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सीख: हमारे रक्त संबंध, रिश्ते तथा सामाजिक भाईचारा, राजनीति से बहुत ऊपर हैं, इसे समझने की सभी युवाओं को जरूरत हैं

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 राजनीति पहले जितना पवित्र शब्द था....
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर, एंड वॉलंटियर
ने बताया कि जब हम कोई चालाकी की बात करते है तो अधिकतर लोग यही कहते है कि राजनीति मत करो अर्थात राजनीति को लोग अच्छा नही मानते हैं। राजनीति पहले जितना पवित्र शब्द था, आज वह उतना ही अपवित्र लगने लगा है। लोग इसके माध्यम से सेवा करते थे, हमारे स्वतंत्रता सेनानी कितने सहज थे, कितने निस्वार्थ थे, उनके लिए राजनीति न तो नौकरी थी और ना ही व्यवसाय था, उनके लिए राजनीति शुद्ध सामाजिक सेवा थी, राष्ट्र की सेवा थी। वो भरे पूरे लोग थे, वो शिक्षित थे, वो सहज थे।

 वो सभी बहुत संस्कारित परिवारों से थे , जिन्हे देश की गुलामी हृदय में खटकती थी, इसीलिए उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन देश को समर्पित कर दिया था।आजकल राजनीति केवल चुनाव जीतने का जरिया है तथा सत्ता पाने का हथियार है, कुछ लोगों के ना चरित्र है, और ना ही संस्कारित तथा ना देश की समस्याओं को समझने वाले है। अब तो देश के कुछ गिनती के परिवारों के हाथ में संपूर्ण राजनीति आ गई है। और वो कैसे कैसे लोगों को ठगने का काम करते है लोग अपने परिवार, रिश्ते तथा भाईचारे को ताक पर रख कर उन्हे खुश करने का कार्य करते है। चुनाव में पहले ना पैसा था और ना धूर्तता थी। हमारे समाज में पहले सर्वसम्मति से चुनाव होता था, हमारे यहां जब गांव की पंचायत चुनी जाती थी तो लोग अपने प्रतिनिधियों का चयन सर्वसम्मति से करते थे। भारतीय राजनीति में तीन स्तरों पर जनप्रतिनिधि चुने जाते है , 


पंचायत स्तर पर तो आज भी सर्वसम्मति से चुनाव हो जाता हैं, परंतु प्रदेश स्तर पर गठित विधानसभाओं तथा संसद सदस्य के रूप में तो सर्वसम्मति से चुनाव करना अब संभव नहीं हैं। सर्वसम्मति से सदैव अच्छे तथा ईमानदार व्यक्ति का ही चुनाव होता था लेकिन अब तो सर्वसम्मति तो बहुत दूर की बात हो गई, अब तो चुनाव से भी अच्छे लोगों का चुनाव नही हो पाता हैं, इसका कारण केवल अच्छे मतों में बंटवारा हैं, इसीलिए तो समाज और राष्ट्र को बहुत से अपराधिक गतिविधियों में शामिल लोगों को अपने जन प्रतिनिधि के रूप में देखना पड़ता हैं। और ये सरासर वोटर की गलती है जो अपनी जातियों , समुदाय तथा पंथ में बंटे हुए है। आपस में लड़ते रहते है, किन के किए बच्चो के अच्छे भविष्य के लिए नही, केवल गलत लोगों को जस्टिफाई करने के लिए ।

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कई बार देखने को मिलता है कि कोई ऐसे व्यक्ति भी उन लोगों के जन प्रतिनिधि बन जाते है जो ना तो उनके बीच में रहते है और ना ही वो उस क्षेत्र के रहने वाले होते हैं। ऐसे लोग कैसे जन प्रतिनिधि बन जाते है जो उनके बीच में कभी रहे ही नही हैं। क्या ऐसे लोगों को वोट देना चाहिए जो हमारे बीच में रहते ही नही है लेकिन हमारे यहां नियम ही ऐसे है कि अगर कोई किसी प्रदेश का कहीं भी वोटर है तो वो किसी भी विधान सभा से चुनाव लड़ सकते है और ऐसे ही अगर कोई देश के किसी भी लोक सभा क्षेत्र के वोटर है तो देश के किसी भी लोक सभा क्षेत्र से चुनाव लड़ सकते हैं और वो किसी के भी जन प्रतिनिधि बन सकते हैं। मैं जिस  विषय पर यहां चर्चा कर रहा हूं वो हमारे पारिवारिक रिश्ते ,

