पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल के प्रमाणपत्र के बाद भी निजी वाहन 10 वर्ष में कैसे रद्दी हो जाएंगे, ये विचारणीय है

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
युथ एंपावरमेंट मेंटर
आजकल DELHI और NCR में 10 वर्ष पुरानी डीजल तथा 15 साल पुरानी पेट्रोल की गाड़ियों को सड़क पर चलने लायक नहीं माना जा रहा है और वही गाड़ियां देश के अन्य क्षेत्र में चलने लायक है, ये निर्णय किस आधार पर लिया गया, यही देश के बुद्धिजीवियों के लिए विचारणीय है। यहां ऐसी गाड़ियों को सी सी टी वी कैमरे या खुद ट्रैफिक में ड्यूटी पर तैनात पुलिस कर्मी पकड़ रहे है, ऐसा कहा जा रहा है कि ये गाड़ियां प्रदूषण का कारण हैं।
ये दलील इस लिए हजम नहीं होती है क्योंकि इन सभी निजी वाहनों के पास तो सरकार द्वारा अप्रूव्ड पी यू सी के प्रमाणपत्र वितरण सेंटर्स से सर्टिफिकेट के साथ चलाए जा रहे है, फिर भी ये वाहन प्रदूषण कैसे कर रहे है यही बात विमर्श करने योग्य है। यहां ये लड़ाई दस पंद्रह वर्ष पुरानी गाड़ियों के खिलाफ है या प्रदूषण के विरुद्ध है या फिर जिनके पास ऐसी गाड़ियां है उनके खिलाफ है क्योंकि इन तीनों परिस्थितियों में समस्याओं के समाधान अलग अलग है। अगर तो प्रदूषण के विरुद्ध लड़ाई तो फिर गाड़ियों में वर्ष की पाबंदी के कोई मायने नहीं है क्योंकि कौन सी गाड़ी प्रदूषण कर रही है उसका कितने वर्ष पुरानी से तो कोई ताल्लुक ही नहीं है।
कोई गाड़ी 10 वर्ष पुरानी है लेकिन कुल बीस 30000 किलोमीटर चली है और रखरखाव भी बहुत अच्छा है, प्रदूषण भी नहीं कर रही है तो उसपर ये साल का आंकड़ा फिट नहीं बैठता है। ये तो अनजान से अनजान व्यक्ति भी बता देगा कि जो गाड़ी अधिक चलती है, रखरखाव सही नहीं है तो ही वो प्रदूषण करेगी, अन्यथा नहीं। इसमें भी एक प्रश्न उठता है कि जब सरकार द्वारा अप्रूव्ड पी यू सी सर्टिफिकेट उनके पास है तो फिर वो प्रदूषण कैसे करती है, जिसे समय समय पर ट्रैफिक पुलिस कर्मचारी चेक करते है।
दूसरी परिस्थिति है कि गाड़ियों से लड़ाई लड़ना कि हमने साल के आंकड़ों के अनुसार निजी वाहनों को सड़क से अलग करना है तो फिर इसके पीछे की मंशा भी स्पष्ट करनी चाहिए क्योंकि लाखों गाड़ियों को कबाड़ में बदलने का नियम भी नेचर के लिए कभी भी फायदेमंद नहीं हो सकता है, उनको डिस्पोज ऑफ करना भी कोई आसान कार्य नहीं है। हो सकता है आज सरकारें रेवेन्यू के चक्र में या कंपनियां अपनी अनाप शनाप आमदनी के चक्र में इस पृथ्वी से मिनरल निकालने का कार्य तेजी से कर रही है, लेकिन ये भी राष्ट्र के लिए लाभदायक सौदा नहीं है। तीसरी परिस्थिति में वाहन के चालकों को परेशानी में डालना भी तो कोई समझदारी नहीं है। इस देश में लाखों महानुभाव बड़ी बुद्धि वाले है, बहुत से महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हुए है,अर्थात ब्यूरोक्रेसी में बैठे हैं,
न्यायपालिका में बैठे है तथा विधायिका में बैठने वाले महानुभाव सच्चे दिल वा ईमानदारी से समस्या का समाधान ढूंढे, क्या उन्हें नहीं पता है कि प्रदूषण का मुख्य कारण गाड़ियों के पुराने होने के वर्षों से नहीं है बल्कि रखरखाव की कमी के कारण से है, दूसरा बिना जांच किए पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल का प्रमाणपत्र देने से है। कितने की वेस्टर्न कंट्री, यूरोपियन देशों में तीस तीस वर्ष पुरानी गाडियां चलती है लेकिन वहां ऐसे सेंटर है जहां पॉल्यूशन ईमानदारी से चेक किया जाता है और रिपेयरिंग के लिए आवश्यक सुझाव दिए जाते है, जिससे कि वो इसे दुरुस्त करा सके। अगर वास्तव में राष्ट्र को वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण या अन्य प्रदूषण से निजात दिलानी है तो कारण सही ढूंढो और उन पर कार्य करने की जरूरत है।
