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स्कूली विद्यार्थी तथा उनके पेरेंट्स में आपसी इंटरेक्शन की बड़ी जरूरत है, इसे सभी माता पिता समझें।

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There is a great need for mutual interaction between school students and their parents, all parents should understand this

mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
विषय बहुत ही महत्वपूर्ण है, जिसे हम सभी को अपने अपने विमर्श में लेना चाहिए। मैं सभी पेरेंट्स को नमन करते हुए अपनी बात इसलिए रखना चाहता हूँ क्योंकि वर्तमान समय में देश के बच्चे जो विभिन्न विद्यालयों में पढ़ रहे है, उन पर बहुत बड़े बड़े दबाव है। हर पेरेंट्स अपने बच्चों से इतनी चाहत रखते है कि बच्चे उनसे घबराने लगते है। बच्चे इतने दबाव में आ जाते है कि उनको अपने भीतर के दर्द सुनाने के लिए कोई नहीं मिलता है।

अभी बच्चों की ग्रोथ में बदलाव आ रहा है, हमारे खानपान बदल रहे है, हमारी जीवन शैली बदल रही है, हमारे बच्चों के जीवन पर सोशल मीडिया का बहुत प्रेशर है। बच्चों के हाथ में उपलब्ध मोबाइल फोन भी बच्चों को समय से पहले बड़े बना रही है। विद्यार्थियों के सोचने समझने की उम्र में तेजी से बदलाव आ रहा है, बच्चें बहुत कम उम्र में ही बहुत आगे निकल चुके है, परंतु पेरेंट्स अपने बच्चों को हमेशा छोटा ही मानते रहते है और उसी पुराने ढर्रे पर उनसे बर्ताव करते है। मेरा ऐसा मानना है कि प्रत्येक मातापिता अपने बच्चों को दिमाग से छोटा ना माने, क्योंकि जिस प्रकार पेरेंट्स अपने मान सम्मान को महत्व देते है उसी प्रकार बच्चों के सम्मान का भी ध्यान रखना चाहिए।

आजकल भले ही 14 वर्ष की उम्र तक चाइल्ड माना जाता हो, परंतु मानसिक रूप कोई  विद्यार्थी 14 वर्ष उम्र में बच्चा नहीं बल्कि वो किशोरावस्था में आ जाता है। उसके जीवन में जो हार्मोनल चेंज 17 या 18 वर्ष की उम्र में होते थे वो अब 13 या 14 साल की आयु में ही होने लगता है। हम मातापिता के रूप में यह बात मानने को तैयार ही नहीं है कि हमारे बच्चों के मानसिक विकास के समय में बदलाव आ रहा है। जबकि हमारे सामने ही बच्चों का बिहेवियर रोज दिखता है, फिर भी हर पेरेंट्स इस बात को समझने को ही तैयार नहीं है। वर्तमान में समय बहुत तेजी से बदल रहा है, हर दिन नई नई तकनीक जन्म ले रही है, हर दिन नई नई समस्याएं हमारे सामने आ रही है,

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हर दिन मनुष्य का चरित्र बहुत तेजी से गिरावट की ओर है, हर दिन जीवन शैली बदल रही है, फिर भी हम अपने बच्चों को उनसे रूबरू नहीं कराना चाहते है। अब समय आ गया है कि मातापिता को सुनने के लिए समय निकालना चाहिए, क्योंकि अगर पेरेंट्स वार्तालाप नहीं करेंगे तो फिर आपके बच्चे किसी और से बात  करने का अवसर ढूंढेंगे, चाहे उन्हें वहां से कुछ काम की बात मिलो या ना मिलो। जीवन में अगर एक मुसीबत चिपक जाए तो फिर समझ लो पांच वर्ष लेकर जाती है। सबसे बड़ा कार्य तो ये ही है कि समय के साथ चलकर सभी प्रकार की समस्याओं की पहचान करें तथा उनसे रूबरू होना सिखाए। जीवन का स्पेन बहुत छोटा होता है, इसे ट्रायल में ही ना गुजरने दें। एक इंसान के पास अपने जीवन के अनुभव होते है लेकिन हम उन्हें अपनी नई जेनरेशन तक नहीं पहुंचाना चाहते है

