श्रमिक का पसीना सूखने से पहले पूरा मेहनताना मिले, मेहनत का सम्मान करे, इसे ही डिग्निटी ऑफ लेबर कहते है

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
आजकल बड़ी जोर शौर से सप्ताह में 90 घंटे तक काम करने की वकालत की जा रही है, कोई 75 घंटे को अच्छा बता रहे है तो कोई 80 घंटे काम करने का उपदेश दे रहे है। समय का पहिया घूम रहा है, हम उसी दौर की ओर लौट रहे है जब कंपनियां द्वारा श्रमिकों से दिन में पंद्रह पंद्रह घंटे काम करवाया जाता था। जिस कारण अंतरराष्ट्रीय मई दिवस मनाने की अवधारणा ने जन्म लिया, उसी समय की तरफ हम पुन: लौटने को अग्रसर है। वर्ष 1886 की बात है शिकागो के हेमक्रेट में एक दंगा हो गया, उसमें लोग सड़को पर उतर आए, इसके पीछे की वजह यह थी कि मजदूरों से अधिक घंटे कार्य कराया जाता था, दिन में 15 घंटे कार्य करना पड़ता था। उसी से निजात पाने के लिए वर्ष 1886 में शिकागो में संघर्ष हुआ कि काम के घंटे आठ, प्रतिदिन होने चाहिए तथा सप्ताह में एक दिन का अवकाश भी हो। इसी की पूर्ति के लिए 1889 में एक मई को अंतराष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस का सम्मेलन हुआ और मजदूरों की मांग को लागू किया गया था, इसी प्रकार यह दिवस बहुत से देश मनाने लगे। सबसे पहले इसे अमेरिका ने मानना शुरू किया। भारत में 1923 में चेन्नई के कम्युनिस्ट नेता सिंगारवेलू चेट्टियार की आवाज पर अंतराष्ट्रीय श्रम दिवस मनाने की ओर कदम बढ़ाया गया तथा श्रमिकों के लिए श्रम के घंटे आठ प्रतिदिन के हिसाब से तय किए गए। विडंबना देखिए कि बड़ी बड़ी कंपनियों के मालिक फिर उसी व्यवस्था को लेकर आना चाहते है कि श्रमिकों को सप्ताह में 90 घंटे कार्य करना चाहिए। ये बात बार बार उठ रही है क्योंकि विश्व में पूंजीवाद बहुत तेजी से बढ़ रहा है। समाजवाद वा श्रमवाद लगता है कही हाशिए पर चला गया है। विश्व में उन लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है जो बिना मेहनत के पैसा कमाना चाहता है। कॉरपोरेट सेक्टर विश्व पर हावी हो रहा है। इन कॉरपोरेट सेक्टर के लाभ का प्रतिशत इतना बढ़ गया है कि कोई सुनने वाला है ही नहीं। एक मजदूर व्यक्ति पूरा दिन कार्य करता है तो उसे कम पैसा मिलता है परंतु उसके विपरीत जो लोग पैसे से पैसा कमाने की ओर अधिक लालायित है, उन्हें अधिक लाभ मिलता है। यहां तीन परिस्थितियां है, जैसे;
1. श्रम से पैसा कमाना
2. बुद्धि से पैसा कमाना
3. धन से धन कमाना।
अंतराष्ट्रीय श्रम दिवस मनाने का असली मकसद देखें तो हम पाते है कि इसके पीछे शोषण की एक कहानी है, और वो कहानी कम पैसों में श्रमिकों से अधिक कार्य लेना। विश्व में श्रमिकों को दो भागों में बांटा जा सकता है एक तो राजकीय सेक्टर दूसरा निजी सेक्टर। निजी सेक्टर में भी दो सेक्टर है एक तो ऑर्गेनाइज्ड सेक्टर तथा दूसरा अनॉर्गनाइज्ड सेक्टर। व्यवस्थित सेक्टर में निजी कंपनिया आती है जो लोगों को स्थाई तौर पर रखते है और उन्हें मासिक वेतन देते है। लेकिन एक सेक्टर ऐसा भी है जो अव्यवस्थित है जिसमें रोज श्रम किया जाता है और रोज का मेहनताना मिलता है। अव्यवस्थित सेक्टर में एक अंग ऐसा भी है जिसे हम घरेलू कार्य का क्षेत्र कहते है, यहां अगर विकसित देशों की बात करे तो इनके लिए भी ऐसे नियम है कि हर व्यक्ति घरेलू कार्यों के लिए भी श्रमिक नहीं रख सकते है क्योंकि वो उन्हें अफोर्ड ही नहीं कर पाते है। ऐसे वर्कर्स के लिए भी तय कार्य के घंटे है, साप्ताहिक छूटी की व्यवस्था है, घंटे के हिसाब से मेहनताना भी तय है, उससे ऊपर नीचे नहीं कर सकते है परंतु जितने भी विकासशील देश है या अविकसित देश है वहां ऐसी व्यवस्था नहीं है। एक महिला या एक व्यक्ति एक घर में झाड़ू पोछे का कार्य करते है तो उन्हें मात्र 1000 से 1200 रुपए ही मिलते