क्या आपके बच्चों को तैरना आता है, अगर नहीं तो आपकी परवरिश में कमी है, पेरेंट्स ध्यान दे
Mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
कभी कभी जीवन की बहुत सी जीवन उपयोगी जरूरतों पर हम ध्यान नहीं देते है, और आरामदायक जीवन जीने में मशगूल रहते है। हमे जीवन की मुसीबतों पर चर्चा करना अच्छा नहीं लगता और अधिकतर परिवारों में अक्सर लोग समस्याओं पर विमर्श करने की बजाय झगड़ने लगते है, एक दूसरों पर व्यंग करने लगते है, दूसरों पर जिम्मेदारी डालने लगते है। मेरा ऐसा अनुभव है कि हम में से अधिकतर लोग कंफर्ट जोन में रहना चाहते है, जब भी किसी समस्या पर गहन मंथन की जरूरत पड़ती है तब भी दूर भागने की कोशिश करते है,
आपस में लड़ झगड़ कर वहां से बाहर निकलने को ही आतुर रहते है। जीवन की धारा सम्यक धारा है जिसमें हर प्रकार की काबिलियत की जरूरत होती है, क्योंकि समय बदलते देर नहीं लगती है। कुछ महानुभाव ये सोचते है कि ऐसे ही चलेगा, कोई बदलाव नहीं होने वाला है, शायद वो लोग गलतफहमी में रहते है। मैं आज जीवन की एक ऐसी स्किल की बात कर रहा हूँ जो हमारे जीवन के लिए ही नहीं बल्कि जिंदा रहने के लिए जरूरी है, जैसे स्विमिंग एक ऐसी ही स्किल है जो लगती तो गैरजरूरी है, लेकिन अगर स्थिति बाढ़ की बन जाए तो ये ही स्किल है हो हमे जिंदा रहने में मदद करती है। हम ऐसा क्यों सोचते है कि कभी भी कोई समस्या नहीं आएगी।
आपके सामने मै ऐसे बहुत से उदाहरण पेश कर सकता हूँ जो बेहद भयावह रहे है जिसमें ना जाने कितनी ही जाने चली गई है। अभी कुछ दिन पहले उत्तराखंड के धराली में हुई दुर्घटना का किसी को भान नहीं था, क्या किसी ने सोचा था, हालांकि पर्यावरणविद इन सब बातों पर सभी को आगाह करते रहते है, लेकिन इन बातों पर कोई ध्यान देने कार्य तैयार नहीं है। कई बार लोग नदियों में, नहरों में नहाने जाते है लेकिन अचानक अनहोनी हो जाती है और तैरना ना जानने के कारण लोग अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। क्या कभी गुरुग्राम के प्रशासन ने या सरकार ने ये विचार किया है कि जो स्थान बाढ़ प्रॉन है और हम उसी जमीन पर बहुमंजली इमारतें खड़ी करते जा रहे है, क्या सभी लोगों ने ये मान लिया है कि अब कभी हरियाणा में बाढ़ नहीं आएगी? यही विचार हमे सबसे बड़ा धक्का लगाता है। मैं यह बहुत ही स्पष्टता से कहना चाहता हूँ कि ये सभी धन दौलत तभी काम आती है जब हम जिंदा रहते है अन्यथा सब कुछ बेकार है। हम पढ़े लिखे होने के बावजूद भी जीवन के लिए उपयोगी कौशल को प्राप्त करने का ना तो प्रयास करते है और ना ही हमे पता होता है। ह्यूमन बीइंग के लिए सबसे पहली जरूरत होती है कि उसका जीवन बचे, सुरक्षित रहे, उसके लिए जरूरी स्किल्स अर्जित की या नहीं, जिंदा रहने के लिए जरूरी चीजें है या नहीं।
उसके बाद ही कोई इंसान दूसरे संसाधनों की ओर बढ़ता है, अगर वो अपनी जरूरी स्किल्स को छोड़कर बेकार की चीजें संग्रह करता है और मुसीबत के समय में सभी को गवां देता है, तो वो समझदारी नहीं कहलाती है। हमे पेरेंट्स होने के नाते अपने बच्चों की परवरिश में भी इन महत्वपूर्ण स्किल्स का ध्यान रखना होंगा। तैरना एक बेहद जरूरी कौशल है, जिसे हम अक्सर इगनोर कर देते है। हम अपने बच्चों से मात्र 6 वर्ष की उम्र में ही पूछने लगते है कि बेटा या बेटी बताओं कि जीवन में क्या बनोगे? कोई भी यह नहीं पूछता है कि बेटा या बेटी अभी तक क्या क्या सीखा है, शरीर को सशक्त बनाने को क्या सीखा, मन को स्थिर रखने को क्या सीखा है,