और अगर कोई पहुंचाना भी चाहते है तो फिर उनका तरीका सही नहीं होता है। जीवन में दो गुण हर मातापिता में होने चाहिए, पहला धैर्य तथा दूसरा विनम्रता। अगर हम बहुत ध्यान से देखें तो ये दोनों गुण ही जीवन के आधार है, इनको विकसित करना बेहद जरूरी है। मातापिता होने का अर्थ धीरे धीरे बदलता जा रहा है। एक समय था जब पेरेंट्स होने का अर्थ था कि बच्चों की कमांड जीवन भर मातापिता के हाथ में रहना, जो पेरेंट्स ने कह दिया वो उनके बच्चों के लिए आदेश होता था, लेकिन आजकल ऐसा नहीं है। बच्चें मातापिता को केवल जन्म देने वाले तो समझते है परंतु खुद कमांड करना चाहते है इसका कारण एक ही है कि हमने समय के साथ साथ अपनी परवरिश का तरीका नहीं बदला।

आजकल परवरिश एरोगेंसी से नहीं चलती है, विनम्रता तथा समझदारी से चलती है। मैं यहां पेरेंटिंग के कुछ टिप्स देना चाहता हूं, जैसे;
1. अपने बच्चों को सुनना सीखें, उनके भीतर के भावों को समझने का प्रयास करें।
2. पेरेंटिंग में सुरक्षा का भाव तो हो परंतु हर परिस्थिति में अधिक स्नेह का भाव ठीक नहीं होता है।
3. अपने बच्चों के हर छोटे से छोटे कार्यों को खुद ना करे, उन्हें करने की ट्रेनिंग जरूर दें।
4. अपने बच्चों को उनके सारे कार्य करने को कहे, खाना बच्चों को खुद खाने दे, उन्हें अपने वस्त्र आदि खुद पहनने की ट्रेनिंग दें।
5. अपने बच्चों को जिम्मेदारी से जोड़ने के लिए भी प्रयास जरूर करें।
6. अपने बच्चों को पैसों को खर्च करने के नियम कानून भी सिखाएं।


7. बच्चों को अपनी संस्कृति के बारे में जागरूक अवश्य करें।
8. अपने बच्चों को लाइफ स्किल्स जरूर सिखाएं, जिससे बच्चे अपने व्यवहार को इंप्रेसिव बना सके।
9. बच्चों को शुरू से ही स्वास्थ्य को बेहतर रखने की स्किल्स भी देने का प्रयास करें।
10. बच्चों को नशे के दुष्प्रभावों के बारे में विशेष जानकारी देने की कृपा करें।
11. अपने बच्चों को सामाजिक तथा प्राकृतिक सरोकारों से अवश्य जोड़ने का प्रयास करे।
12. अपने बच्चों के साथ हर दिन घर की पाठशाला जरूर लगाएं, जिसमें हर दिन उनसे वार्तालाप करने का नियम बनाए, जिससे वो अपने मन की बाते आपसे शेयर कर सकें।


   हमारे सामने हमारी नई पीढ़ी एक धरोहर के रूप में है, उसे सहेजकर रखना बेहद जरूरी है। उनके जीवन को सही रास्ता दिखाना पेरेंट्स का ही कार्य है। बच्चे कम आयु में परिपक्य होने का भ्रम तो पाल लेते है परंतु उन्हें जिम्मेदारी का एहसास कम ही रहता है। मातापिता अकसर छोटे बच्चों को तथा उनके मन में उठ रहे प्रश्नों को इग्नोर करते है जो बेहद खतरनाक होता है क्योंकि उनके मन के उद्गारों को शांत करना मातापिता कि ड्यूटी है अगर ऐसा नहीं हुआ तो बच्चे कहीं ओर से उनके उत्तर खोजते है और वहीं से समस्या आनी शुरू हो जाती है। आओ सभी पेरेंट्स अपने बच्चों के रूप में राष्ट्र को अच्छे तथा जिम्मेदार नागरिक देने का संकल्प लें।
जय हिंद, वंदे मातरम