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ठंड के मौसम में दुधारू पशुओं को हो जाती है यह पांच खतरनाक बीमारियां, पशुपालक इन तरीकों से करें बचाव

ठंडेला होने पर करे ये कार्य
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ठंडेला होने पर करे ये कार्य

mahendra india news, new delhi

पिछले कई दिनों से ठंड असर बढ़ता जा रहा है। इस मौसम में पशुओं को ठंड से बचाने के लिए बहुत जरूरी हो गया है। इस बढ़ती लगातार ठंड से न्यूनतम तापमान कम होने के साथ मौसम पालतू पशुओं के लिए खतरनाक हो जाता है। जनवरी माह में शीतलहर और ठंडी हवाओं से दुधारू पशुओं को ठंड लगना, निमोनिया, दस्त, अफारा रोग, खुरपका, मुंहपका, गलघोटू जैसे खतरनाक भी हो जाते हैं। इससें पशुओं की जान तक चली जाती है। ऐसे में पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होता है और कभी-कभी उनकी आजीविका पर संकट हो जाता है। 

ठंडेला होने पर करे ये कार्य
 दुधारू पशुओं को जरा सी लापरवाही से ठंड लग जाती है। इसका सीधा असर दुध उत्पादन पर पड़ता है। ठंड लगने पर पशुओं की नाक बंद हो जाती है और उन्हे सांस लेने में मुश्किल होने लगती है। इसे ठंडेला रोग भी कहते है।

उपचार:
इसके लिए पशुओं का नाक बंद होने पर पशुपालक एक बड़ी बाल्टी में गर्म खौलता हुआ पानी लें और उसके ऊपर घास रख दें, इसके बाद पशु की नाक पर एक मोटा कपड़ा रखे, इससे गर्मा पानी से निकलती भाप बंद नाक को खोल सके, लेकिन, ये विधि करते हुए विशेष ध्यान रखे की पशु गर्म पानी से जले नहीं। इसी के साथ साथ पशुपालक अजवाइन, धनियाँ और मेथी को कूटकर पानी में उबाल दें। हल्का गर्म रहने पर साजी मिलकर पशु को पिला दे। इससे पशु को ठंड में आराम मिलेगा। 


इसी के साथ साथ छोटे पशुओं बछड़े-बछियां, भेड़ और बकरी के लिए इस मिश्रण की एक चौथाई मात्रा दें।

अफारा रोग होने पर गुड़ खिलाएं

पशुओं के अगर अफारा रोग हुआ है, तो पशुपालक की लापरवाही का परिणाम है। क्योंकि, सर्दियों में पशुपालक गाय भैंस को ज्यादा हरा चारा, बचा खाना या फिर खराब आहार देता हैं। इससे पशुओं में अफारा रोग की समस्या हो जाती है। अफारा रोग में दुधारू पशु जैसे गाय- भैस के पेट में गैस बनने लगती है, जिससे पशु परेशान होकर चिड़चिड़ा हो जाता है। 

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उपचार
आपको बता दें कि इसके लिए पशुपालक पशुओं को अफारा रोग से बचाने के लिए घर में बचा हुआ खाना बहुत कम मात्रा में या फिर कभी-कभी ही दें। ठंड के मौसम में यानि सर्दियों में गाय-भैंस को हरे चारे के साथ ज्यादा सूखा चारा और गुड़ भी खिलाएं। अफारा होने पर पशु को सरसों के तेल में तारपीन का तेल मिलाकर दें। इन तरीकों से पशु को अफारा रोग से बचाया जा सकता है।

थनैला की ऐसे करे पहचान
वहीं दुधारू पशुओं गाय, भैंस, बकरी के थन में सूजन, दर्द और कड़ापन, गर्म थन थनैला रोग के लक्षण हैं। इस रोग में थनों से फटा, थक्केयुक्त दही की तरह जमा हुआ दूध  निकलने लगता है। दूध से दुर्गंध भी आने लगती है और थनों में गांठे पड़ जाती है। पशुओं में थनैला होने पर पशु खाना-पीना कम कर देते है और उन्हें बुखार आ जाता है। इसके लिए थनैला होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे- थन में चोट लगना, संक्रमित पशु के संपर्क में आना, विषाणु, जीवाणु, माइकोप्लाज्मा अथवा कवक।उपचार: बचाव के लिए दूध निकालने के बाद बीटाडीन रूई में भिगोकर थनों पर लगा दें। आपको बता दें कि पशु के आसपास सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें। साथ पशु चिकित्सक से सलाह लेकर टीकारण जरूर कराएं

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निमोनिया रोग में अपनाएं देसी नुस्खा
इस के साथ साथ पशुशाला में हवा जाने पर और ओंस में बंधे होने पर पशु निमोनिया का शिकार होते हैं। निमोनिया में गाय-भैंस सहित दुधारू पशुओं की आंक और नाक से पानी गिरना शुरू हो जाता है। पशु के सुस्त हो जाने के साथ बुखार भी आ जाता है। 

उपचार
इसके लिए पशुओं को देर शाम और रात्रि में खुले आसमान के नीचे नहीं बांधना चाहिए। तेज धूप या मौसम गर्म होने पर पशुओं को बाहर निकाले और नहलाएं। इसी के साथ निमोनिया पीड़ित पशु को नौसादर, सौंठ एवं अजवायन को अच्छी तरह कूट कर 250 से 300 ग्राम गुड़ के साथ दिन में 2 बार जरूर दें। इसी के साथ ही टीकाकरण एवं एंटीबायोटिक्स इंजेक्शन भी लगवाएं। पशुओं की बिछावन को जरूर बदलते रहें, उसमें नमी नहीं होने दें।

खुरपका और मुंहपका  बीमारी
वहीं आपको बता दें कि पशुपालकों को यह पता होना जरूरी है कि खुर-मुंह की बीमारी क्या है। इन दोनों बीमारी में पशु के खुर और मुंह में जख्म और छाले होते  हैं। इससे पशुओं को खाने और चलने में दिक्कतें होती है। पशु सही से चारा नहीं खाने पर पशु के शरीर में कमजोरी आ जाती है। खुरपका और मुंहपका बीमारी किसी पशु को एक बार होने के बाद पूरे जीवन प्रभावित करती है, छोटे पशुओं को तो इस बीमारी में बचना लगभग नामुमकिन हो जाता है। इस बीमारी में छोटे पशुओं की सबसे ज्यादा मौत होती है,  खुरपका और मुंहपका बीमारी बैक्टरिया से होती है, यह एक पशु को होने पर उसके पास के दूसरे पशु को भी हो जाती है, दिसबंर से फरवरी तक यह रोग सबसे ज्यादा होता है।

उपचार
आपको बता दें कि इस रोग के घरेलू उपाय के लिए हर दिन सुबह-शात पशुओं के मुंह और खुर के घाव को लाल दवाई या फिटकरी के घोल से साफ जरूर करें। इसके लिए लाल दवा या फिटकरी उपलब्ध नहीं हो तो नीम के पत्ते उबालकर ठंडे हुए पानी से घावों की अच्छे से सफाई करें। इसी के साथ साथ ही खुरों के घाव से कीड़े निकालने के बाद फिनााइल और मीठे तेल को सही मात्रा में मिलाकर लगाएं। इसी के साथ बीमार पशुओं की देखभाल करने वाले व्यक्ति बाड़े से बाहर आने पर हाथ-पैर साबुन से अच्छी तरह धो ले। जहां बीमार पशु की लार गिरी हो वहां पर कपड़े धोने का सोडा, सफेद चूना या फिनाईल डालें।