 खून के रिश्तों तथा समाज में भाईचारे को राजनीति के कारण खंडित होने का हैं। एक तरफ एक ही परिवार के विभिन्न लोग अलग अलग राजनीतिक पार्टियों में रह कर आनंद ले रहे है, उनकी  कोई विचार धारा नहीं है, वो किसी भी पार्टी में जाकर पद पाकर, वोटर्स में वैमनस्य पैदा कर देते हैं और खुद हरेक राजनीतिक पार्टी तथा लोग अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं। हमारे सीधे साधे लोग तथा गांवो में लोग, इन राजनीतिक लोगों के चक्कर में अपने खून के रिश्तों को खत्म कर रहे हैं, अपने पारिवारिक मधुर संबंधों को कुचल रहे है  इसके साथ साथ आम वोटर्स अपने समाज तथा समुदाय के भाईचारे को खंडित कर रहे हैं। सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि लोग इन राजनीतिक लोगों की वजह से आपसी दुश्मनी इतनी बढ़ा चुके है कि आपस में बात करना भी पसंद नही करते है।


और इसके विपरित जब हम उन राजनीतिक लोगों को एक साथ बैठ कर खाना खाते , एक दूसरों की शादी विवाहों में जाते , सब एक साथ बैठ कर हंसते बोलते देखते है, लेकिन हमारे वोटर इतने तैश में आ जाते है कि उन्हे ना तो अपने खून के रिश्ते दिखते है , ना उन्हे पिता पुत्र के रिश्ते समझ में आते है और ना ही उन्हे सामाजिक भाईचारे की जरूरत महसूस होती  हैं। उन्हे ये भी नही लगता कि जो लोग खुद एक दूसरे के कार्यक्रमों में भी बड़ी खुशी से जाते है और वोटर्स आपस में रोज लड़ते है तथा अगले चुनाव तक उनके रिश्ते सुधरते नही हैं। वोटर्स के चरित्र इतने गिर जाते है कि उन्हे अपने राजनीतिक आकाओं के चक्कर में समाज में हो रही अपराधिक गतिविधियां भी समझ में नहीं आती है, और उन्हे किसी बेटी की लुटती इज्जत भी सही लगने लगती है, 

दूसरों के घरों में लगी आग को भी जस्टिफाई करने लगते है। उन्हे शायद ये ज्ञान नही है कि अपराधिक गतिविधियां कभी भी किसी रिश्ते को नही देखती हैं, आज किसी और का नंबर है तो कल तुम्हारा भी नंबर आयेगा, आज एक घर में आग लगी है कल आपके घर में भी लगेगी, क्योंकि अपराधी प्रवृति किसी को छोड़ती नही हैं। हमे किसी के दुख में आनंद नही लेना चाहिए , किसी की तकलीफ में खुशी नही मनानी चाहिए। अगर हम वोटर्स है तो राष्ट्र हित की बाते ही करनी चाहिए , सही को सही तथा गलत को गलत कहने की क्षमता अथवा काबिलियत होनी चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करते है 

तो हम किसी भी सूरत में राष्ट्रभक्त नही हो सकते हैं। मतदाताओं का कर्तव्य है कि वो राष्ट्र हित के लिए वोट करें। और जो गलत है उसे गलत कहने के लिए सदैव तत्पर्व रहें। हमे एक दूसरे के विचारों को सुनने की क्षमता होनी चाहिए तथा हर किसी को एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए जिससे आपसी सौहार्द का वातावरण बना रहें, जैसे राजनीतिक लोग आपस में मिलजुल कर रहते है वैसे ही वोटर्स को भी प्रेम से रहने में क्या परेशानी हैं। जब राजनेता, अपनी सुविधानुसार अपनी पार्टी और विचारधारा को बदल लेते है और अपनी सुखसुविधा के लिए कार्य करते है, उनके तो जहन में भी राष्ट्र नही होता हैं, तो वोटर्स को तो कम से कम देश हित में तो सोंचना चाहिए जिससे राष्ट्र का भला हो सके तथा देश को विकसित बनाने में वोटर्स का कर्तव्य निभाया जा सकें। मैं केवल इतना कहना चाहता हूं कि राजनीतिक लोगों के लिए कभी भी राष्ट्र प्रथम नही रहता, 

