्टोरियल कहा जाता है।

2 वर्ष से पहले फोन नहीं
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि यदि बच्चों में ऑटिज्म के खतरे को कम करना है, तो जरूरी है कि बच्चों के स्क्रीन याइम पर सख्ती से कंट्रोल किया जाए। आजकल जन्म के कुछ समय बाद ही बच्चे मोवाइल पर विडियोज देखने लगते हैं और पैरंट्स भी शीक से मोवाइल में विडियो दिखाते हैं, जो बेहद गलत है। नियमों के मुताविक 2 साल के बच्चों के लिए स्क्रीन विल्कुल वैन होनी चाहिए। वहीं 5 साल के बच्चों के लिए एक घंटा काफी है।

ऐसे होती है जांच
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने जब बच्चा डॉक्टर्स के पास आता है, तो पहले डेवेलपमेंटल पिडियाट्रिशियन उसकी जांच करता है और स्थिति जानने की कोशिश करता है। इसके बाद टीम होती है, जिनके पास बारी-बारी बच्चे को भेजा जाता है। इस टीम में साइकोलजिस्ट, स्पीच थैरेपिस्ट, स्पेशल एजुकेटर, ऑक्यूपेशनल थैरेपिस्ट शामिल होते हैं। पहले यह पूरी टीम बच्चे की असेसमेंट करती है कि बच्चे को ऑटिज्म है या नहीं, अगर है तो किन वजहों से है, वह किस तरह का व्यवहार कर रहा है आदि। इसके आधार पर बच्चे का इलाज शुरू किया जाता है। एक बच्चे की असेसमेंट करने में तीन से चार घंटे लगते हैं। पहले आधे घंटे तक डेवेलपमेंटल पीडियाट्रिशयन बच्चे की जांच करता है, फिर टीम में जो अन्य प्रफेशनल्स हैं वह जांच करते हैं। 

अपने बच्चे में इन बातों को न करें अनदेखा
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि अक्सर ऐसा देखा जाता है कि बच्चे के घुलने-मिलने, थोड़ा देर से वोलने, उनकी बातों को अनसुना करने पर पैरंट्स ज्यादा गौर नहीं करते। बल्कि इन आदतों को यह बच्चे के पापा या मम्मी की बचपन की आदतों से जोड़ कर अनदेखा कर देते हैं। इस वजह से समय रहते कई वार पता ही नहीं चल पाता कि बच्चा ऑटिज्म का शिकार है। दअसल जन्म के बाद पहले 3 साल में बच्चे का दिमाग विकसित होता है। इस वक्त पर परेशानी का पता लगाकर ट्रीटमेंट दिया जाए, तो ज्यादा असरकारक होता है। देर से पता चलने पर ग्रोथ भी कम हो जाती है।

पैरंट्स की ट्रेनिंग और काउंसलिंग है जरूरी
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज ने बताया कि ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के इलाज में उनसे कई एक्टिविटीज करवानी होती है। डॉक्टर हमेशा साथ नहीं रहते और पैरंट्स भी रोजाना अस्पताल नहीं आ सकते इसलिए पैरंट्स को ट्रेनिंग देते हैं कि वह बच्चों से किस तरह बात करें, यच्चों से किस तरह आई कॉन्टेक्ट बनाएं, बच्चों से कैसी एक्टिविटी करवाएं, आदि। इससे बच्चा धीरे-धीरे सोखने लगता है।

माइल्ड, मोडरेट और सीवियर होता है ऑटिज्म
हरियाणा  के सिरसा में स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर की संचालिका सुनीता कम्बोज का कहना है कि ऑटिज्म तीन तरह से होता है। कुछ में यह माइल्ड होता है, कुछ में मोडरेट तो कुछ में यह सीवियर यानी गंभीर होता है। बच्चे में किस तरह का ऑटिज्म है, इसका पता असेसमेंट करके लगाया जाता है और उनकी स्थिति के अनुसार उन्हें नंबर दिए जाते हैं। इसी आधार पर उनका ट्रीटमेंट भी किया जाता है। माइल्ड ऑटिज्म का पता लगाना मुश्किल होता है, लेकिन फिर भी वह कभी-कभी ऐसी चीजें करता है, जिससे उसका पता लगाया जा सकता है। जैसे किसी की बातों का जवाब देते-देते अचानक चुप हो जाना, आई कॉन्टेक्ट कम कर देना आदि लेकिन यह सब चीजें बच्चा कभी-कभी ही करता है।

सरकार ने ऑटिज्म को आरपीडब्ल्यूडी एक्ट 2016 में शामिल किया है। ऑटिज्म के शिकार बच्चों को विक्लांगता सर्टिफिकेट दिया जाता है और यह सर्टिफिकेट भी उनकी स्थिति के आधार पर ही दिया जाता है। जैसे बच्चे में माइल्ड ऑटिज्म है, मोडरेट है या सीवियर ऑटिज्म है। यह सर्टिफिकेट संबंधित सरकारी अस्पताल की ओर से दिया जाता है। हम बच्चे का असेसमेंट करके उसकी स्थिति के आधार पर नंवर देते हैं और फिर उसी को देखते हुए उन्हें संबंधित सरकारी अस्पताल को तरफ से सर्टिफिकेट मिलता है 

क्या ऑटिज्म (स्वलीनता) को ठीक किया जा सकता है?
ऑटिज्म के लिए ऐसा कोई इलाज नहीं है, हालांकि, लक्षणों के जोखिम को कम करने के लिए कुछ उपचार और उपचार पर विचार किया जा सकता है। उपचार इस प्रकार हैं:

प्ले थेरेपी
बेहवियरल थेरेपी
ऑक्यूपेशनल थेरेपी
स्पीच थेरेपी
फिजिकल थेरेपी
ऑटिज्म के मरीजों को आराम की जरूरत होती है। मालिश,  चिकित्सा, ध्यान भी मदद कर सकता है।


वह बताती हैं कि स्टार स्पीच थेरेपी सेंटर  सिरसा   में शुरू किया गया था। इसकी शुरुआत 2018 में की गई थी। यहां ना सिर्फ देश के अलग-अलग राज्यों से ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आते हैं वल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पेशंट्स को लाया जाता है। हर साल यहां ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे आते हैं।