Success Story: खूबसूरत ऐसी जिसका नहीं कोई जबाब, डॉक्टरी छोड़कर IAS बनने का किया सपना पूरा, जानें...

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Mudra Gairola

Mudra Gairola Success Story: UPSC की परीक्षा को दुनिया की सबसे टफ परीक्षाओं में से एक माना जाता है। इसे पास करने का सपना तो हर कोई देखता है लेकिन इसे पास केवल चुनिंदा लोग ही कर पाते हैं। क्योकि इसे पास करने के लिए दिन रात मेहनत करनी पड़ती है।

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इसके साथ ही लगभग हर विषय का ज्ञान होना भी जरूरी है। अगर कोई यूपीएससी परीक्षा को पास कर लेता है तो आसपास के इलाके में उसके चर्चे शुरू हो जाते हैं। साथ ही बता दें इनमें सफल होने वाले उम्मीदवारों को उनकी रैंक और वरीयता के आधार पर IAS, IPS, IFS आदि पद अलॉट किए जाते हैं।

वहीं इसी बीच आज हम आपको एक ऐसी ही Officer की सफलता की कहानी बताने जा रहे है जिन्होंने कड़ी मेहनत से सफलता हासिल की है। वह कोई और नहीं बल्कि उत्तराखंड की मुद्रा गैरोला है। उन्होंने 25 मई को आये UPSC रिजल्ट में 53वीं रैंक हासिल की है। 

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कर्णप्रयाग की रहने वाली मुद्रा की कहानी तमाम विजेताओं से काफी अलग है  कयूंकी मुद्रा ने एमडीएस की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर पूरी तरह यूपीएससी की तैयारी में जुट गईं। 
क्योकि उन्होंने अपने पापा का 50 साल पुराना सपना पूरा किया। 

बता दें कि मुद्रा ने इससे पहले भी UPSC 2021 परीक्षा में 165 वीं रैंक हासिल करके मुद्रा ने आईपीएस कैडर हासिल किया था। फिलहाल वो हैदराबाद स्थित सरदार वल्लभ भाई पटेल पुलिस एकेडमी में IPS की ट्रेनिंग कर रही हैं।

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इसी के साथ उन्होंने तैयारी जारी रखी और साल 2022 की परीक्षा में 53वीं रैंक लाकर पापा का सपना पूरा कर दिया। 

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मुद्रा  UPSC की 2018 परीक्षा में इंटरव्यू तक पहुंची लेकिन फाइनल सेलेक्शन नहीं हो पाया। फिर साल 2019 के अटेम्प्ट में मुद्रा ने फिर से इंटरव्यू दिया। इस बार भी सफल नहीं हो सकीं।  मुद्रा 2020 की UPSC सिविल सर्विसेज एग्जाम में मेंस की स्टेज तक पहुंची। 

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फाइनली साल 2021 की परीक्षा में मुद्रा ने 165 वीं रैंक हासिल की।  वो IPS बनी।  इस बार उनकी रैंक काफी अच्छी आई।  संभवत: इस बार उन्हें मनपसंद सर्विस और कैडर दोनों मिल जाएं।  मुद्रा के पिता अरुण गैरोला बताते हैं कि उनका सपना था कि उनकी बेटी IAS बने। 

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एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुद्रा के पिता अरुण भी सिविल सेवा में जाना चाहते थे। अरुण ने साल 1973 में UPSC की परीक्षा दी थी। उस वक्त वो इंटरव्यू में बाहर हो गए थे। अरुण ने 1974 में फिर से परीक्षा दी। लेकिन बीमारी के कारण वो इंटरव्यू नहीं दे पाए। अरुण कहते हैं कि उनकी बेटी ने उनका सपना पूरा किया है। 

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