Lesson : पटाखों से होने वाले वायु तथा नॉइस प्रदूषण को रोकने के लिए मानवता एवं संवेदनशीलता की जरूरत

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Lesson: Humanity and sensitivity are needed to stop air and noise pollution caused by firecrackers
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर 
ने अपने लेख में कहा कि हम जब प्राथमिक विद्यालयों में पढ़ते थे तो अक्सर दीपावली का निबंध याद करते थे तो उसमें यही आता था कि श्री राम जी , रावण पर विजय प्राप्त की तथा उनके अयोध्या आगमन पर सभी ने घी के दीए जलाएं, और खुशी मनाई। दिवाली पर कब पटाखे जलाना व लक्ष्मी पूजन जुड़ गया , पता ही नहीं चला। जब यह उत्सव मर्यादा वा ज्ञान से धन दौलत पर शिफ्ट हो गया, कोई जान ही नहीं पाएं, यह उत्सव कब मार्केटिंग की चपेट में आ गया, पता ही नहीं हुआ। लोगों ने कब दीपावली को व्यवसायियों के हवाले कर दिया। वर्तमान में श्री राम जी की  मर्यादा के आधार पर मनाया जाने वाला त्यौहार मार्केटिंग गतिविधियों में उलझ गया। श्री राम के जीवन की चर्चा करने के बजाय हम लक्ष्मी पूजन में लग गए, हम घी के दीए जलाने, उनकी रौशनी करने की बजाय कब चाइना की लड़ियों के अधीन हो गए, हमने इसका एहसास ही नहीं किया। दशहरा और दीपावली के बीच के बीस दिन कितने पवित्र दिन थे, श्री राम के जीवन तथा उनकी मर्यादा का विमर्श करने के लिए , लेकिन हम, सब कुछ भूल कर, इस त्यौहार का मकसद ही भूल गए। दीपावली का त्यौहार रौशनी का उत्सव है, दीवाली का त्यौहार उजाले, ज्ञान का त्यौहार है। अगर हम इसे अंधकार से प्रकाश का उत्सव कहे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हम इसे आपसी समरसता का उत्सव कहें तो सुंदर लगेगा। लेकिन श्री राम की कहीं चर्चा नहीं है, दशहरे पर श्री राम से अधिक तो लोग रावण की चर्चा करते है , उसके पुतले को देखने जाते है। हम सकारात्मकता से नकारात्मकता की ओर बढ़ रहे हैं। श्री राम जी, अंधकार में प्रकाश लेकर आए, अगर हम श्री राम के जीवन को देखें तो ऐसा लगता है जैसे उनका जीवन अधर्म के साथ खड़े होने वाले अधर्मीयों का नाश करना था। श्री राम जी अयोध्या घोर अंधेरी रात अर्थात अमावस्या को आए, इसका अर्थ हर इंसान को समझने की जरूरत है, इसका प्रतीकात्मक मतलब भी है कि अधर्म के इतने अंधकार के बीच श्री राम ज्ञान का प्रकाश लेकर आए। लोगों ने घी के दीपक जलाएं और खुशी मनाई, सभी ने एक दूसरे को प्रेम से बधाइयां दी, एक दूसरे को गले लगाया, सभी ने एक दूसरे के घर जाकर श्री राम अर्थात समाज में उजाला, ज्ञान तथा समृद्धि आने की शुभकामनाएं दी। श्री राम के गौरव की गाथा के विषय में चर्चा की, अपने बच्चों को ऐसी हिम्मत और उत्साह की कहानियां सुना कर ज्ञान की ओर  बढ़ने की प्रेरणा दी। मुझे कई बार आश्चर्य होता है कि जैसे जैसे समय बीतता है, हमारे इस दीपावली उत्सव में शराब का सेवन, जुआ खेलना तथा अति उत्साह में अधिक और कई दिनों तक पटाखे चलाने के कारण भी हमने इस प्रकाश और ज्ञान के त्यौहार को कितना प्रदूषित कर दिया हैं। हो सकता है मेरे ऐसे लिखने से कुछ लोग मुझे गालियां भी दे, क्योंकि लोगों की सोच बहुत छोटी और सीमित है। जो सनातन धर्म, धर्म की जय, अधर्म का नाश हो , मनुष्यों में सद्भावना हो तथा विश्व के कल्याण की बात करता है, ये हमारे वेद शास्त्रों में दर्शाया गया है, वो