है जबकि वो एक घर में कम से कम एक घंटा तो कार्य करते ही है, उसे एक घंटे का 30 से 40 रुपए मात्र मिलते है जब कि वो लोग हाड तोड़ मेहनत करते है। किसानी खेती में तथा पशुपालन के क्षेत्र में भी ऐसा ही हाल है। एक किसान अनाज उगाता है, सब्जियां उगाता है परंतु उस सीजन में उन्हें उनकी मेहनत का भी पूरा पैसा नहीं मिलता। यहां कैसी विडंबना है कि एक किसान जो सब्जी को पैदा करता है, वो खाद पानी, बीज, जमीन तथा खूब मेहनत करता है परंतु उसे तो उस सब्जी को बेचने पर हो सकता है एक किलोग्राम के मिलेंगे दो रुपए लेकिन जो उसे दुकान में रखकर या रहड़ी पर बेच रहे है उन्हें मिलेंगे दस या पंद्रह रुपए। ये कैसी विडंबना है कि जो सब कुछ खर्च कर रहा है, गर्मी सर्दी में , लू में रह कर किसानी करता है उन्हें तो दाम 10 प्रतिशत भी नहीं मिलता है। मैं यहां दुखन या रहडी पटरी वाले को हतोत्साहित नहीं कर रहा हूँ उन्हें भी उनका मेहनताना मिलना चाहिए लेकिन इसके दूसरी ओर कृषक को भी उचित दाम मिलना चाहिये। यहां बात इसकी हो रही है कि जिसे ये ही नहीं पता कि खेती होती कैसे है उन्हें उसी पैदावार का दस गुणा मिल रहा है। भारत जैसे देश में तो किसानी खेती तथा पशुपालन जीवन शैली से जुड़ा हुआ है, चाहे कितना भी नुकसान हो जाएं लेकिन लोग खेती व पशुपालन करना नहीं छोड़ते है क्योंकि वहीं उनकी जीवन शैली है। इसके विपरीत देखें तो अभी कुछ ट्रेंड बदल रहा है, लोग खेती किसानी छोड़ कर अन्य व्यवसाय करने लगे है। वैसे देखा जाए तो खेती किसानी जीवन का आधार है, उसे किन्हीं ऐसे हाथों में नहीं सौंपा जा सकता है जो केवल मुनाफा लेने की मंशा रखते है। हमे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि जो श्रमिक है या जो दैहिक मेहनत अधिक करते है उनके जीवन यापन का ध्यान रखना, उनकी सेहत का ख्याल रखना तथा उनके बच्चों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा का ध्यान रखना भी तो सरकारों की ही जिम्मेदारी है। हमे कोई भी वस्तु फ्री में बांटने से अच्छा है कि जो मेहनत करते है उनके जीवन उत्थान में व्यवस्था की जाए तो बेहतर होगा। सोशल मीडिया पर लोग सारा सारा दिन प्रोटीन विटामिन की बात करते है परंतु क्या कभी कोई इन मजदूरों के स्वास्थ्य की भी बात करेंगे,जिनके कारण देश का निर्माण होता है, सड़के बनती है, ऊंची ऊंची इमारतें बनती है, पत्थर उठाए जाते हैं, अनाज की बोरिया उठाने का कार्य करते है, कोयले की खदानों में कार्य करते है, खेतों में कार्य करते है, पशुपालन में लगे रहते है, उनके जीवन को कौन देखेगा। हम क्यों किसी भी भारत के नागरिक को ऐसे ही छोड़ देते है कि वो खुद ही अपनी व्यवस्था करें। हमे मेहनत का सम्मान करना चाहिए, जिसे पढ़े लिखे लोग डिग्निटी ऑफ लेबर कहते है। हमे मेहनत करने वालों का भी सम्मान करना चाहिए जो इस देश के निर्माण को चार चांद लगाते है परंतु उन्हीं के बच्चे शिक्षा में पिछड़ जाते है उन्हें के बच्चों को अच्छा स्वास्थ्य नहीं मिलता है, उन्ही के लिए विटामिन प्रोटीन की बात नहीं होती है। हम सभी को श्रमिकों का सम्मान करना सीखना चाहिए। अगर किसी के पास अधिक धन है तो वो दूसरों की कॉस्ट पर ही है, दूसरों का हक मार कर ही है। हम सभी को अपने घरेलूश्रमिक के साथ घर के सदस्य की तरह व्यवहार करना चाहिए। उनके स्वास्थ्य, उनके बच्चों की शिक्षा तथा उनके जीवन की सुरक्षा का भी ख्याल करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के अवसर पर इतना तो संकल्प सभी को लेना चाहिए कि वो अपने संस्थान या घर में कार्य करने वालों का सम्मान करें और भारत को विकसित बनाने में अपने साथ कार्य कर रहे श्रमिकों को पूरा मेहनताना दे, और श्रम का पसीना सूखने से पहले देना सीखे, उसमे किसी प्रकार की चालाकी ना करे।
जय हिंद, वंदे मातरम