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भारतीय वायुसेना के ध्येय वाक्य " नभ: स्पर्शम दीप्तम" का अर्थ सभी युवाओं को समझने की जरूरत

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All youth need to understand the meaning of the Indian Air Force's motto "Nabha: Sparsham Deeptam

mahendra india new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर


भारतीय वायु सेना की स्थापना 8 अक्टूबर 1932 में सहायक वायु सेना के रूप में की गई थी, जिसे ब्रिटिश शासन काल में इंडियन रॉयल एयरफोर्स के नाम से भी जाना जाता था। 26 जनवरी 1950 को इसे भारतीय वायु सेना के रूप में स्थापित किया गया। वर्तमान में भारतीय वायु सेना का गौरव विश्व प्रसिद्ध है, विश्व की चौथी सबसे बड़ी वायुसेना के रूप में प्रतिष्ठित है, हम सभी भारतीयों को इस पर गर्व है। भारतीय वायुसेना आकाश में राष्ट्र की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। भारतीय वायु सेना के ध्येय वाक्य जो इसके गौरवशाली लोगो के नीचे इंगित है, पढ़कर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। "नभ: स्पर्शम दीप्तम" का हिंदी में अर्थ है शान से आसमान को छुओ।

यह ध्येय वाक्य श्रीमद्भगवद् गीता के ग्यारहवें अध्याय के 24 वें श्लोक से लिया गया है। इसमें अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण जी महाराज से कहते है कि  हे विष्णु के अवतार " नभ: स्पर्शम दीप्तमनेकवरण व्यात्ताननम दीप्तिविशालनेत्रम। दृष्टवा हि त्वां प्रावयथितानतारत्मा धृतिम न विंदामी शमम च वैष्णो।। अर्थात आपकी विशालता आकाश को स्पर्श कर रही है आपकी देह अनेकों रंगों को लिए हुए है, विशाल नेत्र देखकर मेरा हृदय में घबराहट हो रही है। इसका अर्थ है कि भगवान श्रीकृष्ण का रूप गौरवशाली है। इसी श्लोक से भारतीय वायुसेना का ध्येय वाक्य उसके लोगो के नीचे सुशोभित है। यहां जो बात जानने और सीखने योग्य है वो केवल भारतीय वायुसेना के माननीय अधिकारियों वा माननीय वायु सैनिकों के लिए ही नहीं है,

बल्कि सभी भारतीयों के लिए है, और वो आदर्श वाक्य है कि नभ को तो छुओ लेकिन गौरव के साथ छुओ, शान के साथ छुओ, इसका अर्थ है कि सबसे पहली जरूरत है कि हम पहले अपनी गरिमा बनाए रखें, नैतिकता बनाएं रखे फिर आकाश को छुए अर्थात तरक्की करें। भारतीय वायु सेना ने अपने स्थापना वर्ष से ही अनेक अभियानों को सफलता के साथ पूरा किया है। 21 परमवीर चक्र विजेताओं में से भारतीय वायु सेना को एक परमवीर चक्र की प्राप्ति हुई है। सन 1971 के भारत पाक युद्ध में मरणोपरांत फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह शेखों को वीरतापूर्ण साहस का प्रदर्शन करने के लिए दिया गया था।

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भारतीय वायु सेना का ध्येय वाक्य धर्म के उस अर्थ से भी संबंधित है जो महर्षि कणाद के वैशेषिक दर्शन के सूत्र से है जिसमें कहा गया है कि " यतो अभ्युदय निःश्रेष्य सिद्धि: स: धर्म: " अर्थात सभी ओर उन्नति तो हो परंतु आत्मा का भी उत्थान हो, क्योंकि आत्मिक उत्थान के बिना हम उत्साहित वा हिम्मती नहीं बन सकते है, यानि सभी तरफ सभी तरह से प्रोग्रेस हो परंतु आत्मिक रूप से पतन ना हो। दोनों तरह से मानव का उत्थान हो, यही तो भारतीय वायु सेना के ध्येय वाक्य में है कि नभ: स्पर्शम दीप्तम अर्थात आकाश को गौरव के साथ छुओ, जिसका अर्थ भी यही है कि हम आगे बढ़े, विश्व विजेता बनें, जीवन में सर्वोदय हो, अंत्योदय हो, परंतु आत्मिक रूप से भी उत्थान हो, किसी भी तरह से नैतिकता का पतन ना हो। भारतीय वायु सेना के ध्येय वाक्य ने सभी भारतीयों को अपनी आत्मा का उत्थान करने का संदेश दिया है। आत्मा के उत्थान का अर्थ भारतीय सनातन संस्कृति में बहुत बड़े मायने है, इसे हर नागरिक को समझने की जरूरत है। हमारी संस्कृति में नैतिकता का बड़ा महत्व है। यहां एक महत्वपूर्ण जानकारी

और हम सभी को लेनी चाहिए कि एक अप्रैल 1954 में  संस्थापक सदस्यों में से एक एयर मार्शल श्री सुब्रतो मुखर्जी जी को प्रथम एयर चीफ मार्शल बनाया गया। हम वर्तमान में भारतीय वायु सेना के महत्व को जानते है क्योंकि आजकल के सभी युद्ध हवा में ही लड़े जाने लगे है। हम सब भारतीयों ने अपनी वायुसेना का गौरव अभी सिंदूर ऑपरेशन में देखा, पूरा ऑपरेशन ही भारतीय वायु सेना पर निर्भर था और हमारी वायुसेना ने उसे बखूबी पूरा भी किया। हमारे भारतीय युवाओं को वायुसेना के ध्येय वाक्य से बहादुरी, हौसला, हिम्मत तथा नैतिकता को सीखने की जरूरत है

और वायुसेना में अपनी सेवाएं देने के लिए भी प्रेरित रहना चाहिए। 8 अक्टूबर का दिन हम सभी भारतीय के लिए गौरव का दिन है, नभ: स्पर्शम दीप्तम का दिन है, लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अपने ऐतिहासिक गौरव का ध्यान भी रखने का दिन है। आओ मिलकर सभी भारतीय युवा अपनी वायुसेना के गौरव को अधिक बढ़ाएं और गौरांवित महसूस करें।
जय हिंद, वंदे मातरम