विद्यार्थियों को प्लेजर अथवा हैप्पीनेस में से चुनना है तो सदैव हैप्पीनेस को चुनने का संकल्प लें
mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
विद्यार्थी जीवन सीखने, समझने तथा स्वयं को बदलने का समय होता है, बच्चें प्राथमिक विद्यालय से शुरू करके महाविद्यालय या विश्वविद्यालय तक शिक्षा ग्रहण करने जाते है, इस समय ना जाने कितने ही अवसर ऐसे होते है जहां एक विद्यार्थी को स्वयं ये तय करना पड़ता है कि मैं क्या करूं और क्या ना करूं? मैं किस लिए पैदा हुआ हूं, या जीवन में मेरा क्या कर्तव्य है?यही प्रश्न एक बड़ा प्रश्न होता है, जिसका हल विद्यार्थी शायद आखिरी तक भी नहीं निकाल पाने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। छोटी आयु में तो अपरिपक्वता के कारण उन्हें समझ की कमी होती है, और जैसे जैसे बड़ी उम्र होती है तथा बड़ी क्लासेज की ओर बढ़ते है तो शारीरिक आकर्षण इतना बढ़ जाता है कि वो उन सबमें उलझ जाते हैं। विद्यार्थी काल में सबसे महत्वपूर्ण समय जो होता है।
वो किशोरावस्था का काल होता है, जिसे अंग्रेजी में एडोलोसेंट एज भी कहा जाता है, कुछ लोग इसे टीनएज भी कहते है, अर्थात 13 वर्ष से लेकर 19 वर्ष तक की आयु, लेकिन शोध ये कहते है कि जो शारीरिक आकर्षण पहले टीनएज में होता था, शायद वो अब टेनएज में आ गया है अर्थात इसकी आयु घट गई है, अब थोड़ी छोटी आयु में हार्मोनल बदलाव होने लगते है, इसके विभिन्न कारण हो सकते है जैसे मोबाइल का अत्यधिक उपयोग, खानपान में बदलाव, आधुनिकता, संगत, बातचीत का स्तर भी इसके लिए जिम्मेदार है। इसलिए विद्यार्थियों के सामने अब सेक्सुअल आकर्षण, खुद के शरीर के प्रति आकर्षण और स्वयं को दिखाने की वृति छोटी आयु में आने लगी है यानि लगभग 10 से 12 वर्ष की आयु में बच्चा खुद को बड़ा समझने की ओर बढ़ता है।
ऐसे वक्त में ये जरूरी हो जाता है कि उनको मातापिता का सहयोग मिलें, उनके साथ मातापिता का इंटरेक्शन बढ़े, उनके साथ मातापिता का रहना सहना बढ़े और उन्हें हर दिन व्यक्तित्व विकास या जीवन जीने के कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा कर प्लेजर वा हैप्पीनेस के अंतर को स्पष्ट करने की कौशिश करनी चाहिए। प्रिय विद्यार्थियों, ये विषय बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इस आयु में हार्मोनल बदलाव के कारण ये होना लाजिमी है, इसलिए इस आयु में होने वाले शारीरिक बदलाव, मानसिक बदलाव तथा चाहतों को जरूर जाने एवं मातापिता के इस सहयोग को सहर्ष स्वीकार करें, ताकि कोई भी विद्यार्थी राह से भटके नहीं, और जीवन की ऊर्जा तथा प्राण ऊर्जा को सहेजकर रखने में कामयाब हो जाएं।
मैं यहां प्लेजर तथा हैप्पीनेस के अंतर को स्पष्ट करना चाहता हूँ क्योंकि हम अधिकतर लोग इन दोनों में अंतर ही नहीं कर पाते है, जैसे प्लेजर जिसे हिंदी में स्वाद भी कहा जाता है, और अरबी भाषा में इसे मजा भी कहते है। हम अक्सर इस मजे वा स्वाद रूपी राक्षस के लिए ही अधिक समय बर्बाद करते है, जैसे कोई छोटी मोटी वस्तु मिल जाए, कोई अच्छा खाने को मिल जाए, कोई कही घूमने को मिल जाए, कोई नया वस्त्र मिल जाए, कोई थोड़ी प्रशंसा कर दे, इस आयु में कोई कॉम्प्लीमेंट मिल जाए, मोबाइल पर कुछ लाइक्स मिल जाएं, या गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड बन जाए तो कहते है कि आज तो स्वाद आ गया या मजा आ गया, इसी को प्लेजर कहा जाता है जो थोड़े समय के लिए होता है और विद्यार्थियों के जीवन को पटरी से उतारने वाला होता है। अगर हैप्पीनेस की बात करे तो ये दूरगामी होती है, ये मेहनत से मिलती है,
