यौगिक जीवन शैली, युवाओं के संपूर्ण व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक है, इसे जाने युवाशक्ति
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
जीवन तो सभी जीते है परंतु जीवन की सार्थकता के साथ जीने का पुरुषार्थ किसी किसी में होता है। वर्तमान युवा पीढ़ी के सामने चुनौतियां बहुत अधिक है, अगर आज से तीस चालीस वर्ष पहले की बात करें तो उस समय इतनी कठिनाइयां तो निश्चित तौर पर नहीं थी। जीवन बहुत सरल था, जीवन बहुत सादा था, भोजन बहुत पौष्टिक था, पहनावा बहुत साधारण था, रिश्ते बहुत मधुर थे, विचार विमर्श की धारा में भी प्रवाह था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। युवाओं के सामने कठिन परिस्थितियां है, चुनौतियां है, विकट स्थितियां है, बहुत सी विपरीत धाराएं है, जिनको चीर पाना बहुत कठिन है।
सामान्य जीवन शैली वर्तमान समय में स्वयं के उत्थान के लिए प्रयाप्त नहीं है, इसके लिए तो यौगिक जीवन शैली की जरूरत है। अधिकतर युवाओं को चाहे वो विद्यार्थी हो या रोजगार में हो, यौगिक जीवन शैली के अर्थ का भी ज्ञान ना होगा। सर्वप्रथम तो हमे यौगिक जीवन शैली के विषय में पता होना चाहिए, तभी तो हम ऐसी जीवन शैली को अपना पाएंगे। युवा साथियों, आने वाला समय और भी कठिन होने वाला है, चाहे आप मानो या मत मानो।
यौगिक शब्द, योग से बना है, योग में अपने जीवन को मिला देना, योग के अनुशासन में अपने जीवन को ढाल लेना ही यौगिक जीवन शैली है। योग दर्शन में यही तो कहा गया है कि " अथ योग अनुशासनम" योग अनुशासन का विषय है, करने का विषय है, क्रियाशील बनने का विषय है। जिस प्रकार सांख्य योग ज्ञान का विषय है, जिज्ञासा का विषय है, उसी प्रकार योग अनुशासन का मामला है। हम यहां यौगिक जीवन शैली की बात इसी लिए कर रहे है क्योंकि ये मेहनत का रास्ता है, क्रियाशील रहने की बात करते है। युवाओं और विद्यार्थियों के जीवन का अर्थ ही कुछ करते रहना है, क्रियाशील रहना है, मेहनत करना है, अनुशासित रहना है।
पतंजलि महाराज ने योग को आठ अंगों में बांटा है, जिसे अष्टांग कहते है, जो शारीरिक क्रियाओं से शुरू होकर उत्कृष्टता की उच्चकोटी तक पहुंचना है। जैसे योग की उच्च कोटि समाधि है, उसी प्रकार विद्यार्थियों या युवाओं के लिए उच्च कोटि जीवन में सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करना है, एब्सोल्यूट को प्राप्त करना है। यहां मैं समाधि को ज्ञान की उच्चकोटी से जोड़ने की हिम्मत इसलिए कर रहा हूं क्योंकि हमारी युवा पीढ़ी योग के अष्टांग योग को समझने में कुछ गलती कर देते है या वो युवा ये सोचते है कि ये अष्टांग हमारे किस काम के है, ये तो साधु संन्यासियों के काम के है। युवा दोस्तो, अगर हम इन आठों अंगों को अपनी युवा जीवन शैली से जोड़कर समझे तो शायद हम इसके द्वारा अपनी जीवन शैली को यौगिक जीवन शैली में परिवर्तित कर पाएंगे। अष्टांग योग में यम से शुरू होकर हम समाधि तक पहुंचते है,
इसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान तथा समाधि है। अब इन आठों अंगों के नाम सुनकर युवाओं या विद्यार्थियों को लगता है ये योग के भारी भरकम शब्द हमारे किस काम के है परंतु साथियों यही रास्ता है जिससे आप अपने उच्च से उच्च लक्ष्य को प्राप्त कर पाओगे। हम यहां इन सभी आठ अंगों को थोड़ा आसान शब्दों में, व्यवहारिक शब्दों में अर्थात वर्तमान जीवन शैली के शब्दों में प्रदर्शित करेंगे। जैसे पहला अंग यम अर्थात किसी भी व्यक्ति के समाज में रहने के तरीके या इसे यूं कह सकते है कि हमारा सामाजिक आचरण कैसा हो? इसमें पांच अनुशासन है पहला अहिंसा यानी किसी भी कीमत पर अपनी आत्मा का पतन न होने देना, दूसरा सत्य अर्थात हमारे मन वचन कर्म की क्रिया एक जैसे हो। तीसरा अस्तेय अर्थात किसी भी प्रकार की चोरी ना करना।
