भारत की अधिक जनसंख्या बोझ है या संसाधन? अगर प्रशिक्षित किया जाए तो हर नागरिक ऊर्जा है

नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
जब भी अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या दिवस आता है तो कुछ लोग अपने ही देश की जनता को कोसने लगते है, ऐसा हम जब करते है जब हमारे पास कोई ठोस योजनाएं नहीं होती है। भारत जैसा देश जिसकी आबादी 140 करोड़ से भी अधिक है, फिर भी हम विकसित नहीं है क्योंकि हमारे पास हर नागरिक के लिए प्रशिक्षण नहीं है,कोई ठोस कार्यक्रम नहीं है। हर कोई हर समय अपनी जनसंख्या को भला बुरा कहने में लगे रहते है, इनको भेड़ों की तरह ट्रीट करते है, इन्हें बहकाते है, इन्हें पाखंड में झोंकते है। ये जनता कोई आसमान से तो टपकी नहीं है, ये यहीं के नागरिकों ने ही तो बढ़ाई है। हमारे यहां जो पढ़े लिखे लोग है, जिनके हाथों में योजनाएं बनाना है, उन्हें इस जनसंख्या की ऊर्जा से कोई लेना देना ही नहीं है, उन्हें ये भीड़ लगती है। कुछ लोग अकसर एक शब्द यूज करते है, जिसे डेमोग्राफिक डिविडेंट कहा जाता है, जिसका हिंदी में अर्थ होता है जनसंख्या लाभांश अर्थात जितनी ज्यादा जनसंख्या होगी, उसका लाभ मिलेगा। लेकिन यहां तो लाभ तो छोड़िए, उनका सही से प्रबंधन ही नहीं हो पा रहा है, अगर ऐसा होता तो आज हम ओलंपिक जैसे खेलो में मेडल के लिए नहीं तरसते,
अगर ऐसा होता तो हमारे बच्चे डंकी मार्ग से अमेरिका जैसे देश में जाकर अपना अपमान ना कराते और जिंदगी दांव पर नहीं लगाते, अगर ऐसा होता तो सरकार को 80 करोड़ लोगों को अनाज नहीं बांटना पड़ता, अगर ऐसा होता तो देश की नौजवान पीढ़ी पाखंड में घुस कर अपना जीवन बर्बाद नहीं करती, और अगर ऐसा होता तो देश के युवा नशे की हैवी डोज लेकर अपनी जीवन लीला खत्म ना करते। जो महामानुभव जनसंख्या को डेमोग्राफिक डिविडेंट समझने है उनका हम सम्मान करते है परंतु उन्हें इस संख्या के लिए कोई ठोस कार्यक्रम भी बनाने की आवश्यकता है। मैं यहां नीति निर्देशकों से कुछ प्रश्न करना चाहता हूँ, शायद उनसे कोई रास्ता निकल सकें, जैसे ;
1. क्या हम हर स्तर के खेलों में मेडल टैली में भारत के स्थान के लिए चिंतित नहीं होते है?
2. क्या हमारे युवाओं में स्किल का स्तर धीरे धीरे नीचे नहीं जा रहा है?
3. क्या हम हर वर्ष जल भराव से नहीं जूझते है, उन्ही पॉइंट पर हर वर्ष पानी भरता है, फिर कोई हल नहीं निकलता है?
4. क्या हमारे नागरिकों में अपने पर्यावरण के लिए जागरूकता कम नहीं हो रही है?
5. क्या हम अपनी स्वच्छता की स्थिति के लिए परेशान नहीं हैं?
6. क्या हमारे शिक्षण संस्थानों का स्तर धीरे धीरे ह्रास की ओर नहीं जा रहा है?
7. क्या धीरे धीरे हमारा नैतिक पतन नहीं हो रहा है?
8. क्या हम कैच द रेन कार्यक्रम में सफल हो पाए है?
9. क्या हमारे अधिकारी या नीति निर्धारकों को ड्रेन और सीवरेज का अंतर समझ आता है,क्योंकि बरसात का सारा पानी गटर में डालने को ही अधिकारी लोग अपनी सफलता मानते है?
10. क्या हम अपने विद्यार्थियों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक है, खेलो के प्रति जागरूक है?
11. क्या किसी नागरिक के मरने पर उनके घर वालों के सिवाय किसी को फर्क पड़ता है, कि ये भारत के एक कमाऊ नागरिक था, शायद नहीं?
12. क्या लोगों में बेईमानी बढ़ती ही नहीं जा रही है?
13. क्या हमारे सामने ही कुछ लोग सरकारी पैसे का भ्रष्टाचार करते है, या संपतियों को नुकसान पहुंचाते है, उस पर किसी को कोई फर्क बढ़ता है?
