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स्कूल मास्टर ने बंजर पड़ी जमीन पर लगा दिए चंदन के पेड़, जाने इस खास खेती से जुड़े उनके विचार

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स्कूल मास्टर ने बंजर पड़ी जमीन पर लगा दिए चंदन के पेड़, जाने इस खास खेती से जुड़े उनके विचार 

सुरक्षित जीवन जीने के लिए लोग शेयर मार्केट, गोल्ड और प्रॉपर्टी में निवेश करते हैं। लेकिन डूंगरपुर के सरकारी शिक्षक दंपती ने इन चीजों में पैसा न लगाकर इसके लिए चंदन में पैसा इन्वेस्ट किया है। आज के रेट के हिसाब से 150 रुपए का पौधा 10 साल बाद 1 लाख रुपए का हो जाएगा। 10 साल बाद तो एक पेड़ की कीमत 1 लाख से बहुत ज्यादा होगी। दंपती ने बंजर खेत को समतल करवाया और चंदन के 400 पौधे लगाए हैं।

डूंगरपुर जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर दक्षिण में Gujrat Border पर स्थित उपखंड सीमलवाड़ा का गांव है खरपेड़ा। गांव में रहने वाले CBEO मुख्य ब्लॉक शिक्षा अधिकारी आबूलाल मनात इन दिनों छुट्टी पर आते हैं तो घर के पास अपने खेत में चले जाते हैं।

खेत में आबूलाल के रिश्तेदार गटूलाल चंदन के पौधों की रखवाली करते हैं। सारा काम गटूलाल ही संभालते हैं। आबूलाल ने एक साल पहले चंदन के पेड़ों में इन्वेस्ट किया है।

आबूलाल ने बताया- 2017 से पहले चंदन के पेड़ लगाने की इजाजत आम किसान को नहीं थी, लेकिन प्रतिबंध हटा तो लोग चंदन के पेड़ लगाने लगे। मुझे इसे लेकर उत्सुकता थी। मैंने चंदन के बारे में जानकारी हासिल करना शुरू किया। आखिर तय कर लिया कि पुश्तैनी 5 बीघा जमीन पर मैं चंदन की खेती करूंगा। कुछ जमीन पहाड़ी एरिया में थी और बंजर थी। उसे मैंने जेसीबी से समतल कराया। साल 2023 में 150 रुपए प्रति पौधे के हिसाब से आंध्र प्रदेश से चंदन के पौधे मंगाकर लगाए। 350 पौधे सफेद चंदन के और 50 पौधे लाल चंदन के हैं।

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उन्होंने बताया- एक साल में अच्छी ग्रोथ मिली है। पौधों की ऊंचाई 5 फीट से ज्यादा हो गई है। एक्सपर्ट लोगों से संपर्क में हूं। चंदन का एक पेड़ 10 साल के बाद फायदा देना शुरू करता है। एक पेड़ से 1 लाख तक की इनकम हो सकती है। परिवार भी इस काम में सहयोग दे रहा है।

आबूलाल ने कहा- चंदन की खेती मुनाफे को सोचकर नहीं की थी। पुरखे खेती से जुड़े रहे हैं, इसलिए सोच पर्यावरण संरक्षण की रही। सभी को पेड़-पौधे लगाने चाहिए। मैंने अपने घर की खाली जमीन पर भी बहुत से पेड़ लगा रखे हैं।

चंदन लगाने से पहले जमीन की मिट्‌टी का टेस्ट कराया। पता चला कि यहां चंदन पनप सकता है। पर्यावरण को बचाने के साथ अगर पेड़ लगाए जाएं तो इससे अच्छा इन्वेस्टमेंट नहीं हो सकता। बाद में आर्थिक तौर पर भी ये पेड़ फायदा देंगे और जब तक तैयार होंगे तब तक ऑक्सीजन देंगे। पर्यावरण को शुद्ध रखेंगे।

