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पिता के पसीनों की खुशबू से ही बच्चे महकते है, इस खुशबू को फीका ना पड़ने दे बच्चें

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Children smell good due to the fragrance of their father's sweat, children should not let this fragrance fade away
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
समय इतनी तेजी से बदल रहा है कि दो पीढ़ियों के बीच ही चार पीढ़ियों जितना असमंजस्य हो जाता है। दो पीढ़ियों जिनके बीच सीधा संबंध होता है फिर भी वो मातापिता वा बेटे बेटी के रिश्ते के बीच भी मधुरता का भान नहीं कर पाते है, क्योंकि विचारों में बड़े पैमाने पर अंतर है। जहां पेरेंट्स और बच्चों के बीच संबंध रिश्तों का होता है वहीं कुछ अति आधुनिक गतिविधियों के कारण ये गैप और भी बड़ा दिखने लगता है। मातापिता का दृष्टिकोण उन्ही के बच्चों से क्यों पिछड़ने लगता है यही विमर्श का विषय है। जिस पिता ने अपने पूरे जीवन अथक मेहनत से अपने बच्चों को शिक्षा स्वास्थ्य तथा पौष्टिक भोजन देने का प्रयत्न किया, वो ही बच्चे अपने पिता को कोसते नजर आते है। जिन बच्चों को अपने पिता के पसीने में से खुशबू ना आए, वो अभागे ही होते है। 
अरे पिता ने कुछ भी ना किया हो तुम्हारे लिए फिर भी संरक्षण तो दिया ही होगा, तुम्हे पिता कहने का दर्जा तो दिया ही होगा, तुम्हारे हर दुख सुख में साथ खड़ा तो रहा ही होगा, तुम्हारी बहुत सी समस्याओं से रक्षा तो की ही होगी, किसी ऐरे गेरे को तुम पर हावी तो नहीं होने दिया होगा, हो सकता है वो अति आधुनिक दौड़ में तुम्हारे साथ ना दौड़ पाया हो, हो सकता है वो तुम्हारी अति आधुनिक जरूरतों को पूरा न कर पाता हो, लेकिन तुम्हे इतना बड़ा तो किया ही है। अरे उन बच्चों को देखिए जो बिना पिता के जीवन जीते है, उनकी पीड़ा को महसूस करिए जिनके पिता बचपन में ही गुजर जाते है, उन बच्चों के दुख का आभास कर के देखिए जिनको बचपन से ही पिता का साया नसीब नहीं होता है। 
खुशनसीब है वो बच्चें जिनके पास पिता है, जिनके पास उन्होंने खुद भोजन किया है या ना किया है परंतु तुम्हे पूछने के लिए मां है। अगर किसी बच्चें को अपने पिता के पसीने में से बदबू आने लगे तो समझ लेना, तुम पतन की ओर अग्रसर हो। जिन बच्चों को अपने पसीनों की बदबू मिटाने के लिए डियो ड्रांट लगाने की जरूरत पड़ती है वो क्या समझेंगे पिता के पसीने की खुशबु को। समय बहुत बदल गया है, जो लोग अपनी अकर्मण्यता को भी पिता के जिम्मे मढ़ देते है ऐसे बच्चों के तो कहने ही क्या है। वर्तमान भी रोज बदलता है हम किसे वर्तमान माने, किसे भूतकाल माने, हां भविष्य तो आने वाले कल से शुरू होता है। इसका अर्थ यही है कि वर्तमान केवल एक पल में है, वर्तमान केवल एक क्षण में ही है। भूतकाल तो जबसे दुनिया शुरू हुई है तभी से भूतकाल है भविष्य की कोई सीमा नहीं है। हर दिन एक दिन भूतकाल में जुड़ जाता है। एक पिता की कमाने की उम्र भूत में जा चुकी है लेकिन एक बच्चा अपना भविष्य देखता है, और उसी से टकराव उत्पन्न होता है, इसी लिए एक बेटे या बेटी को अपने पिता का संघर्ष नहीं दिखता है, उनके शरीर से बहने वाला पसीना नहीं दिखता है, उसके फटे हुए कपड़े नहीं दिखते है, उनको अपने पिता का खाली पेट नहीं दिखता है, उसके द्वारा खींची गई रिक्शा नहीं दिखती है, उनके द्वारा की गई खेती नहीं दिखती, उनकी मां द्वारा लोगों के घरों में लगाए गए पोछा नहीं दिखता है, 
बच्चों को तो केवल अपना सुख दिखता, अपना झूठा दिखावा दिखता है, दोस्तों के सामने झूठी डींगे मारना दिखता है, बिना मतलब के प्रसाधनों पर किए गए हजारों रुपए के खर्चे दिखते, रेस्टोरेंट में फालतू के पिज़ा बर्गर दिखता है। उन्हें अपने पिता की ढलती हुई उम्र नहीं दिखती, जिसे वो बहुत से अभावों में काट रहे है। वो पिता अपने बच्चों की हर जरूरतों को पूरा करने के लिए ना जाने अपनी कितनी ख्वाहिशों का दफन करता है। अब मैं बहुत ही स्पष्टता से उन युवाओं को कहना चाहता हूँ जो अपने पिता के पसीनो की कीमत नहीं जानते है, उन्हें अपने भीतर भी झांककर देख लेना चाहिए, कि वो अपने जीवन की नाव किधर लेकर जा रहे है, उन्हें भी अपनी करतूतों का आंकलन ईमानदारी से कर लेना चाहिए।
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 जो बच्चें अपने जीवन में अपनी संगत में उन्हें ही मित्र बनाते है जो उन्हें हर प्रकार की नकारात्मक गतिविधियों से दूर रखते हो, जो उनको नशे से दूर रखते हो, जो फैशन से दूर रखते हो, जो अपव्यय से दूर रखते हो, जो मित्र उन्हें हर प्रकार के दिखावे में अनावश्यक खर्चे से बचाते हो, वो ही बच्चे अपने पिता के पसीने की खुशबु को सूंघ सकते है और उनकी मेहनत का अंदाजा लगा सकते है। मैं अब ऐसे बच्चों की पहचान बता रहा हूँ जिन्हे अपने मातापिता से सदैव नाराजगी रहती है, उन्हें अपने पेरेंट्स से हमेशा तक़लीफ रहती है, जिन्हे अपने पिता के जीवन के कष्ट कभी नहीं दिखते है, उनका खून पीने में लगे रहते, पिता को सहयोग करने की बजाय पड़े पड़े पिता पर अंकुश लगा कर सब कुछ ऐंठ लेना चाहते है, इनमें ऐसे बेटा, बेटी आते है, जैसे ;
1. जो बच्चें अपने पिता की आमदनी से अधिक खर्च करने की इच्छा रखते हैं।

