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बाजरे का आटा अब महीने भर नहीं होगा खराब, सिरसा CDLU में बाजरे के आटा पर की गई रिसर्च

बाजरे के आटा से बने बिस्किट में अब ज्यादा प्रोटीन 
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 बाजरे का आटा अब महीने भर नहीं होगा खराब, सिरसा CDLU में बाजरे के आटा पर की गई रिसर्च 
अक्सर देखने में आया है कि बाजरे का आटा ज्यादा दिन तक नहीं चल पाता है। बाजरे का आटा कुछ ही दिनों मेंं खराब हो जाता है। बाजरे का आटा इसी को लेकर घरों में कम ही लेकर आते हैं। अब बाजरे का आटा महीने भर खराब नहीं होगा। जी हां यह सच है,

किया गया शोध बाजरे आटा पर 
इसी पर चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय के छात्रों व प्राध्यापकों ने शोध कार्य किया है। शोध में बाजरे से स्टार्च को अलग कर इसकी गुणवत्ता बढ़ाई गई है। इस शोध में सामने आया कि अब बाजरे का आटा महीने भर खराब नहीं होगा। इसी के साथ ही यह सीलिएक रोगियों के लिए सबसे अधिक फायदेमंद होगा। बाजरे में ग्लूटेन नामक तत्व नहीं होता, जोकि सीलिएक रोग ग्रस्त लोगों के लिए बहुत अच्छा है। 

बाजरे की रोटियां गेहूं के बजाय ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक हैं। यह शारीरिक क्षमता भी बढ़ाती हैं। बड़ी समस्या यह है कि बाजरे का आटा ज्यादा दिन तक खाने योग्य नहीं रहता। इसके जल्द खराब होने की संभावना बनी रहती है। पाचन क्रिया से संबंधित इस बीमारी में ग्लूटेन नाम तत्व विपरीत असर डालता है। बता दें कि गेहूं, जौ, राई में यह तत्व प्रचुर मात्रा में पाया जाता है जबकि बाजरे में यह नहीं होता। 

शोध में बाजरे से स्टार्च को अलग करने और खाद्य वस्तुओं में इसकी उपयोगिता बढ़ाने पर जोर दिया गया। शोध में बाजरे से रस्क, बिस्किट, कुकीज और ब्रेड तैयार किए गए। फिर आटे को खराब होने से बचाने के लिए उपचार किया गया। इससे आटे की मियाद एक माह तक बढ़ गई। 

बता दें कि इस शोध कार्य में डा. मंजू नेहरा, डा.अनिल कुमार सिरोहा, डा. विकास नैन और डा. बृजलाल का इस शोध में विशेष योगदान रहा। बच्चे रोटी के बजाय बिस्कुट अधिक खाते हैं। ऐसे बच्चों में प्रोटीन की काफी कम रहती है। गेहूं के आटे से बने बिस्कुट में 5 से 6 प्रतिशत प्रोटीन होता है। 

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सीडीएलयू सिरसा के शोधकर्ताओं ने इसे 9 से दस प्रतिशत तक पहुंचा दिया। खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से किए गए शोध में आटे के बिस्किट में प्रोटीन के बेहतरीन स्रोत अंडा व दलहन पर फोकस किया गया। इसके बाद उच्च प्रोटीन युक्त बिस्किट बनाने में कामयाबी भी मिली। 

प्रथम विधि में 
पहली विधि में गेहूं के आटे के साथ अरहर के आटे को मिलाकर बिस्किट बनाया गया और ऐसा कर बिस्किट में प्रोटीन की मात्रा 6 से 9 प्रतिशत हो गई। अंडे से बिस्किट बनाया गया। इसमें अंडे के सफेद हिस्से का पाउडर बनाकर उसे आटे में मिलाया गया। इससे प्रोटीन की मात्रा छह से बढ़कर 10  फीसद हो गई।बच्चों में हो रही प्रोटीन की कमी

सीडीएलयू सिरसा की प्राध्यापिका डा. मंजू नेहरा ने बताया कि बच्चों में प्रोटीन की मात्रा बहुत कम हो रही है। इससे स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ रहा है। अक्सर बच्चे रोटियां व अन्य खाद्य पदार्थ कम खाते हैं, बल्कि उन्हेंं बिस्किट ज्यादा अच्छे लगते हैं।

इसी लिए बिस्किट में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने पर शोध किया गया। यह पूर्ण रूप से सफल रहा। उन्होंने बताया कि एमएससी के छात्रों ने गेहूं के आटे के साथ उबले हुए अरहर के आटे को मिलाकर प्रयोग किया।

आपको बता दें कि प्रोटीन की कमी से मांसपेशियों से संबंधित रोग बढ़ रहे। डा. नेहरा ने बताया कि 73 प्रतिशत भारतीय बच्चे प्रोटीन की कमी से मांसपेशियों से संबंधित बीमारियों से जूझते हैं। इंडियन डाइटिक एसोसिएशन के अनुसार 64 प्रतिशत इंडियन प्रोटीन के उचित स्रोत व उसकी शरीर में उपलब्धता से अनभिज्ञ हैं।

इनमें से 93 प्रतिशत व्यक्तियों को प्रोटीन की दैनिक रिकमंडेडिड डेली अलाउंस के बारे में जानकारी नहीं है। इसीलिए विश्वविद्यालय ने प्रोटीन की मात्रा बढ़ाए जाने पर रिसर्च की है।''