गांव दड़बा कलां में सत्संग का आयोजन, हमें गो सेवा करनी चाहिए, गौ सेवा से बढक़र कोई सेवा नहीं : साध्वी कांता प्रभाकर
नाथूसरी चौपटा स्थित श्री कृष्ण प्राणामी निज धाम से साध्वी कांता प्रभाकर ने गांव दड़बा कलां में सत्संग करते हुए राजा भरतरी की कथा सुनाई गई है, उन्होंने बताया कि अपनी प्रिय रानी पिंगला की बेवफाई से दुखी होकर अपना राजपाट छोटे भाई विक्रमादित्य को दे दिया और गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर संन्यास ले लिया। यह कथा राजा भरतरी के वैराग्य और आध्यात्मिक यात्रा पर केंद्रित है, जिसमें सांसारिक मोह-माया को त्यागकर सच्चा ज्ञान पाने का संदेश है।

गांव दड़बा कलां निवासी रोहताश बैनिवाल के आवास पर सत्संग करते हुए साध्वी कांता प्रभाकर ने आगे बताया कि राजा भरतरी उज्जैन के शासक थे और अपनी पत्नी पिंगला से बहुत प्रेम करते थे। एक अन्य कथा के अनुसार, उनका जन्म राजा गंधर्वसेन के घर हुआ था और ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि उनका जीवन योगी के रूप में समाप्त होगा।
कथा में इस बात पर भी बल दिया गया है कि जब तक राजा ने सभी सांसारिक बंधनों को नहीं तोड़ा, तब तक उनकी भक्ति सफल नहीं हुई। उन्होंने योगी बनकर सांसारिक मोह-माया और बंधनों को तोड़ा। सत्संग के दौरान भजनों पर पंडाल में बैठी महिलाएं नाचने लगी।

साध्वी कांता प्रभाकर ने कहा कि हमें गो सेवा करनी चाहिए। गौ सेवा से बढक़र कोई सेवा नहीं है। इससे जो पुण्य मिलता है। इसके बारे में हम सोच भी नहीं सकते हैं। इस अवसर पर भ्भरत सिंह बैनीवाल, कृृष्ण शर्मा, कृष्ण कुमार डोगवाल, धर्मपाल छिम्म्पा, जय सिंह व अन्य मौजूद रहे।
साध्वी कांता प्रभाकर ने पुत्र की व्याख्ख्या करते हुए बताया कि उतम पुत्र उसको कहा जाता है, जो पिता के मन की बात समझ कर आगे ही कार्य कर ले। जो कहने पर कार्य करे वह मध्यम पुत्र है। जो माता पिता के कहे को अश्राद्वा से करें या देर से करे वो अधम पुत्र है और जो कहने पर भी कार्य ना करे वो तो मां बाप का मल ही है पुत्र नहीं है, जैसे मल में कीड़ा पैदा होते हैं, वैसे ही वह पुत्र कीड़ा ही है।