ये परिश्रम से मिलती है, जिसे खुशी भी कहा जाता है, और बेहतर ढंग से समझे तो इसे आनंद कहा जाता है। यहां ये स्पष्ट करना बेहद जरूरी है कि प्लेजर थोड़े समय के लिए है बाद में चिंता, दुख, परेशानी, भय, रुग्णता तथा असुरक्षा छोड़कर जाता है, लेकिन हैप्पीनेस परमानेंट है, स्थाई है, वो जीवन को हर प्रकार के भय, चिंता, भटकाव, दिखावें, किसी भी प्रकार की असुरक्षा से दूर रखती है। विद्यार्थियों को यहां कुछ वैज्ञानिक बाते भी जाननी चाहिए, इससे सभी को साइंटिफिक टेंपरामेंट मिलता है, हरेक का दृष्टिकोण जीवन को परिश्रम की ओर लेकर जाता है, वह विद्यार्थियों को शॉर्ट कट्स से बचाता है, यह विद्यार्थियों को रटा से बचाता है, यही दृष्टिकोण किसी भी विद्यार्थी में व्यापक दृष्टिकोण को जन्म देता है। विद्यार्थियों में अधिकतर प्लेजर का आकर्षण ज्यादा होता जा रहा है जैसे, कोई रेस्टोरेंट में कुछ खिला दें,
कहीं पर थोड़ा घूम लें, इधर उधर पार्कों में टहल लें, कोई गर्ल फ्रेंड बन जाए, कोई बॉय फ्रेंड बन जाए, किसी के साथ सेक्सुअल गतिविधि हो जाएं, कोई मूवी देख लें, कोई मोबाइल रिचार्ज करा दें, या किसी का साथ मिल जाएं, किसी से कोई गुपचुप बातें हो जाए, कुछ धमाकेदार गाने सुनने को मिल जाएं जिनमें सेक्सुअल पुट हो, कुछ अच्छे ब्रांडेड कपड़े मिल जाएं, चेहरे को सुंदरता बना लें, जिससे कोई उन्हें देख लें, यही सब बेकार की जरूरतों की तरफ मन भागता है, और उस आयु में वही सबकुछ अच्छा भी लगता है, यह सच्चाई है, इससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है, अगर कोई कहें कि ये सही नहीं है तो वो झूठ बोलते है। जो उस समय विद्यार्थी देखते है उन्हें वो ही सच्चा लगता है लेकिन वो सही होता नहीं है क्योंकि कुछ देर का प्लेजर कभी भी जिंदगी को हैप्पीनेस की ओर या खुशी की ओर नहीं लेकर जा सकता है। जीवन में सफलता, हैपीनेस या खुशी तो मेहनत से मिलती है, यह संतोष व संतुष्टि का हिस्सा है, जब विद्यार्थी या विद्यार्थी ना भी हो,
तो भी हैप्पीनेस तभी आती है जब हम खूब मेहनत करते है, तब हमे रिजल्ट का डर नहीं होता है, कहते है मेहनत चाहे वो शारीरिक हो, मानसिक हो या फिर बुद्धि की हो या फिर आध्यात्मिक हो, उसी से हमारे खुशी के हार्मोन रिलीज़ होते है जिन्हें हम सेरोटोनिन कहते है, यही हमे आनंद की ओर लेकर जाता है। जब हम शारीरिक व्यायाम करते है, जब हम मंथन करते है, जब हम बुद्धि से सोचते समझते है, मन लगाकर पढ़ाई करते है या हम आध्यात्मिक गतिविधि करते है या फिर हम जरूरतमंद की जरूरत पूरी करते है या किसी जीव को भोजन पानी कराते है तो हमारे भीतर से सेरोटोनिन नामक हार्मोन रिलीज़ होता है जो हम सभी को हैपीनेस देता है। इसके लगातार रिलीज करने के लिए हमे लगातार मेहनत करनी पड़ती है। विद्यार्थी जीवन प्लेजर के लिए नहीं बना है, ये जीवन का ऐसा काल है जिसपर जिंदगीभर की हैप्पीनेस या खुशी टिकी होती है, इसलिए विद्यार्थी जीवन को प्लेजर के चक्कर में बर्बाद न करें।