ये प्रश्न वैसे तो किसी को भी झकझोरने के लिए काफी है अगर किसी को अपनी जनसंख्या डेमोग्राफिक डिविडेंट लगती है तो, अन्यथा इन प्रश्नों का किसी के लिए कोई अर्थ नहीं है, क्योंकि यहां कोई अपने नागरिकों को देश के लिए जनसंख्या लाभांश मानते ही नहीं है। यहां तो आए दिन अपने ही नागरिकों को कमजोर करने के कार्य किए जाते है। जिस दिन हम अपने एक एक नागरिक के लिए दिशा निर्देश तय करना शुरू करेंगे तो फिर हम ऊपर दिए गए प्रश्नों के उत्तर समय पर तथा सही दे पाएंगे अन्यथा प्रश्नों से ऐसे ही भागते नजर आएंगे। यहां किसी को किसी की चिंता नहीं है। अगर कोई खिलाड़ी अपने देश के लिए मेडल लेकर आता है तो वो अपने दम पर ही लेकर आता है। यहां हजारों अरबपति लोग है जो कहने को तो हमारे भारत के नागरिक है लेकिन उनका बैंकों का लोन लेकर ना भरने तक का ही योगदान होता है। उनका ना किसी स्पोर्ट्स में योगदान है, ना किसी कृषि के लिए योगदान है, न वो स्वच्छता के लिए कोई कार्यक्रम चलाते है, और ना ही उनके बच्चे किसी राष्ट्रहित के कार्यक्रम में भाग लेते है। जो भारत के लिए गोल्ड मेडल लेकर आते है अगर उनके घर की स्थिति देख लो तो पता चलेगा कि ऐसे खिलाड़ी कैसी जिंदगी गुजर बसर करते है। जिन महानुभावों का देश की अधिकतर संपतियों पर कब्जा है उनका देश के गौरव के लिए तनिक भी योगदान नहीं होता है, वो केवल अपने ही बच्चों की शादी विवाह में ही हजारों करोड़ खर्च कर सकते है किसी भी प्रकार से दस अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों का खर्च नहीं उठा सकते है या किसी एक गांव में खेलों में सहयोग नहीं कर सकते है। एक तरफ ऐसे ऐसे लोग है जिनका जीवन केवल लग्जरी अवेल करने के लिए ही हुआ है, तथा दूसरी ओर लोग राष्ट्र के लिए दिन रात खपते है, जिनमें देश के वैज्ञानिक, देश के स्पेस सेंटर में कार्य करने वाले वैज्ञानिक, खिलाड़ी, कृषक, सेना, अर्धसैनिक बल, पुलिस, खिलाड़ी तैयार करने वाले कोच, टीचर्स, डॉक्टर्स, नर्सिंग स्टाफ, देश की सड़कों के निर्माण में लगे मजदूर, ऊंची ऊंची इमारतों के निर्माण में लगे लोग, कितने ही ऐसे महत्वपूर्ण लोग है जो राष्ट्र को विकसित बनाने में लगे हुए है लेकिन इसके साथ ऐसे लोग भी जिनके हाथ में सबकुछ है जैसे विधायिका, ब्यूरोक्रेसी में लगे बड़े बड़े अधिकारी जो हर वर्ष होने वाले जलभराव के लिए कोई योजना नहीं बना सकते है, जिनके बनाए पूल साल भर में ही गिर जाते है, लेकिन ऐसे लोगों के लिए दंड की कोई व्यवस्था नहीं होती है।
अगर हम अलग अलग प्रोजेक्ट बना कर कुछ बेहतरीन लोगों को जिम्मेदारी सौंपे, तो हर क्षेत्र में देश का नाम रौशन होगा। हर उन संस्थाओं को खेलों की जिम्मेदारी दें जो ट्रस्ट बना कर करोड़ों कमाते, लेकिन टैक्स कुछ नहीं देते है। दूसरा किसी भी कारपोरेट हाउस को एक एक स्पोर्ट्स या कृषि, या विज्ञान का क्षेत्र दें, जिससे उनके सी एस आर के पैसे का सही उपयोग किया जा सकें। सी एस आर के पैसों से एक अलग कोष बने, जिसका संचालन सरकार द्वारा किया जाए, और उसका पैसा केवल स्वास्थ्य, शिक्षा तथा खेल कूद पर ही खर्च हो, तभी राष्ट्र आगे बढ़ेगा, तभी हम विकसित राष्ट्र की पंक्ति में खड़े हो पाएंगे। पांच प्रतिशत धनाढ्यों की संपति के आंकलन और 95 प्रतिशत को मिला कर किए गए आंकलन से राष्ट्र कभी भी विकसित राष्ट्र नहीं बन पाएगा। हमे ऐसे कॉरपोरेट हाउसेज की क्या जरूरत है जो सरकार से ही लोन लेकर, उसी को राइट ऑफ करा कर अपनी ऐशो आराम की जिंदगी जीते है, हमे तो ऐसे कॉरपोरेट सेक्टर की जरूरत है जो बैंक से लिए गए एक एक पैसा चुकाए और गरीबों का भी भला करें, क्योंकि जो पैसा बैंक इनको लोन के रूप में देते है वो उन गरीबों का ही तो होता है जो पाई पाई जोड़कर जमा करते है और कुछ बड़े बड़े लोग लेकर जमा ही ना करे तो फिर राष्ट्र किसके सहारे विकसित होगा। हमे अपने हर नागरिक की अहमियत जाननी होगी, उनकी स्किल का आंकलन करना होगा, उनकी शक्ति को, उनकी ऊर्जा को राष्ट्रहित में लगाना होगा। तभी देश अग्रिम पंक्ति में खड़ा होगा। देश के हर नागरिक के लिए कुछ योजना तैयार करनी होगी, ताकि देश की जनसंख्या डेमोग्राफिक डिविडेंट बन सकें।
जय हिंद, वंदे मातरम