श्रीकृष्ण जी महाराज परिणाम की बात नहीं करते है, वो केवल निष्काम कर्म की बात करते है, यही समझना है
mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
भारत के हर विद्यार्थियों को अगर तीव्र बुद्धि होना है तो श्रीमद्भगवद् गीता से संवाद करने का अभ्यास करना चाहिए, तभी उनके मन को स्पष्टता मिलेगी, अन्यथा जीवन में यूं ही भटकाव रहेगा। विद्यार्थी जीवन ज्ञान का युद्ध है, जिसमें सफलता की नहीं, केवल समझ विकसित करने की बात हो रही है। विद्यार्थियों को इस गूढ़ रहस्य को समझने की आवश्यकता है कि क्यों भगवान श्रीकृष्ण जी श्रीमद्भगवद् गीता में निस्वार्थ कर्म की बात करते है और अर्जुन को परिणाम से अधिक युद्ध करने के लिए उपदेश देते है। हम अक्सर इन सभी बातों पर ध्यान ही नहीं देते है, क्योंकि श्रीमद्भगवद् गीता हमारे लिए प्रेरणा ग्रन्थ से ज्यादा धार्मिक ग्रंथ बन गया है,
जब गीता मैथेमेटिक्स सूत्रों की तरह काम करने वाला ग्रन्थ है, जिसके द्वारा हर इंसान अपने कर्म को बेहतर बना सकता है,तो फिर हम उसे साधु संतों तक सीमित क्यों करना चाहते है। हमने श्रीमद्भगवद् गीता के द्वारा यही जाना है कि कर्म करो, फल की चिंता मत करो, परिश्रम करो, फल पाने के लिए परेशान न हो, हमारा अधिकार केवल कर्म करने पर है, कर्म चुनने का है, इस अधिकार का पालन करें, परिणाम के लिए तनाव न लें। यहां हम यही महत्वपूर्ण तथ्य समझने की कौशिश करेंगे कि क्यों परिणाम के बारे में चिंतित नहीं होना है। देखिए हम जब कोई भी कार्य करते है तो उसके अच्छे रिजल्ट के लिए हमे उस कर्म पर फोकस करने के लिए वर्तमान में रहना पड़ता है, क्योंकि कर्म तो वर्तमान में होता है,
और पूरी ऊर्जा उस समय उसी काम पर लगानी होती है, लेकिन जब हम या हमारे विद्यार्थी उसके परिणाम के विषय में सोचते है तो उनका ध्यान भविष्य पर चला जाता है क्योंकि परिणाम तो भविष्य की ही घटना है, जो कर्म करने के कुछ समय बाद आने वाला है, तो जब हमारा ध्यान वर्तमान से भविष्य पर शिफ्ट होता है और हमारी ऊर्जा भी भविष्य की ओर बदल जाती है, जब जो ध्यान वर्तमान को छोड़कर परिणाम पर चला गया है तो फिर कर्म पर लगने वाली ऊर्जा भी शिफ्ट हो जाने के कारण रिजल्ट के स्टेटस पर बहुत फर्क पड़ता है। जब ऊर्जा परिणाम की चिंता पर के लिए खर्च होती है तो वह कर्म को प्रभावित करती है। परिणाम की चिंता में विद्यार्थियों के मस्तिष्क को तनाव व दबाव घेर लेता है,
वहीं दबाव उन्हें अवसाद की तरफ धकेलने का कार्य करता है और इससे भी अधिक जब रिजल्ट पर ध्यान चला जाता है तो उसके चलते स्मृति का रास्ता भी अवरुद्ध होने लगता है, बार बार याद करने पर भी भूलने लगते है, क्योंकि टेंशन में हमारा स्मृति सिस्टम सही से कार्य नहीं करता है। भगवान श्रीकृष्ण जी महाराज ने वैसे तो इस संबंध में कई श्लोक कहे है लेकिन दूसरे अध्याय के 47 वें श्लोक में कहा है कि " कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फ़लेशू कदाचन।
