हरियाणा प्रदेश में स्थानीय निकायों में मताधिकार के प्रति कम होता रुझान, लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी तो नहीं!

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
हरियाणा प्रदेश में हाल ही में सम्पन्न हुए स्थानीय निकाय चुनाव में परिणाम भले ही कुछ भी रहे हो, परंतु इन चुनावों के प्रति आम जन की रुचि में गिरावट का आना चिंता का विषय है। मैं यहां शोध के रूप में हिसार नगर निगम का जिक्र कर रहा हूँ, वैसे तो स्थानीय निकाय चाहे वो नगर पालिका हो, नगर परिषद हो, या नगर निगम हो, सभी में पोलिंग प्रतिशत बहुत कम ही रहा है। अगर हम हिसार नगर निगम के सभी बीस वार्डों की बात करें तो इसमें से लगभग आधे वार्ड अर्थात 10 वार्डों में मतदान का प्रतिशत 50 से भी कम रहा है, अर्थात 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने तो पोलिंग में भाग ही नहीं लिया। हरियाणा जैसा प्रदेश जहां की भौगोलिक स्थिति परिस्थिति सामान्य है, आवागमन के साधन अच्छे है, शिक्षा का स्तर भी ठीक ही है। लोगों का एक शहर में रहना है, सभी सुविधाएं मौजूद है, अगर फिर भी मतदाता मतदान के प्रति रुचि नहीं रखते है तो फिर लोकतंत्र के प्रति आम जन का रुझान कम होता दिख रहा है, नागरिकों में अपने दायित्व के बोध का भी अभाव हैं। धीरे धीरे स्थानीय निकाय के चुनावो के प्रति नागरिकों का इंटरेस्ट भी घटता जा रहा हैं। हिसार नगर निगम का वार्ड के अनुसार अगर आंकलन किया जाए तो स्थिति साफ झलकती है। यहां वार्ड एक में लगभग 48 प्रतिशत मतदान हुआ, वार्ड दो में कुल मतदान लगभग 49 प्रतिशत के करीब ही हो पाया, इसी प्रकार वार्ड तीन में लगभग 42 प्रतिशत मताधिकारियों ने मतदान में रुचि दिखाई। वार्ड 12 में मतदान का प्रतिशत लगभग 47 प्रतिशत के आसपास ही रहा। इसी प्रकार अगर वार्ड 13 की बात करे तो मतदान के लिए केवल 46 प्रतिशत मतदाताओं ने ही उत्साह दिखाया। वार्ड नंबर 14 में भी 45.2 प्रतिशत मतदाताओं ने मतदान में भाग लिया। वार्ड नंबर 15 में भी मतदाताओं का रुझान कम ही रहा और कुल मिलकर लगभग 47.7 प्रतिशत मतदान ही हो पाया। वार्ड 17 में कुल 41.8 प्रतिशत मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया , इसी प्रकार वार्ड 18 में भी कुल मिलकर 41.9 प्रतिशत मतदाताओं ने वोटिंग प्रक्रिया में रुचि दिखाई। वार्ड 20 में कुल 39.9 प्रतिशत मतदाताओं ने ही पोलिंग में भाग लिया। मैं यहां ये कहना चाहता हूँ कि कुल बीस वार्ड में से अगर 10 वार्डों की पोलिंग 50 प्रतिशत से भी कम रही है तो इसके पीछे के कुछ तो कारण रहे होंगे। वजह कुछ भी हो, लेकिन इसके मायने आने वाले समय में खतरनाक होने वाले हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात ये है कि वार्ड तीन में लगभग 2 प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का प्रयोग किया है। इसी प्रकार 1 प्रतिशत या उसके आसपास नोटा का प्रयोग तो अन्य 6 वार्डों में भी किया गया है। यहां विमर्श का विषय ये है कि लोगों का राजनीतिक महानुभावों से विश्वास उठता जा रहा हैं। लोगों को लगता है कि पॉलिटिकल महानुभाव केवल वोट लेने आते है और फिर वो जन प्रतिनिधि के स्थान पर राजा बन जाते है। आमजन को उनके पीछे पीछे ही घूमना पड़ता है। पोलिंग के प्रति कम होते रुझान के बहुत से कारण है परंतु मैं यहां केवल 15 कारणों को आपके समक्ष लाने की कोशिश कर रहा हूँ, जैसे;