आपसी रिश्तों को निभाने को क्या क्या सीखा है? और पढ़ाई लिखाई के अलावा क्या क्या सीख रहे हो? जीवन में आने वाली मुसीबतों से टकराने के लिए क्या सीखा, क्योंकि ऐसा ना होने पर बच्चे हौसला तोड़ देते है और अवसाद ग्रस्त हो जाते है। मैने ऐसे ऐसे लोग देखें जिनको साइकिल तक चलाने में दिक्कत होती है, तैरने में तो अधिकतर लोगों का हाथ तंग है, ताजुब की बात ये है कि नए बच्चे भी तैरना नहीं जानते है और ये बहुत ही बड़ी समस्या है कि अधिकतर बच्चों को घुड़सवारी जैसी स्किल भी नहीं आती है, कितने मातापिता ऐसे है जो अपने बच्चों खाना बनाना सिखाते है,
कितने ऐसे पेरेंट्स है जो अपने बच्चों को बातचीत करना सिखाते है, कितने ऐसे माता पिता है जो अपने बच्चों को बैड टच गुड टच के बारे में जानकारी देते है, और कितने पेरेंट्स ऐसे है जो अपने बच्चों को मुसीबत पड़ने पर केवल चना गुड के सहारे रहना सिखाते है, कितने मातापिता ऐसे है जो अपने बच्चों को भूखा रहना सिखाते है? मुझे लगता है जीवन जीने किए तैरना सीखना भी बेहद जरूरी है, क्योंकि यह स्किल ना केवल स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है बल्कि बहुत बार काम आती है, एक तो अगर हम खुद किसी जल भराव या बाढ़ की स्थिति में फंस जाए या फिर किसी डूबते हुए व्यक्ति को बचाना हो, तब भी हमें वा हमारे बच्चों को तैरने की स्किल आनी चाहिए।
अन्यथा हम या तो अपनी जान गंवा देंगे या फिर मूक बनकर देखते रह जाएंगे, हम किसी की कोई सहायता नहीं कर पाएंगे। हमे पेरेंट्स होने के नाते अपने बच्चों की परवरिश को अधिक प्रभावी बनाना चाहिए। हम अपने बच्चों हर प्रकार का प्रशिक्षण देने का प्रयास करे, चाहे वो थ्योरी का हो या फिर अभ्यास से संबंधित हो। हम अपने बच्चों साइकिल चलाना, स्कूटर , बाइक तथा कार चलाना सिखाए। उन्हें तैरना सिखाएं, बच्चों खाना बनाना सिखाएं, उन्हें दौड़ना सिखाएं , बच्चों को मुसीबत से लड़ना सिखाए, उन्हें आपसी रिश्तों को सहज भाव से समझना सिखाया जाए, उन्हें पेरेंट्स के योगदान से रूबरू कराया जाए, उनके मातापिता बनने जैसी स्थिति के बारे में भी जानकारी दी जाए। हम अधिकतर केवल शिक्षा पर तो फोकस करते है परंतु उनके जीवन की जरूरी बातों को छोड़ देते है,
जिसमें वो फंस जाते है। उन्हें लाइफ स्किल्स के विषय में प्रशिक्षण दिलवाए कि कैसे उनमें आत्म जागरूकता बढ़े, वो कैसे हैप्पी रह सकें, वो कैसे अपने क्रोध का प्रबंधन करें, वो कैसे अपने जीवन में किसी के बहकावे में ना आवे , ना किसी पाखंड में फंसे। हमे अपने बच्चों को तर्कशीलता सिखानी चाहिए, उन्हें निर्णय लेना सिखाना चाहिए, हम अपने बच्चों को अवसाद से कैसे पार पाया जाए इसकी भी ट्रेनिंग देनी पड़ेगी, ये सभी हमारी जिम्मेदारी है। हमारे बच्चे कैसे सामाजिक कार्यों में भाग ले, सामुदायिक कार्यों में कैसे सहज महसूस करे, ये सभी सिखाने की बातें हैं।
घर में खड़ी साइकिल, बाइक वा कार को साफ करना सिखाएं, ये मै इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि आपको सफाई करने वाले नहीं मिलेंगे, बल्कि बच्चों में किसी भी वस्तु की केयर करने की आदत बनेगी। चीजों के रखरखाव की आदत विकसित होगी, अन्यथा हम जिन बाइक या कारों को या साइकिल को रोज उपयोग में लेते है परंतु उसकी सफाई शायद ही उसके जीवन काल में कर पाते है। अपने बच्चों को प्रश्न पूछना जरूर सिखाए अन्यथा वो दब्बू प्रवृत्ति को ग्रहण करेंगे। प्रिय पेरेंट्स मैं आप सभी निवेदन करता हूँ कि आप अपने बच्चों को तैरना सीखने के लिए जहां भी ले जाना पड़े, उसे तैरना जरूर सिखाओ। तैरेंगे तो भव सागर को भी पार कर लेंगे।
जय हिंद, वंदे मातरम
