हर माता पिता अपने घर के एक कोने में दस गुणा दस का ऐसा स्थान रखें, जहां रेत डाले और उसमें बच्चों को खेलने दें

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Every parent should keep a space of ten by ten in a corner of their house where sand should be put and children should be allowed to play in it

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
विषय बहुत ही महत्वपूर्ण है इस पर चर्चा करना बेहद जरूरी है। आजकल हमारे घरों में नए नए बनने वाले मातापिता अपने बच्चों को नंगे पैर रहने ही नहीं देते है, जिसे आधुनिक पेरेंट्स बेयर फूट कहते है।  वर्तमान जवान मातापिता बच्चों को मिट्टी को हाथ भी नहीं लगाने देते है, और अंग्रेजी के शब्द बोल बोल कर बच्चों को मिट्टी से डराते रहते है। फिर जब समस्या होती है तो मिट्टी से इलाज कराने के लिए दौड़ते है। आजकल कितने ही ऐसे महानुभाव है जो प्राकृतिक चिकित्सा की शरण में जाते है।

हम सभी जानते है अगर नहीं पता है तो जानने का जतन करो कि हमारा शरीर पंच महाभूतो से बना है। अब कुछ लोग ये कहेंगे कि ये पांच महाभूत क्या है तो सबसे पहले इसके विषय में जान लेते है। हर इंसानी शरीर पांच तत्वों से बना है जिसमें पहला धरती अर्थात मिट्टी, दूसरा वायु, तीसरा आकाश, चौथा जल अर्थात पानी और पांचवां अग्नि अर्थात ऊर्जा शामिल है और इस शरीर के मरने के बाद भी यह इन्हीं पांच तत्वों में विलीन हो जाता है। लेकिन अब आप जो लोग अधिक शहरी है, पढ़े लिखे है तो फिर इससे क्या होता है? हां , इससे होता है,

जिन पदार्थ से शरीर बना है तो उसे स्वस्थ भी वो ही तत्व रख सकते है यानी मिट्टी, जल, वायु, आकाश तथा अग्नि। अगर इन तत्वों से शरीर को दूर रखा जाएगा तो यह बीमार हो जाएगा, तो हम सभी को यही तो जानना है कि पांचों तत्व कैसे इस शरीर को दिए जाएं। यहां मैं बहुत ही आसान तरीके से समझाना चाहता हूँ कि जैसे हम सांस के बिना एक मिनट भी नहीं रह सकते है, यही तो वायु तत्व है, उसी तरह हम अन्य चार तत्वों के बिना भी कुछ देर नहीं रह सकते। अगर धूप ना मिले तो शरीर कमजोर और बीमार होने लगता है।

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पूरी पृथ्वी पर अग्नि का एक ही श्रोत है वो है सूर्य, जिससे सभी जीवित है। ये भी आप सभी जानते है कि अगर पानी भी कुछ समय नहीं मिले तो भी हमारा जीना मुश्किल में पड़ जाता है। अब बचे दो तत्व, जिनका हमे कोई खास कारण नजर  नहीं आता है परंतु ये दोनों भी उसी तरह महत्वपूर्ण है जैसे जल, अग्नि, वा वायु जरूरी है। अगर हमारे शरीर को धरती के डायरेक्ट टच में ना रखा जाए तो फिर ये शरीर पॉजिटिव वा नेगेटिव ऊर्जा से चार्ज नहीं होता है, हमारा इम्यून सिस्टम कमजोर होने लगता है। जैसे बिजली का बल्ब जलाने के लिए अर्थ किया जाता है, या बड़ी बड़ी इमारतों को आकाशीय बिजली से बचाने के लिए अर्थिंग के लिए जमीन में एक मेटल का तार या पती का इस्तेमाल किया जाता है