इतने छोटे छोटे प्लेजर है विद्यार्थियों के, कि उसे उल्टे पलटे बाल करवाना भी कई बार प्लेजर देता है, फटी हुई जींस पहनना भी प्लेजर देती है, दूसरों से अलग दिखने भी प्लेजर देता है। हमारी आजकल की एडोलोसेंट या युवा पीढ़ी को पांच गतिविधियां प्लेजर की ओर अधिक खींचती है, पहली नशे करने की वृति, शराब बीयर आदि का सेवन करना, एक बड़ी चाहत है, जिसकी पूर्ति के लिए वो कुछ भी करते है, टीनएज में ही इसका सेवन शुरू हो जाता है, दूसरी सेक्सुअल अट्रैक्शन, कैसे भी इसकी प्राप्ति हो जाए, इसका आकर्षण बहुत तीव्र होता है, यहां हर विद्यार्थी को एक बात बहुत समझदारी से जाननी चाहिए कि ये प्रेम नहीं सेक्सुअल डिजायर से अधिक कुछ नहीं होती है। तीसरा, गाड़ी उठाकर कहीं भी घूमने की वृत्ति भी अधिक देखने को मिलती है। यहां यह कहना जरूरी है कि आजकल विद्यार्थी घर से, मातापिता से दूर रहना इसलिए भी पसंद करते है ताकि उनकी किसी भी प्रकार की गतिविधियों में अड़चन ना आएं।
हैप्पीनेस सदैव दूरगामी होती है और परिश्रम से मिलती है, यह किसी भी प्रकार के कम्फर्ट में नहीं है यह कंफर्ट से दूर है और प्लेजर बहुत लघुगामी है, यह कंफर्ट में ही मिलता है, बिना मेहनत के भी मिलता है, यह बहुत ही छोटे समय के लिए है, जिसकी जरूरत हर समय पड़ती है, जैसे स्वादिष्ट भोजन एक समय खाया तो अगले समय फिर जरूरत होगी, एक बार शराब पी तो अगले दिन फिर उसकी जरूरत पड़ेगी, बल्कि उसकी ओर ध्यान अधिक आकर्षित होगा, एक बार सेक्स किया तो अगले दिन फिर उसी की ओर आकर्षण बढ़ेगा, एक बार महिला पुरुष मित्र से मिले तो अगले दिन फिर उसकी याद आएगी, क्योंकि प्लेजर बहुत छोटे समय के लिए होता है, बहुत दुखदाई, चिंता में डालने वाला तथा ग्लानि उत्पन्न करने वाला होता है, इसके विपरित हैप्पीनेस जीवन भर खुशी देती है, स्वास्थ्य देती है,
आत्मविश्वास देती है, हैप्पीनेस निर्भयता देती है, हैप्पीनेस निष्पक्षता देती है, हैप्पीनेस उत्साह हिम्मत देती है, परिश्रम करने को प्रेरित करती है। विद्यार्थियों को प्लेजर से दूर रहने तथा हैप्पीनेस को प्राप्त करने के लिए सात कदम जरूर उठाने की जरूरत है, जिसमें, पहला मन को नियंत्रित करने के लिए योग, प्राणायाम, ध्यान, मेडिटेशन का सहारा लेना चाहिए, दूसरा हर रोज व्यायाम जरूर करें, इसमें रनिंग, साइक्लिंग, स्विमिंग, पुशअप, पुलअप्स या वॉक शामिल हो सकती है, तीसरा शराब या किसी भी प्रकार के नशे के सेवन से बचें क्योंकि नशा स्वास्थ्य के लिए हानिकर है, चौथा मोबाइल से परहेज करना सीखें, स्टडी करते वक्त मोबाइल को स्विचऑफ करने की आदत विकसित करें और पांचवां विद्यार्थी काल में अपना लक्ष्य उच्च रखें,
अपने भीतर से हर दिन नए प्रश्न तैयार करें और उनका हल अपने टीचर के माध्यम से या स्वयं ढूंढने की आदत डालें, छठा कम से कम छह घंटे बुक रीडिंग को समय दें, ताकि लक्ष्य प्राप्त करने में सहयोग मिलें और सातवां वा सबसे अहम अपने समय पर किसी की बुरी नजर ना लगने दें, उसका उपयोग करते समझदारी से करें, क्योंकि वो लौटकर नहीं आएगा, समय कभी वापिस नहीं आता है, आज की तारीख आपके जीवन काल में कभी नहीं आएगी इसे समझे, अपने मातापिता की कष्ट कमाई का उपयोग किसी गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड को रेस्टोरेंट में खाना खिलाने या उनके मोबाइल रिचार्ज कराने या उन्हें उनकी बातों को पूरा करने में ना उड़ाए। अपने जीवन की बेहतरी के लिए जीवन को नियंत्रित करने का अभ्यास हर दिन करें। जीवन हैप्पीनेस से चलेगा, प्लेजर से दुख ही मिलेगा, उसे मन मस्तिष्क में रख लें, हर विद्यार्थी।
जय हिंद, वंदे मातरम