2. जो बच्चें अपने पिता को उनके कार्य के लिए गौरांवित करने की बजाय कोसते रहते है और उनपर शर्म करते है।
3. जो बच्चें अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते है।
4. जो बच्चें जीवन में केवल दिखावा करते है, दूसरों को नकली हालत दिखाने की कोशिश करते है।
5. बिना जरूरत के केवल बेकार के दोस्तों को दिखाने व इनपर इंप्रेशन जमाने के लिए अनावश्यक पैसा गंवाते है।
6. जो बच्चें अपने परिवार की असली हालत को समझने के लिए तैयार नहीं होते है।
7. जो बच्चें अपने विद्यार्थी काल में पढ़ते लिखते नहीं है, मेहनत नहीं करते है, और पिता से चाहते है कि वो सब कुछ करें, वो बेईमानी भी करे,वो झूठ भी बोले, वो चोरी भी करे, और वो अपने आत्मस्वाभिमान के साथ समझौता करके उन्हें कमाकर दे, जिससे उनकी झूठी शान बन जाती।
8. जो घर की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है।

9. जो अपने पिता के पसीने की इज्जत नहीं करते है, उनकी जीवन की मेहनत को आगे बढ़ाने का कार्य नहीं करते है।
10. जो अपने पेरेंट्स के कार्यों पर गर्व नहीं करते है, जो उनके रिक्शा खींचने व खेत में हल चलाने पर भी गर्व करने की बजाय मेहनती पिता को कोसते है।
11. जो अपने मेहनती पेरेंट्स की मेहनत पर इस लिए गर्व नहीं करते है क्योंकि वो कोई मेहनत का कार्य करते है।
12. जो बच्चें अपने पिता पर बिना जरूरत तथा कंपनी के नाम पर या ब्रांडेड के नाम पर कपड़े वा जूते खरीदने के लिए दबाव बनाते है।

 युवा दोस्तो, अपने जीवन में खुद को सशक्त करो, पेरेंट्स को मत कोसों, उनके पास जो भी था, जैसा भी समय था उन्होंने खूब मेहनत की, खूब पसीना बहाया, अपनी सभी इच्छाओं को इसलिए कम किया, क्योंकि वो अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करना चाहते है। इसके विपरित बच्चे अपने विद्यार्थी काल में पढ़ते नहीं है, कोई मेहनत नहीं करते है, अपने पिता की मेहनत की कमाई को नशे में, सिगरेट पीने में, शराब का सेवन करके, हुक्का पीकर बर्बाद करते है,अपने नकारा वा नेगेटिव दोस्तों की संगत में बिना मेहनत के समय को किल करते है, अपनी किशोरावस्था से लेकर युवावस्था को अपनी नालायकी वा आलस्य तथा समय की बर्बादी में निकाल देते है और फिर उनको अपने पिता के पसीने से खुशबू कैसे आएगी, केवल बदबू ही आती है। युवा दोस्तों, खुद को सत्य, मेहनत, ईमानदारी, समय के पालन, जिम्मेदारी तथा जवाबदेही से जीना सीखो, तभी तुम्हे अपने पिता और माता के पसीने से खुशबू आएगी।
 फिर आपको अपने चेहरे पर पुरुषों वा महिलाओं के लिए बनी अलग अलग फेयर लवली क्रीम, डियो ड्रांट, परफ्यूम और स्किन केयर के लिए महंगी क्रीम व ब्रांडेड कंपनी के कपड़े जूते आदि की जरूरत नहीं पड़ेगी और बिना काम के महंगे प्रसाधनों पर खर्च होने वाला पैसा भी बचेगा। एक बहुत महत्वपूर्ण बात कह रहा हूँ बुरा मत मानना, अपनी बिना जरूरत की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खुद पैसा कमाएं और उसका आनंद ले। और फिर अपने पिता को गले लगाओ, तभी उनके शरीर पर बहने वाले पसीने की खुशबु आपको महकाएगी।
जय हिंद, वंदे मातरम