सीख: पूजा स्थलों में दर्शन करने वाले श्रद्धालु अपने वस्त्रों पर ध्यान दें, आधे अधूरे कपड़े पहनकर धार्मिक स्थानों पर ना जाएं

mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने अपने लेख में बताया है कि जब हम चारों ओर देखते है तो लोग धार्मिक बनने का ढोंग तो करते है परंतु धर्म से विमुख होते जा रहे है, और कर्मकांडी बनते जा रहे है। हमारे यहां धर्म की बात तो खूब होती है लेकिन हम धर्म के लक्षणों को फॉलो नहीं करते हैं। हमारे वेद शास्त्र कहते है कि सत्य की आत्मा है, सत्य ही सनातन है। सत्य ही ईश्वर है, सत्य ही समाधान है। हम हर तरह के कार्यक्रमों में पूजा पद्धति को तो खूब मानते है लेकिन हम धर्म का पहला कदम भी, जो सत्य है, उसका अनुशरण नहीं करते। मै यहां पूजा स्थलों पर जाते वक्त पहने जाने वाले वस्त्रों पर विमर्श करना चाहता हूँ क्योंकि जन साधारण तो फैशन में चूर है उन्हे ज्ञान ही नहीं है कि वस्त्र भी हमारे जीवन में अहम रोल अदा करते है, वस्त्र भी हमारे विचारों पर बहुत असर डालते है, वस्त्र भी हमारी जीवन शैली को बदलने की ताकत रखते हैं। परंतु हम कभी भी स्थान के अनुसार अपने वस्त्रों पर ध्यान नहीं देते है, ना ही हम फैशन का अर्थ समझते हैं। हम वैदिक संस्कृति के ध्वज वाहक है, हम वासुदेव कुटुंबकम् के ध्वज लेकर चलने वाले है, लेकिन हमे किस अवसर पर कौन से वस्त्र धारण करने चाहिए, ये भी नहीं पता हैं। हम शादी विवाह में पहनने वाले कपड़ों पर भी ध्यान नहीं देते है, धार्मिक स्थलों पर या पूजा स्थलों पर कैसे वस्त्र पहनने है इसका तो बिल्कुल ही ज्ञान नहीं हैं। ये सारा खेल स्थान और समय का ही होता है। हर स्थान पर अलग अलग तरह की वाइब्रेशन होती है, वहां उसी तरह के वस्त्र धारण करने चाहिए। मुझे ये देखकर बहुत तकलीफ होती है कि जिन धार्मिक स्थलों अथवा पूजा स्थलों पर ईश्वर आराधना के लिए हम जाते है, वहां ऐसा फैशन करते है कि वो असभ्य लगता है।
लोग निक्कर टीशर्ट पहनकर भगवान के दर्शन करने चले जाते है, कुछ लोग आधे अधूरे वस्त्र पहनकर धार्मिक स्थलों में आ जाते हैं। ऐसे ऐसे लोग है कि किसी भी पार्टी फंक्शन में तो बहुत सुंदर कपड़े पहनकर जाते है लेकिन पूजा स्थलों पर ऐसे ही बगैर तैयारी के चले जाते है, स्नान करने की तो छोड़ों, हाथ तक नहीं धोते हैं। धार्मिक स्थल सबसे पवित्र स्थल होते है जहां ईश्वर विराजते है, जब हम किसी शादी विवाह, किसी पार्टी, किसी फंक्शन में जाते है तो साफ सुथरे, सभ्य, नए, तथा बेहतरीन वस्त्र पहनकर जाते है तो फिर हम ईश्वर के घर, इस दुनिया को चलाने वाले के घर जाने पर सभ्य या साफ सुथरे कपड़े क्यों नहीं पहनते हैं। जैसे हम किसी भी महत्वपूर्ण व्यक्ति के पास जाते है तो अच्छे वस्त्र पहनकर तहजीब से जाते है, जब हम नौकरी के लिए किसी साक्षात्कार के लिए जाते है तो भी अच्छे वस्त्र पहनकर तथा सभ्य तरीके से जाते है,
जब हम घर से बाहर निकलते है तो भी अच्छे से तैयार होकर निकलते है, इन सभी परिस्थितियों में हम अपने घर में वस्त्रों के विषय में पूछते है कि कौन से कपड़े अच्छे लग रहे है तो फिर हम जब धार्मिक स्थलों पर जाते है, पूजा स्थलों पर जाते हैं या मंदिरों में जाते है जहां हमे उस एनर्जी के पुंज स्वरूप ईश्वर से मिलना है, या मै कहूं प्राकृतिक प्रेरणा के प्रकाश से मिलना या उनके सामने जाना है तो फिर हम उस समय क्यों नहीं अपने वस्त्रों पर ध्यान देते हैं। मेरा ऐसा मत है कि जब हम पूजा स्थलों में जाए तो कुछ वस्त्रों पर तो बिल्कुल पाबंदी लगा दे, जैसे किसी भी प्रकारके टाइट वस्त्र, जींस, स्लीवलेस वस्त्र, आधे अधूरे वस्त्र, निक्कर, टीशर्ट, फटे हुए वस्त्र, मैले कुचैले वस्त्र , ध्यान भटकाने वाले वस्त्र, ज्यादा भड़कीले वस्त्र, ताकि हमारा मन वहां स्थिर हो सकें। दूसरा हमे थोड़े खुले वस्त्र इस लिए भी धारण करने चाहिए जिससे कि हमे वहां बैठने में कोई दिक्कत ना हो। हम पूजा स्थलों में उपलब्ध सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण कर सकें। इसके साथ ही मैं कहना चाहता हूँ कि कभी भी ईश्वर की प्रेरणा पुंज मूरत के सामने खड़े होकर अपनी डिमांड की लिस्ट प्रस्तुत ना करें।
पूजा स्थल या धार्मिक स्थल अपने आप में इसलिए शक्तिशाली होते है क्योंकि वहां ईश्वरीय एनर्जी है जो हमे पॉजिटिविटी देती है, वो एनर्जी हमे शक्ति देती है, सशक्त करती हैं, हमारे मन को स्टेबल करती है, हमारे भीतर ऊर्जा पैदा करती है, हमे विनम्र बनाती है,संवेदनशील बनाती है, हमे दयावान करती है, हमे प्रकृति तथा मानवता के प्रति श्रद्धावान करती हैं। जीवन प्रेरणा तथा ऊर्जा का ही तो पुंज है जो हमे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है जो हम में उत्साह भरती हैं। हम आज पूरी निष्ठा से संकल्प करे कि हमारे धार्मिक स्थल कोई पिकनिक स्पॉट नहीं है, अगर वहां जाए तो भागदौड़ में नहीं बल्कि धीरज के साथ जाएं और सकारात्मक ऊर्जा वाले वस्त्र पहने अर्थात सात्विक वस्त्र धारण करें। अपने मन को शांत करने की प्रेरणा लेकर आएं, किसी के साथ अपना व्यवहार सुधारने की प्रेरणा लेकर आएं। और अंत में, मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि धार्मिक स्थलों में जाते समय अपने सुसभ्य वस्त्र ही पहने ताकि पॉजिटिव ईश्वरीय ऊर्जा आपको मिल सकें।
जय हिंद ,वंदे मातरम