यहां हमे देश के मिनरल संसाधनों को बचाने की भी जरूरत है, या आयात करने से बचने की जरूरत है, इसलिए कुछ सुझाव दिए जा रहे है, जैसे ;
1. अगर पॉल्यूशन से लड़ना है तो गाड़ियों के रखरखाव की तरफ ध्यान देना चाहिए।
2. देश में हर सबडिविजन लेवल पर पॉल्यूशन जांच केंद्र स्थापित करने चाहिए, जिसमें पी यू सी तभी मिले, जब गाड़ी की जांच की जा सके।
3. अगर जांच में किसी भी प्रकार के मैकेनिकल पुर्जे या फिल्टर चेंज की जरूरत हो तो वो बदलवाकर पुनः चेक हो, उसके बाद ही पी यू सी इश्यू हो सकें।
4. सभी वाहन चालकों का हर वर्ष प्रशिक्षण हो, और जो भी नए नियम कानून हो, उन्हें बताया जाए, इसके साथ गाड़ी को कैसे पॉल्यूशन मुक्त रखना है उसकी ट्रेनिंग देनी चाहिए।
5. लाइसेंसिंग ऑथोरिटी की जिम्मेदारी बढ़नी चाहिए, अगर कोई व्यक्ति अपनी गाड़ी का रखरखाव प्रदूषण मुक्त के अनुसार नहीं रख रहे है तो उस अधिकारी जिसने उन्हें लाइसेंस इश्यू किया है उन पर भी कार्यवाही होनी चाहिए।
6. हमे ना तो गाड़ियों से लड़ना है ना उनके मालिकों से लड़ना है, हमे तो पॉल्यूशन से लड़ना है तो चालान काटने की बजाय उनके पॉल्यूशन चेक करने की व्यवस्था होनी चाहिए, जो लोग प्रदूषण फैला रहे है उन्हें सजा का प्रावधान भी हो।
7. गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन के वर्ष गिनने से ज्यादा जरूरी है पॉल्यूशन जांच करना। अगर कोई गाड़ी पुरानी है और उसकी उपयुक्त जांच होती है, तो ऐसे चालकों को एप्रिसिएशन सर्टिफिकेट भी मिलना चाहिए।
8. हमे ईमानदारी से प्रदूषण से लड़ना, हम यहां उद्योगपतियों की गाड़ियां बेचने के लिए नहीं बैठे है। इसलिए सबसे अधिक आम सिटीजन की समस्याओं पर ध्यान देना जरूरी है।
9. ऐसे उद्योगपतियों को भी सजा मिलनी चाहिए जो पॉल्यूशन मुक्ति के लिए गाड़ियों में उपयुक्त व्यवस्था करने में कोताही बरतते है, गाड़ियों की सर्विस में कोताही बरती जाती है।
10. प्रदूषण मुक्ति के लिए पेट्रोल पंप मालिक भी बराबर के जिम्मेदार होते है जो तेल में मिलावट करते है जिसकी वजह से कोई भी वाहन अधिक धुआं छोड़ती है, इसलिए उनपर भी पेट्रोल डीजल की शुद्धता की जांच होनी चाहिए।
किसी भी गाड़ी को 10 वर्ष में या 15 वर्ष में बेकार घोषित करना कोई बुद्धिमता का कार्य नहीं है, इतनी बड़ी संख्या में गाड़ियों को हर वर्ष डिस्पोज ऑफ करना भी प्रदूषण फैलाने का ही कार्य करेगा। अपनी पृथ्वी के दोहन को रोकने के लिए हर प्रकार की वस्तु को अधिक से अधिक दिनों तक रखने को बढ़ावा देना चाहिए। अगर कुछ लोग मरम्मत के क्षेत्र को ही खत्म करने पर उतारू है तो रोजगार की बहुत बड़ी कमी राष्ट्र को खोखला कर देगी। भारत जैसे देश जिसकी आबादी इतनी बड़ी है कि यहां तो हर घर में मिनी उद्योग हो, तभी हम सभी नागरिकों को काम दे पाएंगे, अन्यथा अभी तो हम प्रदूषण से लड़ रहे है, आने वाले समय में अपराध और नशे से लड़ना मुश्किल हो जाएगा। देश को सबसे अधिक आम नागरिक के सशक्तिकरण पर ध्यान देने की जरूरत है, तभी हम हर प्रकार की समस्याओं से निजात पाएंगे, तभी हमारी प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी और देश समृद्ध होगा।
जय हिंद, वंदे मातरम