मा कर्मफलहेतुरभूमा ते संगोष्ठी कर्मणी।।" अर्थात कर्म करने पर तुम्हारा अधिकार है, उसे बेहतर करने व चुनने का अधिकार है लेकिन परिणाम पर तुम्हारा अधिकार नहीं है क्योंकि परिणाम कर्म के आधार पर मिलता है। जैसा कर्म होगा,वैसा ही रिजल्ट मिलेगा। यही बात हर विद्यार्थी को समझना है, यही वो गूढ़ रहस्य है जिसे अधिकतर लोग समझने की कौशिश ही नहीं करते है। अगर हम श्रीमद्भगवद् गीता के दूसरे ही अध्याय के 63 वें श्लोक को समझे तो उसमें भी भगवान श्रीकृष्ण जी ने उपदेशित किया है कि " क्रोधाभवति सम्मोह: सम्मोहाताश्मृतिभर्ंश स्मृतिभ्रंशातबुधिनाश: बुद्धिनाष्टप्रांश्यति।।" अर्थात क्रोध से विमूढ़ता उत्पन्न होती है, विमूढ़ता से स्मृति का भ्रम होता है, स्मृति भ्रम से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि नाश से जीवन पतित होता है।
इसको यहां इस तरह समझ सकते है कि जब विद्यार्थी कर्म करने से अधिक या कर्म करते हुए परिणाम की चिंता करने लगते है तो उनके भीतर तनाव पैदा होता है, फिर वही तनाव, विचलन में बदलने लगता है, उस विचलन से मूढ़ता आती है, इससे हमारे अंदर क्रोध उत्पन्न होता है, यही क्रोध हमारी स्मृति के द्वार बंद कर देता है या स्मृति भ्रम हो जाता है, फिर वही स्मृति भ्रम हमारी बुद्धि का नाश करती है और बुद्धि का नाश होने पर जीवन पतन की ओर जाने लगता है। इस श्लोक के माध्यम से हम अपने विद्यार्थियों को शांत रहने की प्रेरणा दे सकते है क्योंकि अगर किसी भी कारण से क्रोध आता है तो वो ना केवल हमारी बुद्धि को हरता है बल्कि हमारी पूरी ऊर्जा को भी क्षति पहुंचाता है। विद्यार्थी जीवन में हर एक स्टूडेंट को श्रीमद्भगवद् गीता से खुद ही संवाद करने का अभ्यास करना चाहिए,
जिससे उन्हें गीता के अनेक श्लोक के माध्यम से ऐसे सूत्र मिल सके, जिससे उनका ध्यान एकाग्र हो सकें और अपनी ऊर्जा को केवल निष्काम कर्म में लगा सके। श्रीकृष्ण जी महाराज ने अर्जुन को यही समझाते हुए प्रेरित किया था कि अर्जुन तुम्हारा धर्म युद्ध करना है, तुम क्षत्रिय हो इसलिए युद्ध करना ही तुम्हारी ड्यूटी है, और यह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए हो रहा है, यही समझकर युद्ध करने की प्रेरणा दी गई। इसी प्रकार विद्यार्थियों को भी अपनी ड्यूटी पर फोकस करने की आवश्यकता है, विद्यार्थियों की ड्यूटी विद्या ग्रहण करना है, ज्ञान प्राप्त करना है, ज्ञान का अभ्यास करना है, अपने मन को एकाग्र करने की प्रैक्टिस करनी चाहिए।
जब हमारे देश के सभी विद्यार्थी अपनी ऊर्जा की दिशा एक ही बिंदु पर लगाएंगे तो ही विद्यार्थी अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दे पाएंगे। भगवान श्रीकृष्ण जी ने यही कहा है कि कर्म पर ध्यान दो, परिणाम की चिंता करना व्यर्थ है क्योंकि परिणाम आपके कर्म तय करेंगे, उन्हें कोई बदल नहीं सकता है। विद्यार्थियों को अपनी ऊर्जा केवल कर्म पर लगानी चाहिए, ज्ञान पर लगानी चाहिए, वैज्ञानिक टेंपरामेंट विकसित करने में लगानी चाहिए, जिससे रिजल्ट का दबाव बने ही ना। चिंता, तनाव, दबाव न केवल हमारी स्मृति पर दबाव डालती है बल्कि हमारे स्वास्थ्य पर भी विपरीत प्रभाव डालती है। निष्काम कर्म करना ही हम सभी का परम धर्म है, उसी पर ध्यान दें।
जय हिंद, वंदे मातरम