आबूलाल मनात ने बताया- अभी मेरी पोस्टिंग बिछीवाड़ा ब्लॉक में CBEO के पद पर है। पत्नी कृष्णा भणात भी नजदीकी गांव धंबोला में Girl Senior School में Teacherहै। आबूलाल मनात ने बताया  पिता कमलाशंकर मनात भी रिटायर्ड शिक्षाविद हैं। पिता टीचिंग के साथ-साथ खेती-बाड़ी भी करते थे। खेतों में पेड़-पौधे लगाए हुए हैं। हरा-भरा माहौल देख खुशी मिलती है।

चंदन के लिए डूंगरपुर की जलवायु उपयुक्त है। आबूलाल मनात ने बताया पहाड़ी की टेकरी के पास जमीन बंजर थी। आबूलाल मनात ने बताया इसको ठीक कराया जिसके बाद मशीनों और श्रमिकों की मदद से गड्ढे खुदवाए। इनमें खाद डालकर छोड़ा। बारिश के सीजन से पहले पौधे लगाए। तब ये पौधे 1 फीट के थे। यह बी-ग्रेड का पौधा है। पौधों की सुरक्षा के लिए तारबंदी कराई है और खेत के चारों तरफ चारदीवारी भी बनवाई है। दैनिक देखभाल गटूलाल करते हैं।

आबूलाल ने बताया- चंदन की जड़ों को पर्याप्त पोषण चाहिए होता है। सबसे ज्यादा जरूरत नाइट्रोजन की होती है। यह पूर्ति आस-पास के जंगली पौधों से होती है, इसलिए इसे जंगल के तौर पर विकसित करना लाभप्रद होता है।

आबूलाल मनात ने बताया की सबसे अच्छा पोषण दलहन के पौधों से मिलता है। इसमें भी अरहर बेस्ट है। खेत के अंदर पौधों के बीच में ट्रैक्टर निकलने जितनी जगह रखी है। ताकि चंदन के पेड़ों के साथ अरहर की फसल भी ले रहा हूं। 

 इसके अलावा सोयाबीन की उपज भी ले चुका हूं। बाकी जमीन में मक्का, उड़द जैसी खाद्यान्न फसलें भी कर रहे हैं। पौधे 5-7 साल तक हों, तब तक इनके बीच की खाली जमीन पर खेती की जा सकती है।

आबूलाल मनात ने बताया की चंदन का पौधा 10 से 15 साल में बिल्कुल तैयार होता है। आबूलाल मनात ने बताया की चंदन के पेड़ में सबसे ज्यादा कीमत चंदन के तने के बीच 10 से 15 सालों के बीच तैयार होने वाले हार्ड वुड की होती है। यह बाकी चंदन का जितना पुराना पेड़ होता है उसकी कीमत उतनी ही अधिक होती है। लाल चंदन सबसे महंगा बिकता है।

उन्होंने बताया- सफेद चंदन की पत्तियां, टहनियां, तना, छाल, जड़ें सब काम आता है। इससे तेल निकाला जाता है। अच्छी ग्रोथ वाले एक पेड़ से 2 लीटर तक तेल निकलता है। इस तेल की कीमत 2 लाख रुपए प्रति लीटर तक होती है। हर दो साल में पौधों की छंटाई और ट्रीटमेंट करना होता है। इसके लिए डूंगरपुर कृषि विभाग के अधिकारियों से चर्चा करता हूं और टिप्स लेकर बगीचे में अप्लाई करता हूं।

आबूलाल ने बताया- बेटा कनिष्क मीणा आईआईटी मुंबई से बीटेक है। वह अभी एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (ECGC) में एग्जीक्यूटिव ऑफिसर है। बेटी तनुश्री मीणा स्वामी विवेकानंद मॉडल स्कूल खेरवाड़ा में टीचर है। बेटा जब भी घर आता है तो बागवानी के काम में मदद करता है।