चौथा ब्रह्मचर्य अर्थात अपने ओज को संरक्षित रखना, समाज में किसी भी प्रकार का वासनायुक्त आचरण न करना। पांचवां अपरिग्रह यानी जरूरत से अधिक का संग्रह नहीं करना, इससे मन लक्ष्य से भटकता है, इसका अर्थ हुआ कि अधिक कपड़े, फैशन, सेहत के विरुद्ध खानपान, बिना जरूरत की इच्छाएं भी तो मन को भटकाती है। अष्टांग योग में अगला अंग है नियम, जिसे हम व्यक्तिगत आचरण या व्यक्तिगत पालन कहते है, जिसमें शरीर वा मन की शुद्धि, जरूरत की पूर्ति में ही संतोष रखना, तप अर्थात मेहनत करना,
सभी प्रकार की परिस्थितियों को सहन करना। स्वाध्याय अर्थात खूब पढ़ाई करना। इसमें पांचवां भाग है ईश्वर प्राणिधान अर्थात ईश्वर को समर्पित करना यानी ईश्वर अर्थात एब्सोल्यूट या इसे उच्चकोटी के ज्ञान या लक्ष्य भी कह सकते है उसी को सबकुछ समर्पित करना। अगर हम अष्टांग योग के अगले अंग की बात करे तो आसन आता है जिसे हम शारीरिक तौर पर अंगविशेष से संबंधित व्यायाम ही तो कहेंगे, जो हर युवा युवावस्था में करते है, इसे थोड़ा व्यवस्थित करने की जरूरत है यानी इसे सांस के साथ ध्यान से करने की जरूरत है।
चौथा अंग प्राणायाम है जो हमे मानसिक रूप से स्थिर करने की स्किल है, इसके द्वारा हम अपने मन को नियंत्रित करते है जो विद्यार्थियों के लिए अति आवश्यक है। पांचवां अंग, जिसे हम प्रत्याहार कहते है अर्थात बाहर से आने वाले विचारों पर ध्यान करना तथा नेगेटिव विचारों या पदार्थों को या भोजन को अपने भीतर जाने से रोकने की प्रक्रिया को ही तो प्रत्याहार कहते है और ये क्रिया हम अक्सर खुद को गलत संगत से बचाने के लिए एक महत्वपूर्ण स्किल के रूप में उपयोग करते है। छठा अंग धारणा है, इसे युवा संकल्प कह सकते है कि जब बाहरी विसंगतियों को रोकने के बाद खुद को बेहतरी की तरफ या एक विषय पर संकल्पित करने का अभ्यास ही है।
सातवां अंग ध्यान है, जो हमारे जीवन में बहुत उपयोगी है जिसे हमारे मातापिता या बड़े बुजुर्ग सदैव कहते रहते है कि बेटा बेटी ध्यान से करना, ध्यान से जाना, ध्यान रखना अर्थात सजगता के साथ आगे बढ़ना। किसी प्रकार का विचलन ना होने पाए। जीवन में सजगता के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करना अर्थात जीवन में उच्चता को प्राप्त करना। आठवां अंग समाधि है, जिसे हम युवाओं की भाषा या विद्यार्थियों की भाषा में पढ़ाई में रम जाना कहते है, फिर एक ही लक्ष्य पर मन टिक जाता है, केवल सफलता ही दिखती है, ज्ञान ही लक्ष्य रह जाता है, सब कुछ छूट जाता है, उच्च ज्ञान की प्राप्ति ही लक्ष्य रह जाता है, जिसे हम आध्यात्मिक भाषा में ईश्वर की प्राप्ति कहते है,
एब्सोल्यूट की प्राप्ति कहते है, जहां कोई विचलन नहीं, कोई मोह नहीं, कोई द्वेष क्रोध नहीं, कोई प्रतिस्पर्धा नहीं, कोई अपरिग्रह नहीं, कोई बेईमानी नहीं, सब कुछ ज्ञान को समर्पित हो जाता है। युवा साथियों, योग जीवन शैली में स्वयं को उच्चता के साथ जोड़ना है, श्रेष्ठता के साथ जोड़ना है, प्रकृति में मिल जाना है, आनंद के साथ जुड़ जाना है, रिश्तों के साथ मधुरता से जुड़ जाता है। वर्तमान में जीवन की अत्यधिक कठिनाइयों को देखते हुए युवाओं के लिए यौगिक जीवन शैली को अपनाना बेहद जरूरी है, अगर वर्तमान में चहुओर से आ रही समस्याओं से निजात पानी है तो यौगिक जीवन शैली अपनाए और जीवन को आनंदमय बनाएं।
भारत ने दुनिया को योग जैसी महान विधा दी है। वर्तमान में पतंजलि योग पीठ, विभिन्न प्रदेशों के योग आयोग भी युवाओं को तथा विद्यार्थियों को जीवन की कठिनाइयों, तनाव दबाव तथा अवसाद से उभरने के लिए सहयोग्रत है। आओ यौगिक जीवन शैली अपनाए और आनंदमय सफलता पाएं।
जय हिंद, वंदे मातरम
