मैं भी नशा छोड़ना चाहता हूँ, मैं भी नशे से दूर रहना चाहता हूँ, लेकिन कोई युवा मन की बात भी तो सुनो
I also want to quit addiction, I also want to stay away from addiction, but someone please listen to the voice of the young mind too

Mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
एक समय था जब शराब की दुकानें ऐसी जगह पर होती थी जो आम जन को शायद ही दिखाई पड़ती थी, एक छोटी सी कोठरी, जिसमें छोटी सी सर्विस विंडो और उसमें भी लोहे की रोड लगी हुई होती थी। जब कोई शराब खरीदने जाते थे तो जैसे सड़क क्रॉस करते वक्त लोग इधर उधर देखकर सड़क पार करते है उसी प्रकार शराब खरीदने की हिम्मत करते थे, लेकिन आज शराब खरीदने के लिए मॉलनुमा शराब की दुकानों में जाते है और शराब खरीदते वक्त इधर उधर नहीं देखते है बल्कि गर्व के साथ खरीदते है। रात रात भर शराब बियर बार चलते है,
लेकिन रात रात भर पुस्तकालय नहीं खुले रहते है, पहली बात तो पुस्तकालय है ही नहीं और अगर है तो वो निर्धारित समय में ही खुलते है, क्योंकि उनसे सरकार को कोई राजस्व नहीं मिलता है। पुस्तकालयों के लिए तो टाइम निर्धारित है, पर शराब बार के लिए कोई समय निर्धारित नहीं है। हम भी नशे की लत से दूर रहना चाहते है ऐसा हर युवा कहता है, हम भी किसी के बच्चे है, हमारा भी कोई सपना है, हमारा भी स्वस्थ जीवन जीने का मन है, अगर नशे की लत है तो उसको हम भी छोड़ना चाहते है। जिस समाज में नशे को सार्वजनिक रूप से बढ़ावा दिया जा रहा हो, उसमे नशे के विरुद्ध बड़े बड़े इवेंट करना बेमानी बात है।
हर स्थान पर बैठकर हुक्का पीते लोग मिल जाएंगे, जिसमें बड़ी संख्या में युवा ही होते है, शादियों में शराब पीने का चलन आम हो गया है, कोई बचे तो कैसे बचे? ये एक किशोर, एक युवा मन की पुकार है। सभी नशे की लत से दूर ही रहना चाहते है, सभी इस बीमारी से दूरी चाहते है लेकिन सरकार ये तय करें कि ये नशा अच्छा है या फिर खराब और अगर खराब है तो फिर इन हुक्का बार पर पाबंदी क्यों नहीं? फिर रात रात भर बार क्यों खुले रहते है? फिर स्कूल के पास क्यों बीडी सिगरेट की दुकानें खुलती है, गांवों में गैरकानूनी रूप से राशन की दुकानों पर शराब बिकती है, हर गांव में शराब के ठेके क्यों खोले जाते है? एक किशोर वा युवा भी चाहता है कि उनका भी करियर बेहतरीन बनें, वो भी डॉक्टर इंजीनियर बने, वो भी स्वस्थ जीवन जिए, वो खेलो में अपना अच्छा भविष्य बनाएं, लेकिन चारों ओर ऐसा वातावरण जहां किसी भी बच्चे को नशे की ओर खिंचाव की कौशिश की जा रही हो, वो कैसे बच पाएंगे।
क्या कभी कोई उनके मन की बात सुनता है, शायद कोई ध्यान भी नहीं देता है, उन्होंने ने तो नहीं कहा कि हर चौक चौराहों पर शराब की दुकान खोली जाएं, उन्होंने ने तो नहीं कहा है कि समाज में किसी प्रकार के नशे की सप्लाई हो, लेकिन फिर भी होती है। कोई भी बच्चा नहीं कहता है कि शादियों में खुलेआम शराब पी जाए, कोई भी किशोर नहीं चाहता है कि हर शादी में बड़े बड़े हुक्के रखे जाए, लेकिन फिर भी रखे जाते है। कोई भी युवा या किशोर नहीं चाहते कि उनके गांव की एंट्री पर ही शराब का ठेका खुल जाए, फिर भी ऐसा होता है। हर गांव में ठेके तो खुल सकते है लेकिन पुस्तकालय नहीं खुल सकते यही नई रीत तो हमारी नई पीढ़ी को नशे की ओर धकेल रही है। युवाओं के मन की बात सुनो, किशोरों की मन की बात सुनो,
तभी नशा खत्म होगा। युवा का मन कहता है कि अब जागरूकता की नहीं बल्कि कार्यवाही की जरूरत है, यहां केवल जागरूकता इवेंट करने पर तो लाखों खर्च किए जाते है लेकिन उनसे व्यक्तिगत रूप से कोई बात करना नहीं चाहता, कोई उनके मन की बात नहीं सुनना चाहता है। किशोरावस्था हर किसी के जीवन में आती है, पूरे जीवन को पटरी से उतारने की कोशिश करती है, कुछ ऐसे माहौल में फंस जाते है जहां आसानी से कोई भी खराब आदत के शिकार हो जाते है और कुछ को ऐसा माहौल मिल जाता है कि वो अपने जीवन को संवार लेते है, कुछ नशे की ऐसी लत से ग्रस्त हो जाते है कि मौत से ही पीछा छूटता है। ऐसा नहीं है कि कोई बच्चा शौक से नशे में जाता है
वो नासमझी के कारण ऐसी लत पकड़ता है। अब समय आ गया है कि बड़े बड़े मैराथन करने की बजाय उस पैसे से हर गांव में स्पोर्ट्स वॉलंटियर रखे जाए, एक नहीं दस दस रखे जाए और स्पोर्ट्स का सामान उपलब्ध कराया जाए, जिससे हम अपने किशोर होते बच्चों को नशे के बारे में सोचने भी ना दें। भगवान श्रीकृष्ण जी ने गीता में कहा है कि हर व्यक्ति अपनी प्रकृति के अनुसार तीन प्रकार के गुण प्राप्त करते है लेकिन अगर उनको अच्छी संगत मिल जाए तो उसकी प्रकृति को धीरे धीरे बदला जा सकता है।
यही तो हम भी कहते है कि अब समय है कि किशोरों को नशे से बचाने के लिए नशे की दुकानें नहीं, ठेके नहीं, बार नहीं, हुक्का बार नहीं, बल्कि पुस्तकालय, खेल के मैदान, मैदान में खेल के सामान तथा खिलाने के लिए ट्रेनर्स, संस्कार शालाओं की जरूरत है। जो ऊर्जा नशे में बह जाती है उस ऊर्जा से राष्ट्र के लिए गोल्ड मेडल लाए जा सकते है, उस ऊर्जा से देश की जी डी पी बढ़ाई जा सकती है, उस ऊर्जा से देश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ाई जा सकती हैं। आओ मिलकर किशोरों व युवाओं के मन की बात सुने और उन्हें सही दिशा प्रदान करें।
जय हिंद, वंदे मातरम