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भारत देश वासी सोने के बर्तनों से कागज तथा प्लास्टिक तक पहुंच गए, क्योंकि सेहत हमारे लिए सबसे नीचले पायदान पर

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 भारत देश वासी सोने के बर्तनों से कागज तथा प्लास्टिक तक पहुंच गए, क्योंकि सेहत हमारे लिए सबसे नीचले पायदान पर
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने आज अपने लेख में बताया है कि भारत देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था, यह धरती ऋ षि मुनियों की भूमि रही है। यहीं पर योग, सांख्य , चिकित्सा, सर्जरी, विमान शास्त्र , श्रीमद्भागवत गीता जैसे महान ग्रंथ लिखे गए। इस धरती ने विश्व को सभ्यता सिखाई, इस भूमि पर शून्य का जन्म हुआ। हमारे ऋषियों ने लोगों को जीना सिखाया, लेकिन अब क्या हो गया है कि हम अपनी लिगेसी को भूलते जा रहे हैं। भारतीय धरा सदा से हर प्रकार से उर्वरक रही है, चाहे वो खेती के लिए हो, चाहे वो शास्त्रों की रचना, या फिर किसी भी प्रकार की नई शोध के लिए हो , या मानव मूल्यों के संरक्षण, चाहे नैतिक मूल्यों के संरक्षण के लिए हो, चाहे विभिन्न प्रकार के मिनरल हो, चाहे क्लाइमेट के हिसाब से हो, हमारी भारत भूमि समृद्धशाली रही हैं। 

इसीलिए समय के वक्तवक्तपर काल खंड में विदेशी आक्रांताओं ने भारत की भूमि पर आक्रमण करने का प्रयास किया, क्योंकि पृथ्वी के अलग अलग उपमहाद्वीप में ना तो सभ्यता थी, ना खाने पीने के लिए भोजन उपलब्ध होता था, ना ही लोगों को जीवन जीने का सलीका था। भारत भूमि की तरफ आक्रांता इसीलिए आते थे कि उन्हे यहां लूटने के लिए ही यहां खूब धन संपदा दिखती थी। हमारी धरती इसीलिए सोने की चिड़िया कही जाती थी। अगर आप वैदिक काल में जाओगे या उससे भी पहले की बात करेंगे तो ऐसा कहा जाता है कि लोग भोजन के लिए सोने के बर्तन उपयोग करते थे। 


उसके बाद के काल खंडों में  लोग अपने घरों में चांदी के बर्तन रखते थे। उनके घरों में खाने पीने के बर्तन या पकाने के बर्तन भी चांदी के होते थे। अभी भी कुछ घरों में चांदी के बर्तन उपयोग किए जाते हैं। हम अगर अपने बचपन की बात करें तो कांसे तथा ब्रास के बर्तन सभी घरों में काम में लाए जाते थे। मुझे बहुत अच्छी तरह याद है कि हर भारतीय के घरों में खाने वा बनाने के बर्तन पीतल तथा कांसे के होते थे, या फिर दूध आदि गर्म करने किए हमारे घरों में मिट्टी के बर्तन होते थे। 

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जैसे दूध के लिए कढ़ावनी, बिलोवनी, जिसमे जमाए हुए दही को बिलोया जाता है। हमने जैसे जैसे प्रगति की और हमारे घरों से पीतल तथा कांसे के बर्तन बिलकुल हट गए हैं, इसका मुख्य कारण हमारे लोगों में स्वास्थ्य के प्रति घटती जागरूकता है। ग्रामीण लोगों को एल्मूनियम के नाम पर ऐसा बहकाया गया, कि ये एल्मूनियन के बर्तन बहुत अच्छे है, ये स्टील के बर्तन बहुत अच्छे हैं। मुझे ताजूब होता है कि जब हम छोटे होते थे तो ये अभियान चला , जिसमे हमारे घरों में पीतल वा कांसे की जगह एल्मूनियम ले रहा था। हर घर से पीतल तथा कांसे के बर्तन कौड़ियों के भाव खरीदे नही बल्कि लूटे जा रहे थे, मुझे आज भी याद है कि किसी भी स्वास्थ्य से जुड़े कर्मी, अधिकारी या फिर चिकित्सको ने कभी नही चेताया कि तुम ये बर्तन मत बेचो। और जो एलमुनियम के बर्तन हमारे खाने पीने तथा खाना बनाने के उपयोग में शुरू हुए, उसके लिए भी हमारे भारतीय स्वास्थ्य विभाग वा डॉक्टर्स ने कभी नही अवेयर किया या चेताया। 


