सीडीएलयू में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में सांप्रदायिक सौहार्द के मूल आधार विषय पर एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन
mahendra india news, new delhi
चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय, सिरसान के छात्र कल्याण अधिष्ठाता कार्यालय एवं हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के संयुक्त तत्वाधान में विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के उपलक्ष्य में सांप्रदायिक सौहार्द के मूल आधार विषय पर एक विशेष संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता के रूप में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के कार्यकारी उपाध्यक्ष प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने शिरकत की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजय कुमार उपस्थित रहे।
अपने संबोधन में प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने कहा कि भारत का इतिहास केवल संस्कृति, अध्यात्म और ज्ञान का ही इतिहास नहीं है, बल्कि यह बाहरी आक्रमणों और उनसे हुई क्षति का भी इतिहास है। लगभग एक हजार वर्षों तक भारत की धरती बार-बार विदेशी आक्रांताओं का सामना करती रही। 8वीं सदी में अरब आक्रमणकारी सिंध तक पहुँचे, 11वीं सदी में महमूद ग़ज़नवी ने 17 बार भारत पर हमला कर हमारे मंदिरों, शिक्षा केंद्रों और सांस्कृतिक धरोहर को नष्ट किया। 12वीं सदी में मोहम्मद गौरी ने तराइन की लड़ाइयों के माध्यम से राजनीतिक पराधीनता की नींव रखी। इसके बाद तुर्क, खिलजी, तुगलक, लोदी और अंततः मुग़ल साम्राज्य ने यहाँ सत्ता स्थापित की।
18वीं सदी में जब मुग़ल साम्राज्य कमजोर हुआ, तो यूरोपीय शक्तियों विशेषकर अंग्रेजों ने भारत की आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक संरचना को गहराई से प्रभावित किया। इन लम्बे आक्रमणों ने न केवल हमारी स्वाधीनता छीनी, बल्कि समाज को विभाजित करने के प्रयास भी किए। 1947 का विभाजन इन आक्रमणों और विदेशी षड्यंत्रों की सबसे भीषण परिणति थी, जिसने लाखों लोगों को विस्थापित किया, लाखों की जान ली और सदियों पुराने रिश्तों को तोड़ दिया। उन्होंने कहा कि विभाजन की स्मृतियां केवल अतीत की त्रासदी नहीं हैं, बल्कि वे हमें यह चेतावनी देती हैं कि अगर हम अपनी सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रीय अस्मिता के प्रति सजग नहीं रहेंगे, तो बाहरी और अंदरूनी ताकतें हमें फिर कमजोर करने का प्रयास कर सकती हैं।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विजय कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि विभाजन की पीड़ा को याद रखना आवश्यक है, ताकि हम आपसी भाईचारे, सौहार्द और राष्ट्रीय एकता को मजबूत कर सकें। यह दिन हमें अतीत की त्रासदी से सीख लेकर एक बेहतर और एकजुट भारत के निर्माण का संकल्प दिलाता है।
उन्होंने कहा कि विभाजन की पीड़ा को याद रखना केवल इतिहास को दोहराने के लिए नहीं है, बल्कि यह हमें यह सोचने का अवसर देता है कि आज और कल का भारत कैसा होना चाहिए। उस दौर में लाखों लोगों ने अपने घर, अपनी जमीन और अपने रिश्तेदार खो दिए, लेकिन उन्होंने अपने हौसले और देशभक्ति को नहीं खोया। आज हमें उसी भावना को आगे बढ़ाना है।
उन्होंने कहा कि हमारा देश विविधताओं में एकता का अनोखा उदाहरण है। विभाजन ने हमें यह सबक दिया है कि धर्म, भाषा, जाति या क्षेत्र के नाम पर कोई भी ताकत हमें बांटने की कोशिश करे, तो हम सभी को एक साथ खड़े होकर उसका विरोध करना चाहिए। विश्वविद्यालय परिसर में भी हम इसी सोच को आगे बढ़ा रहे हैं, जहाँ विचारों की स्वतंत्रता के साथ-साथ आपसी सम्मान और भाईचारा सर्वोपरि है। कुलपति ने छात्रों से आह्वान किया कि वे विभाजन की कहानियों और इतिहास का अध्ययन करें, ताकि वे समझ सकें कि आज की आज़ादी और अखंडता किन संघर्षों और बलिदानों से मिली है।
इस अवसर पर एमबीए विभाग के प्राध्यापकों द्वारा सिरसा के विभाजन विभीषिका से प्रभावित परिवारों पर आधारित डॉक्यूमेंट्री का मंचन भी किया गया। मेहमानो का स्वागत छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रोफेसर राजकुमार द्वारा किया गया जबकि धन्यवाद युवा कल्याण निदेशक प्रोफेसर सेवा सिंह बाजवा द्वारा किया गया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रोफेसर अशोक शर्मा, विभिन्न विभागों के अध्यक्ष, शहर के गणमान्य व्यक्ति जगदीश चोपड़ा, सुरेंद्र मल्होत्रा, सुरेंद्र आर्य, यतिंदर सिंह, राजकुमार आदि उपस्थित थे।इस अवसर पर गाँव भरोखां के दिवान चंद और हरिचंद को सम्मानित किया गया