किसी से भी बदला लेने के लिए या किसी को भी तक्लीफ देने के लिए क्यों इस धरती पर प्रदूषण फैलाने का कार्य करते हैं। एक तरफ इस समय खेतों में पराली का कोई हल नहीं है, दूसरी ओर मौसम ठंडा होने से नमी के कारण जो भी धुंआ निकलता है वो नीचे ही इक्कठा होकर लोगों के जीवन में तकलीफ पैदा करता हैं। उसी समय हम अति उत्साह में पटाखे चला कर, उसमे और बढोतरी करते हैं। दीपावली ज्ञान का त्यौहार है क्योंकि अगर हम इसको समझने का प्रयास करें तो यहां चार बाते विशेष रूप से निकलती है, जैसे ;
1. श्री राम ने अधर्मियों का नाश किया और वहां पर जो धर्म था उसकी स्थापना की। खुद ने वहां अपना शासन नहीं जमाया।
2. समरसता को बढ़ाने के लिए सभी का साथ लिया, सभी को सम्मान किया तथा हर व्यक्ति की महत्ता बताई।
3. इस धरती पर फैले अंधकार अर्थात अज्ञान, झूठ, लालच, दुष्टता, अत्याचार को मिटाने के लिए आगे आएं।
4. हर जीव जंतु, पशु पक्षी की रक्षा को प्रयत्न किए।
  मेरा ऐसा मानना है कि आज जब हम श्री राम के अयोध्या में आने को देखते है तो कृष्ण पक्ष के आखिरी दिन आए है अर्थात अंधकार की पराकाष्ठा के वक्त आए और उसके बाद शुक्ल पक्ष की शुरुआत होती है। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का उत्सव है दीपावली। हम सब कैसे श्री राम के जीवन की मर्यादा को छोड़ कर केवल पटाखों, मोमबत्तियों, चीन की लड़ियों, धन का पूजन तथा लक्ष्मी पूजन तक सिमट गए है। मैने देखा है कि हरियाणा के बागड़ क्षेत्र में अर्थात जिला सिरसा, फतेहाबाद तथा हिसार में लोग दीपावली के अगले दिन सुबह सुबह राम राम करने जाते है या दूरभाष से राम राम करने की परंपरा है, जो वास्तव में इस महोत्सव की सार्थकता सिद्ध करती है। हमारी भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार एक बड़ा संदेश देता है। यह कोई आयोजन तक सीमित नहीं है, त्यौहारों से सीखने की भी जरूरत होती हैं। आओ हम सब मिलकर इतना तो संकल्प ले सकते है कि दीपावली की रौशनी, प्रकाश तथा ज्ञान, मर्यादा के त्यौहार के रूप में मनाए। हम सभी यहां पांच संकल्प कर सकते है, जैसे;
1. इस बार एक नई पहल शुरू करे और अपने घर के लिए तथा किसी सामुदायिक स्थल के लिए मिट्टी के 100 दीए जरूर खरीदे ताकि वैदिक संस्कृति को बढ़ावा मिल सकें तथा मिट्टी की क्राफ्ट में लगे लोगों को लाभ मिल सकें।
2. मोमबत्तियों के स्थान पर घी के दीए जलाएं ताकि पर्यावण शुद्ध बन सकें।
3. पटाखों को ना कहे जिससे पशु पक्षियों को इस शोर से बचाया जा सकें, बुजुर्गो तथा बीमारों को तकलीफ से बचाया जा सके और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाया जा सकें।
4. हम एक दूसरे को सबक सिखाने के बजाय, अपने राष्ट्र के पर्यावरण को शुद्ध करने के बारे में सोचें।
5. दीपावली को श्री राम की मर्यादा का उत्सव मनाए, ना कि राक्षसों की तरह व्यवहार करें।
मेरा ऐसा मानना है कि दिवाली जिस प्रकार संसार के अंधकार को दूर करने का त्यौहार है, वैसे ही ये अधर्म का नाश करने का उत्सव है। ज्ञान का प्रचार करे, हवा वा आकाश को शुद्ध रखें, अधर्म के साथ नहीं बल्कि धर्म का पौषण करें। जीवन में मर्यादा का होना ही श्री राम को याद करना है अन्यथा पाखंड के सिवाय कुछ नहीं है। रावण के पुतले नहीं, अपने मन में छुपे रावण को जलाएं।
जय हिंद, वंदे मातरम

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