उसी प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भी हमें अपने शरीर को मिट्टी के सीधे संपर्क में रखने की जरूरत होती है, अन्यथा अलग अलग प्रकार से शरीर बीमार या एलर्जी का शिकार होने लगता है। वर्तमान में ऐसा चलन हुआ है कि बच्चों को घर में भी बिना चप्पल जूतों के रहने ही नहीं दिया जाता है, आधुनिक मम्मियां तो इसके लिए बच्चों को अंग्रेजी में डांटती है, जिसके कारण विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बच्चे घिर जाते है। हम सभी को इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार करना चाहिए और शरीर की दिन प्रतिदिन की मरम्मत के लिए मिट्टी के संपर्क में रहना आवश्यक है। अगर किसी को ये लगता है कि हमारे घर में तो कच्चा स्थान ही नहीं हैं, या शहरों में लोग मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट में रहते है तो हम कहां से बच्चों को मिट्टी के संपर्क में लाएं। दोस्तो, हर बात का हल होता है, आप  के घर में अगर खुली जगह है तो उसे कच्चा रख कर उसमें दस गुणा दस का स्थान एक कोने में रख ले और बच्चों को वहीं पर टहलने या खेलने को कहे, दूसरा अगर कच्ची जगह नहीं है तो घर के एक कोने में रेत डलवाए तथा बच्चों को वहां खेलने के लिए कहें, ताकि उनका शरीर मिट्टी में आ सके।

इसमें एक और सुझाव है कि अगर आप किसी रेजिडेंशियल सोसाइटी में रहते है तो उसमें एक बड़ा स्थान कच्चा रखा जाए और उसमें रेत भरवाया जाए ताकि सभी लोग, नंगे पैर वहां पर कुछ देर टहल सके, बच्चे वहां खेल सके और अगर कब्बड्डी खेलने जितना स्थान है तो सभी बच्चे उसमें खेल भी सकते है। अगर किसी के पास दस गुणा दस का स्थान नहीं है तो दीवार के साथ साथ दो गुणा दस की एक पगडंडी बना ले और उसमें लगातार नंगे पैर टहले ताकि आपकी शारीरिक जरूरत पूरी हो सकें। जैसे जल की पूर्ति पानी पीने और नहाने से होती है, उसी प्रकार अपने बच्चों को कभी कभी बरसात में भी नहाने को प्रेरित करना चाहिए,

जिससे उनका स्वास्थ्य बेहतरीन रहे। इस शरीर को पांच तत्वों के साथ रखने में ही स्वास्थ्य का आगमन होता है। ये बाते या ये कार्य केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि सभी के लिए आवश्यक है। आजकल हम देखते है कि बहुत से लोगों में बेचैनी रहती है, पैरों के तलवों में जलन रहती है, पैर भड़कते है, सिर में भारीपन रहता है, छोटी छोटी बातों पर क्रोध आता है, तनाव आता है और इसका इलाज हम दवाइयों में ढूंढते है। क्या हम दवाई लेने से पहले अपने शरीर को मिट्टी के संपर्क में नहीं ला सकते है, नंगे पैर मिट्टी में नहीं घूम सकते है, नंगे पैर प्रातः घास पर नहीं टहल सकते है, ऐसा करोगे तो निश्चित तौर पर हमारी बॉडी निरोग होगी।

जो बच्चे मिट्टी के संपर्क में रहते है, नंगे बदन खेलते है उन बच्चों में रोगप्रतिरोधात्मक क्षमता अधिक होती है। हम सभी अपनी दिखावटी जिंदगी को छोड़े और शरीर को पंच महाभूत से जोड़े, प्रकृति की शरण में जाएं, प्रातः जल्दी उठे, नंगे पैर टहले, खुले आकाश का आनंद लें, बरसात में नहाए, मिट्टी में खेलें, फिर देखना आपका शरीर ही नहीं बल्कि मन भी सशक्त बनेगा, जीवन तंदुरुस्त रहेगा।  आओ मिलकर जीवन को सावन के महीने से ही प्रकृति से जोड़ने का संकल्प ले, अन्यथा वो दिन दूर नहीं कि जब हमे मिट्टी में टहलने के भी पैसे देने होंगे और ये भी मेडिकल व्यवसाय बन जाएगा। 
जय हिंद, वंदे मातरम