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2 जून की रोटी के संघर्ष से तो अभी हम निपटे नहीं, अगर लोग नही संभले तो...

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We have not yet dealt with the struggle for bread on June 2nd, if people do not come to their senses

mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
जल संरक्षण कार्यकर्ता
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने बताया है कि सभी ने एक कहावत तो जरूर सुनी होगी और पढ़ी होगी कि " 2 जून की रोटी के" लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है। ये कहावत अक्सर जून के माह में ही ज्यादा कही जाती हैं यहां अलग अलग लोगों का  अलग मत है। कुछ लोग कहते है कि अंग्रेजी माह जून तथा भारतीय माह ज्येष्ठ में बहुत गर्मी पड़ती है इसलिए इस माह में भोजन मिलना बहुत संघर्ष का विषय होता था , इसीलिए लगभग 600 वर्षो से इस कहावत का उपयोग किया जा रहा है। 

परंतु अगर कुछ अध्ययन करें तो इसका  जून माह या ज्येष्ठ माह से कोई लेना देना नही है। वास्तव में ये कहावत अवधी भाषा में मिलने वाले शब्द जून से आया है जिसका मतलब होता है वक्त अथवा समय और इसी लिए जब हम ये कहावत बोलते है तो हम कहना चाहते है कि 2 समय का भोजन या दो वक्त की रोटी। हमारे ग्रामीण क्षेत्र में अक्सर भोजन के लिए रोटी शब्द का ही उपयोग किया जाता है, कि आपने रोटी खा ली है अर्थात आपने भोजन कर लिया है क्या ? 


यही कहावत जब जून का महीना आता है तो कुछ ज्यादा ही प्रचलन में आ जाती है, हालाकि जून महीने से इसका कोई जुड़ाव नही हैं। इस पृथ्वी पर दो जून की रोटी के लिए कितना संघर्ष है ये तो वो ही लोग बता सकते है जो ईमानदारी से मेहनत करते है, जो मजदूरी करते है, जो कृषि करते है, जो लेबर करते है। इस धरती पर हम आज तक कोई व्यवस्था नहीं बना पाए है कि किसको कितना मिलना चाहिए, किस का कितना हिस्सा है, किस को कितने पौषण की अवश्यकता है, किस को कितना भोजन मिलना चाहिए, किसको कितना पौष्टिक खाना मिलना चाहिए। 

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इस विश्व में संयुक्त राष्ट संगठन भी है, इस विश्व में अलग अलग विषयों को लेकर अलग अलग विश्व स्तरीय संगठन बने हुए है परंतु हम अभी तक विश्व के हर नागरिक के लिए भोजन की ना तो व्यवस्था कर पाए है और ना ही हम विश्व के हर नागरिक के भोजन में कितनी पौष्टिकता हो वो तय कर पाएं है। ऐसे संयुक्त राष्ट्र संघ या हर देश की ऐसी सरकारों का क्या फायदा है जिनके देश में वर्तमान में भी विश्व के नागरिक दो जून की रोटी भी जुटाने में कामयाब नही हो पाते है, ऐसा नही है कि इनमे से लोग अक्षम है पर बात वितरण में असमानता के कारण हैं। जब हम बड़ी बड़ी संस्थाओं में करोड़ों रुपए खर्च करके भी हर नागरिक को दो जून का भोजन देने में कामयाब नही हो पाएं, विश्व में शांति स्थापित नही कर पाए। विश्व स्तर पर कितने ही देश आपस में लड़ रहे है

 कितने ही बेकसूर नागरिक मारे जा रहे है। एक तरफ लोगों के पास लाखो करोड़ रुपए है, करोड़ो रुपए की गाडियों में घूमते है, शादी विवाहों में हजारों करोड़ रुपए उड़ा देते हैं, विश्व में बहुत सा भोजन , झूंठन में पड़ा मिलता है, जिससे कितने ही लोगो को दो जून की रोटी दी जा सकती थी। परंतु हमने अभी तक विश्व के हर नागरिक के डेटा बेस तैयार नहीं कर पाए, हो सकता है लोगों ने अपने व्यवसाय या राजनीतिक फायदे के लिए भले ही लोगों के डेटा बनाया हो, परंतु किसी ने भी विश्व के हर बच्चें को पौष्टिक भोजन, शिक्षा, स्वास्थ्य, शुद्ध पानी, घर, शुद्ध ऑक्सीजन देने का प्लान तैयार नहीं किया।


 अगर हम हर देश में पैसा कमाने की एक लाइन देखें तो पाएंगे कि इस दुनिया में पैसा कमाने या इक्कठा करने के जो रास्ते है वो पांच प्रकार के हैं, जैसे ;
1. मेहनत से पैसा कमाना ।
2. बुद्धि से पैसा कमाना ।
3. पैसे से पैसे इक्कठा करना।
4. ठगी से पैसा इक्कठा करना।
5. इमोशनली ब्लैकमेल करके लोगों से पैसे इक्कठे करना।

