कर्म के साथ जुड़ी भावनाओं का निरन्तर निरीक्षण ही कर्मयोग है - रजयोगिनी वीणा दीदी
ब्रह्मïाकुमारीज आनंद सरोवर में चल रहे जीवन का आधार - गीता का सारव चार दिवसीय कार्यक्रम की प्रमुख वक्ता कर्नाटक के सिरसी के पधारी राजयोगिनी वीणा दीदी नें शिविर के तीसरे सत्र में गीता में वर्णित कर्मयोग और राजयोग को स्पष्ट करते हुए कहा कि सुकर्म करने की कुशलता और हर दैनिक कर्म के साथ जुड़ी भावनाओं का निरन्तर निरीक्षण ही योग है।

उन्होंने कर्मयोग के बारे में गीता जी में लिखित श£ोकों को कई प्रकार के दृष्टïांत देकर समझाने का प्रयास किया और इसके बारे में दृष्टिïकोण बदलने की भी प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि योग वास्तव में दिखावे के लिए नही स्व निरीक्षण के लिए करना चाहिए। आचार, व्यवहार और विचार का शुद्घिकरण ही राजयोग है इसलिए गीता में वर्णित कर्म सिद्घान्त को समझकर उसका अनुसरण करके ही अपने संस्कार और संसार को परिवर्तन किया जा सकता है क्योंकि हमारे विचारों की प्रतिध्वनि ही हमारी दुनिया है।
शिविर के तीसरे सत्र में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थि हुए जिला कारागार के एस.पी. श्री जसवन्त सिंह जी नें भी सभा को सम्बोधित किया और संस्था के साथ अपने अनुभवों को सांझा करते हुए कहा कि आनन्द सरोवर और मुख्यालय माउंट आबू में पंहुच कर होने वाले अनुभव अति सुखद और अविस्मरणीय पल हैं जो हमेशा जीवन को उर्जावान रखते हैंं। उन्होंने संस्थान की व्यवस्था प्रणाली की सराहना करते हुए कहा कि यहां दीदीओं के प्रवचनों से लेकर भोजन, रहन सहन, और नि:स्वार्थ भावनाएं, सब कुछ बहुत आकर्षित करता हैं।
अन्त में आनन्द सरोवर की निदेशिका राजयोगिनी बिन्दू दीदी जी ने मुख्य अतिथि को ईश्वरीय भेंट देकर सम्मानित किया और सभा का आभार प्रकट किया।