1. राजनीति में कुछ ही लोगों के कब्जे के कारण आमजन में कोई रुचि नहीं है।
2. सार्वजनिक कार्यों के प्रति राजनीतिक महानुभाव कम ही ध्यान देते हैं।
3. राजनीतिक लोगों द्वारा किए गए वायदों को ना निभाना भी एक कारण है।
4. काम करने वाले वा ईमानदार लोगों को विभिन्न पार्टियों द्वारा उम्मीदवार ना बनाना।
5. नए वा आम परिवारों के बच्चों का राजनीति में प्रवेश लगभग बंद ही हो गया है। हरियाणा प्रदेश में विद्यार्थी राजनीति लगभग खत्म ही हैं।
6. राजनीतिक महानुभावों के पास दूरदृष्टी ना के बराबर है, विधायिका में बैठे अधिकतर लोगों का निजी एजेंडा होता हैं।
7. स्थानीय निकाय में सभी शहरी क्षेत्र आते है,जिनमें जलभराव, टूटे हुए रोड, पार्किंग, ट्रैफिक मैनेजमेंट, अधिकतर सड़कों पर कब्जे की समस्या है, जो साल दर साल बनी रहती है, उनमें कोई सुधार देखने को नहीं मिलता, चाहे मेयर या पार्षद कोई भी बन जाए।
8. मताधिकार का प्रयोग ना करने की समस्या तभी आती है जब आम लोग जनप्रतिनिधियों के प्रति निराशावादी हो जाते है। समाज में नागरिकों में निराशा फैलने के मायने बहुत नकारात्मक हैं।
9. अधिकतर जनप्रतिनिधियों के बच्चे तो विदेशों में शिक्षा दीक्षा ग्रहण करते हैं इसलिए विधायिका तथा कार्यपालिका में बैठे माननीयों को राजकीय विद्यालयों से कोई लेना देना नहीं होता हैं, कोई भी जन प्रतिनिधि किसी स्कूल में जाकर नहीं देखते है, इसलिए आम मतदाताओं को राजनीतिक महानुभावों से कोई खास अपेक्षा नहीं होती है।
10. जब आम लोगों को विधायिका में बैठे महानुभावों से अपेक्षाएं खत्म हो जाती है तो ही आम लोग मतदान नहीं करना चाहते है।
11. इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि जनप्रतिनिधियों का आम जन से प्रेम तथा लगाव खत्म हो गया है, उन्होंने अपने अपने कंफर्ट जोन बना लिए है, उन्ही के पास उठते बैठते है।जब सामाजिकता खत्म हो जाती है तो रिश्ते टूटने लगते हैं। जब समाज टूटता है तो चेक और बैलेंस खत्म हो जाता है, जिसके कारण राष्ट्रभक्ति की भावना कहीं पीछे छूट जाती है।
12. राजनैतिक महानुभाव ही नहीं, बल्कि आमजन के आचरण का भी क्षरण हो रहा है, जिसकी वजह से नैतिक बल कम हो रहा हैं। जिसके कारण कोई अपनी ड्यूटी निभाने में रुचि नहीं दिखाते है।
13. आमतौर पर जनप्रतिनिधि केवल मुख्य अतिथि ही बनकर किसी गांव या समाज में जाना चाहते है, अचानक किसी के यहां आना जाना लगभग बंद ही हो गया है, जिसके कारण आपसी संबंध भी खत्म हो रहे है।
14. अधिकतर राजनेता अपनी बुराई नहीं सुनना चाहते, क्रिटिक्स खत्म हो गए, जिसके कारण पोलिंग से विश्वास खत्म हो रहा है।
15. चाटुकारों की भीड़ के आगे ईमानदार वा मेहनती लोगों को राजनीतिक महानुभाव पूछते ही नहीं है, अगर मिलना भी है तो बुके लेकर जाना पड़ता है। अधिकतर राजनेता अपनी पार्टी के महत्वपूर्ण लोगों के यहां ही जाते है, आमजन से रिश्ते छुटने लगे है। अधिकतर प्रत्याशी वोट मांगने भी नहीं जाते है, जिसका असर पोलिंग प्रतिशत पर पड़ता है।
अब समय आ गया है कि राजनीतिक महानुभावों के लिए प्रशिक्षण आयोजित होने चाहिए, जिससे उनका मनोबल ऊंचा बन सके। पोलिंग का प्रतिशत बढ़ाना है तो हर पार्टी के प्रत्याशियों को भी मेहनत करनी होगी। आम लोगों के मन में उत्साह तभी जागृत होता है जब राजनेता लगातार आम लोगों से मिलने की प्रक्रिया जारी रखते है। आओ मिलकर चुनावी प्रक्रिया को जीवंत बनाने का कार्य करें।
जय हिंद, वंदे मातरम