श्रीमद्भगवतगीता ही सिखाती है हमें कर्मशील होकर रहना-डा. सुभाष रूकमण
ब्रह्मïाकुमारीज आनंद सरोवर में चल रहे-जीवन का आधार - गीता का सारव चार दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे सत्र में जिला परिषद, सिरसा के सी. ई. ओ. डा. सुभाष रूकमन जी नें बतौर मुख्य अतिथी शिरकत की। उन्होने श्रीमद्भगवत गीता को माता के रूप में महसूस करते हुए अपने सम्बोधन में कहा कि जिस प्रकार माँ हमें हर परिस्थिति में मार्गदर्शन देती है उसी प्रकार गीता माता भी हमें अपने कर्म पथ पर बढते रहने का संदेश देती है। जीवन में आने वाली आने वाली परिस्थितियों का संयम से सामना करते हुए सत्यता के पथ पर सदा आगे बढते रहना ही गीता की मूल शिक्षा है।
राजयोगिनी वीणा दीदी जी ने गीता जी के श£ोकों के माध्यम से परमात्मा के द्वारा उच्चारित महावाक्यों के प्रति आस्था बढाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने दबाव और तनाव से मुक्त, स्थिर और सन्तुलित जीवन के लिए गीता में वर्णित ईश्वरीय मार्गदर्शन को बहुत सरल ढंग से विस्तृत किया और कहा कि हमारी व्यवस्थित दिनचर्या और मनचर्या के लिए इस पवित्र ग्रंथ में हर प्रकार का परामर्श उपलब्ध है।
परमात्म परिचय के बारें में गीता ग्रंथ में लिखित भगवानुचाच को स्पष्टï करते हुए उन्होंने कहा कि परमात्मा स्वयं कहते हैं कि मैं सूर्य, चाँद, तारों के भौतिक जगत से अलग अभौतिक परमशक्ति हूं जिसे भौतिक नेत्रों से नहीं देखा जा सकता। इसलिए परमात्म अनुभूति शरीर से अलग चेतन शक्ति आत्मा के स्वधर्म में स्थित होकर ही की जा सकती है।
सिरसा जिले के नाथुसरी चौपटा खंड के बी. डी. पी. ओ. डा. स्टालिन सिद्घार्थ सचदेवा जी ने भी इस मौके अपने भाव रखे और कहा कि जब हम अपने कर्मों को परमात्मा के आगे समर्पित करते है तो वही कर्म सत्कर्म बन जाते हैं और परमात्म साथ से प्राप्त होने वालीं शक्ति हमें नैतिकता में सुदृढ़ करती है। आनन्द सरोवर की निदेशिका राजयोगिनी बिन्दू दीदी नें सबका आभार प्रकट किया और मुख्य अतिथि एवं विशिष्टï अतिथि को ईश्वरीय भेंट देकर सम्मानित किया।