उनके लिए अपनी सत्ता सर्वोपरी रहती है, इसीलिए तो कोई भी राजनीतिज्ञ अपनी विचारधारा को तिलांजलि देकर एक दूसरी पार्टी में चले जाते हैं। ऐसे राजनेता अपने वोटर्स से सलाह तक नही लेते है और फिर दूसरी पार्टी से टिकट लेकर आ जाते है जिससे उनका  समर्थन करने वालों के स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुंचती हैं। यहां विशेष सवाल यह है कि धरातल पर ऐसी परिस्थियों की वजह से समाज में आपसी वैमनस्यता बढ़ रही है, जातियों तथा पंथों में दुश्मनी बढ़ती जा रही है, लोग एक दूसरे को देखना भी पसंद नही करते है और सभी एक दूसरे की  जाति के दुश्मन बन रहे हैं। यह कैसी स्थिति है कि वोटर को अपने रिश्ते तथा सामाजिक भाईचारे को बचाने की जरूरत हैं और हर राजनीतिक व्यक्ति से सतर्क रहने की जरूरत है  जो जाति के आधार पर वोट मांगते हैं। युवा दोस्तो, ऐसे लोगों से सचेत रहे, जो आपके परिवार में , समाज में भाईचारा खंडित करने का कार्य करते हैं, आप कभी भी किसी के दुख में आनंद लेने का काम ना करें, किसी बेटी के साथ छेड़छाड़, 

किसी के साथ रेप, किसी को गालीगलोच, किसी को गलत तरीके से प्रताड़ित करना , हम किसी के लिए भी मजे का विषय नही हो सकता है क्योंकि ये समाज के लिए , राष्ट्र के लिए बहुत खतरनाक हैं। हमे राजनीतिक पार्टियों के अनुसार किसी से दुश्मनी नहीं साधनी हैं। हमारे लिए सभी राजनीतिज्ञ एक समान हैं उन सभी के साथ एक समान व्यवहार करना है। हम सब के लिए हमारे रिश्ते तथा भाईचारा सबसे ऊपर है, राजनीति बहुत नीचे हैं,हमारा काम है राष्ट्र हित में वोटिंग करना। केवल वोटर्स का व्यवहार करना, किसी पार्टी के  कार्यकर्ता अथवा प्रवक्ता की तरह व्यवहार नही करना चाहिए। जब स्वार्थी वोटर्स अपनी छोटी सी इच्छा को राष्ट्र हित मानने लगते है, जो अपना निजी रिवेंज किसी पार्टी के द्वारा लेना चाहते है, और उनकी अपनी इच्छा की पूर्ति ही राष्ट्रहित मानने लगते है तथा किसी के  इग्नोरेंस को ही हम अपनी जीत मानते है , उसे ही राष्ट्र का भला मानते है तब अति हो जाती हैं। कुछ राजनीतिक लोगों की खुशी के लिए अपना भी तथा राष्ट्र का भी बहुत बड़ा नुकसान कर बैठते है। 

जैसे कुछ लोग तो अपना घर भी जला लेते है एक चुहे को आंख करने के चक्कर में। मैं आपके सामने एक बात रखना चाहता हूं कि जैसे राजनीतिक लोग एक दूसरी पार्टी बदल लेते हैं, एक दूसरे की शादी विवाह में शिरकत करते है वैसे ही वोटर को भी बिना किसी बैर के समाज में भाईचारा बना कर चलना चाहिए। युवा दोस्तो, आपके काम, आपका पड़ोसी ही आएगा चाहे वो किसी भी जाति का हो या किसी भी समुदाय से हो, कोई भी राजनीतिक व्यक्ति काम नही आयेगा। ये बात ध्यान में रखना और अपना आगे का व्यवहार तय करना।
जय हिंद, वंदे मातरम
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर, एंड वॉलंटियर