एल्मूनियम के कूकर, कढ़ाई, कटोरियां, थाली आदि सब हमारे घरों में शामिल हो गए, लेकिन भारत के किसी देशभक्त डॉक्टर्स ने चेतावनी नही दी। आज अगर हम सर्वे करे तो अधिकतर भारतीयों के घरों से कांसे के बर्तन गायब हो गए, पीतल के बर्तन गायब हो गए,पीतल के गिलास, कढ़ाइयां पूरी तरह से चलन से बाहर हो गई। हमारे बच्चें, आज एल्यूमीनियम के बर्तनों में बना खाना खाने को मजबूर है। हम यहां भी नही रुके और पहुंच गए प्लास्टिक की प्लेट, प्लास्टिक के गिलास, पानी की प्लास्टिक बोतल, चाय पीने के लिए प्लास्टिक के गिलास भी हमारे खाने पीने के बर्तन के रूप में सम्मिलित हो गए, परंतु इतना होने के बाद भी हमारी जिला , राज्य तथा राष्ट्रीय स्तर पर कार्य कर रहे सेहत विभाग के अधिकारियों ने कभी लोगों को नही चेताया। आजकल तो बहुत से चाय की दुकान वाले प्लास्टिक की थैलियों में गर्म चाय देने का काम कर रहे है, जिससे उपयोग करने वालों को कैंसर जैसी बीमारी हो सकती हैं। हमारे देश में जितने भी होटल , रेस्टुरेंट है वो प्लास्टिक के डब्बों में गर्म सब्जियां पैक करके लोगों को बीमार करने का कार्य कर रहे है परंतु कोई भी आम जन को समझाने, जानकारी देने की जिम्मेदारी नहीं लेते हैं। कुछ लोग इन चीजों के लिए जागरूकता के कार्यक्रम चला रहे हैं। परंतु इससे ज्यादा लाभ मिलता नही हैं। हम प्लास्टिक के बर्तनों तक भी नही रुके और हम पहुंच गए है कागज के बर्तनों तक। वर्तमान में लोग घरों में, शादी विवाह में, अन्य कार्यक्रमों में कागज के निम्न स्तर के बर्तनों में खाना खा रहे हैं। जो गिलास तथा प्लेट निम्न स्तर के ग्लू से चिपकाकर हमारे सामने खाने के बर्तन के रूप में आ जाते है, उनसे लोगों के स्वास्थ्य दिनों दिन गिरते जाते है।


 हमारी नई पीढ़ी के लिए स्वास्थ्य बिलकुल निचले स्तर पर आ गया है, ना तो हम खाने की चीजों पर ध्यान  देते है, ना ही बर्तनों पर ध्यान देते है, तथा ना ही हम विरुद्ध फूड के बारे में जानकारी रखते हैं। मनुष्य जीवन ही नही, इस प्लास्टिक से हमारे पशु, हमारी गाय जो भारतीय सस्कृति में माता के समान है, वो भी नही बची है। मैं यहां एक बात सभी चिकित्सको तथा सरकारों से कहना चाहता हूं कि क्या हमे मानव जीवन के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रखना चाहिए ? बिलकुल रखना चाहिए। लेकिन यहां मेरा मानना है कि हमारे स्वास्थ्य के क्षेत्र जो है वो हमारी ही जिम्मेदारी है। हमे ही अपने खानपान, उसमे उपयोग होने वाले खाद्य पदार्थ, पकाने वाले बर्तन, खाने वाले बर्तन का ध्यान रखना होगा और हमे अपने बर्तनों में चांदी सोने को तो शामिल नही कर सकते है लेकिन हम अपने बर्तनों में पीतल, तांबे तथा कांसे को तो आराम से शामिल कर सकते हैं। हम प्लास्टिक के बर्तनों का त्याग तो कर ही सकते है ना, 


हम एल्यूमीनियम तथा कागज के बर्तनों में खाना पीना बंद कर देंगे, तो हम अपने स्वास्थ्य को एक पायदान ऊपर लेकर आ सकते हैं। क्या हम अपने शादी विवाह या अन्य सार्वजनिक कार्यक्रमों में हमे प्लास्टिक और कागज पर बैन लगाना होगा। सभी कैटरर्स को अपने पकाने वाले बर्तनों से एल्यूमिनियम को हटाना होगा, खाने वाले बर्तनों से प्लास्टिक तथा कागज को भी बाहर करना होगा। आओ मिलकर भारतीय संस्कृति के बर्तन पुन: लौटाएं।
जय हिंद, वंदे मातरम