चाहे विश्व में कितने बड़े बड़े उद्योगपति हो , चाहे वो लाखो करोड़ रुपए प्रति वर्ष कमाते हैं लेकिन हर जीव के भोजन , कपड़े और घर की व्यवस्था करने से बहुत पीछे है। चाहे कोई अट्टालिकाओं में रहते हों, चाहे कोई बड़ी बड़ी भूमि के मालिक हो, चाहे उनकी आय लाखो करोड़ में हो, लेकिन अगर विश्व में कोई भी बच्चा बिना भोजन , बिना कपड़े तथा बिना घर के हो, शिक्षा तथा स्वास्थ्य से वंचित हो , तो ऐसे ऐसे अमीर महानुभावों का कोई योगदान नही है, इसका अर्थ है विश्व में बड़े पैमाने पर असमानता हैं। जब कि प्राकृतिक संसाधनों पर तो विश्व के हर नागरिक का हक है, इनको किसने अधिकार दिया है कि ये किसी भी देश के किसी भी प्राकृतिक संसाधनों को अपने व्यवसाय के लिए उपयोग करते है। इन्होंने पृथ्वी को खोखला कर दिया है, बहुत से पहाड़ पर्वतों को खोखला कर दिया है। 

पानी के सारे प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे है, सभी नदियों में अपने अपने उद्योगों की गंदगी डालते रहते हैं, इनके सामने सभी नेचुरल रिसोर्सेस बोने हो गए है। दोस्तो, जो लोग विश्व में मेहनत से पैसे कमाते है, उन्ही को दो जून की रोटी मौहया नही होती है, जो लोग बुद्धि से पैसे कमाते है उन्हे भी जीवन में खूब संघर्ष करने पड़ते है, जो लोग पैसे से पैसा कमाता नही बल्कि इक्कठा करते है क्योंकि इसे कमाना नहीं कहते है, वो बिना मेहनत के अथाह पैसा इक्कठा करते है और वही महानुभाव पैसे की कीमत गिराते हैं, जो लोग ठगी से पैसा चुराते है उन्हे किसी के जीवन से कोई लेना देना नही है, जो लोग किसी गरीब तथा असहाय लोगों से इमोशनली ब्लैकमेल करके पैसा ठग लेते है उन्हे तो विश्व की प्रगति के बारे में कोई ज्ञान होता ही नही है। ऐसी जी डी पी का कोई लाभ नहीं है चाहे वो किसी भी देश की हो, जिसमे लोगों को दो जून की रोटी भी नही मिलती है। मुझे ताजुब होता है कि इस विश्व बड़े बड़े धनाढ्य, बड़े बड़े वैज्ञानिक, बड़े बड़े बुद्धिमान , बड़े बड़े धार्मिक, बड़े बड़े राजनीतिज्ञ लोगों के होते हुए भी अगर कोई बच्चा इस पृथ्वी पर भूखा है तो ऐसी बुद्धिमता का कोई फायदा नही हैं। 

मैं तो इससे आगे आपको चेताना चाहता हूं कि अगर हमने प्राकृतिक संसाधनों के दोहन को नही रोका तो इस विश्व में दो जून का पानी भी  नहीं मिल पाएगा। आज भी लोग पानी के लिए तरस रहे है, लेकिन इतना होते हुए भी व्यवसाय करने वाले लोग पानी का बिजनेस करते रहे तो आने वाले समय में लोग पानी के लिए भी तरस जायेंगे। आज भी पानी को बोतलों में बेचने वाले, टैंकर्स में बेचने वाले,कोल्ड्रिक्स की बोतलों में बेचने वाले लोगों की वजह से आम जनता को सप्लाई होने वाले पानी में कटौती की जाती है जिससे कि लोग पानी खरीदें। और इस प्रकार से लोगों को लूटने की षड्यंत्र किए जाते हैं। मैं यहां भारत के ही नही बल्कि विश्व के नागरीको से अपील करना चाहता हूं कि पानी को संरक्षित करने का संकल्प लें, बरसात के पानी की एक एक बूंद को सहेजने का कार्य करना चाहिए, धरती के गर्भ से पानी निकालना बंद करे, दो जून की रोटी के बिना तो कुछ दिन  जीवन चल सकता है परंतु दो जून के पानी के बिना इस गर्मी में जीवन नही चल सकता है। 

आओ हम सब मिलकर पानी को सहेजने के लिए कुछ संकल्प लें , जैसे ;
1. सभी को पानी की कीमत समझना चाहिए और बरसात की एक एक बूंद को सहेजने के संकल्प की जरूरत हैं।
2. इस धरती पर मौजूद ग्लेशियरों को बचाने के लिए हर व्यक्ति को अपने स्तर से गर्मी कम करने का संकल्प लेना चाहिए।
3. दुनिया में सभी को, हर नागरिक के भोजन, कपड़ा , घर तथा पानी के लिए अपने स्वार्थ को त्याग कर ,सभी को साथ लेने की जरूरत है।


इसीलिए हम सभी मिलकर अपने स्तर से इस धरती पर रह रहे हर नागरिक ही नही बल्कि सभी अंडज, पिंडज, स्वेदज तथा उद्भिज के जीवन को बचाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। आओ सभी मिलकर पृथ्वी तथा प्राकृतिक संसाधनों, और जीवों का संरक्षण करना करें।
जय हिंद, वंदे मातरम