भगवान श्रीकृष्ण की कथा अथवा भागवत कथा कहने के लायक कितने लोगों का चरित्र है, उसे जानने की जरूरत

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It is necessary to know how many people's character is worthy of telling the story of Lord Krishna or Bhagwat Katha

mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर

आजकल हमारे देश में ऐसे संतो की बाढ़ सी आ गई है जो देखने से भी संत नहीं लगते है, जिनका कोई जीवन का अनुभव भी नहीं है, उनकी सभी बातें भी लगभग वेद विरुद्ध ही होती है। कोई चमत्कार करके लोगों की पर्चियां निकालकर आमजन की समस्याओं को सॉल्व करने का पाखंड कर रहे है, कोई विभिन्न प्रकार की चटनियां खिलाकर भोले भाले लोगों को ठग रहे है, कोई भीड़ में कुचलने को मोक्ष मिलने की बात कर रहे है,

कोई जातिवाद की बात कर रहे है, कोई भगवान कृष्ण की कथा के नाम पर लोगों को नचा रहे है, कही पर वी आई पी दर्शन करा रहे है। कोई अपने वेद, उपनिषद या श्रीमद्भगवद् गीता का भी अलग अर्थ निकाल रहे है। एक संत कह रहे हैं कि ब्राह्मणों में भी बहुत से निम्न श्रेणी में आते है, कोई अपने ही शास्त्रों का उलंघन कर रहे है और मन माने ढंग से अपना पाखंड फैला रहे है।  कुछ लोग आम लोगों को पैरों में काले धागे बांधने, नींबू मिर्ची बंधवा रहे है, कुछ लोग सभी में भय पैदा करने का कार्य करते है अगर ऐसा नहीं किया तो फिर भूत प्रेत अथवा कुछ नागेटिव ऊर्जा परेशान करेगी।

अरे भाई ऊर्जा पॉजिटिव नेगेटिव दोनों सदा से ही रही है और रहेगी। खैर छोड़िए, हम भी कौन सी बात कर रहे है क्योंकि हमे तो भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की कथा कहने या करने के लिए विशेष महत्व पर चर्चा करना चाहते है। मैं एक बहुत ही खास बात आप सभी के सामने रखना चाहता हूँ कि जब हम किसी महापुरुष की बात करते है तो इसमें यह बात सबसे बड़ी होती है कि उन महापुरुषों या जिसे हम भगवान का दर्जा देते है उनकी कथा या गाथा कौन कर सकता है क्योंकि इसमें तो जो व्यक्ति कथा कहता है उसका मेंटल स्टेटस कैसा है, उनकी सोचने समझने की शक्ति कैसी है, उन्होंने श्रीकृष्ण या श्रीराम के चरित्र को कैसे समझा है या कभी जीने का प्रयत्न किया है।

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जैसी उसकी मानसिक स्थिति होगी, उसी तरह से तो वो दूसरे के जीवन को पढ़ेंगे तथा पढ़ाएंगे। यहां तो वर्तमान में ऐसे ऐसे संतो की बाढ़ सी आ गई, जिन्हे ना तो आध्यात्मिक ज्ञान है, ना वेदों का ज्ञान है, न किसी शास्त्र का ज्ञान है। मैं ऐसा क्यों कह रहा हूँ, क्योंकि किसी भी कथा वाचक की सोच के स्तर पर निर्भर करता है कि वो महापुरुष के जीवन को कितना समझते है, किस शब्द का क्या अर्थ है, क्योंकि संस्कृत के ज्ञान बिना शब्दों के अर्थ करना बड़ा मुश्किल कार्य है। मैं यहां कुछ मुख्य विषय रखना चाहता हूँ जो समझने वा मंथन करने के है, जैसे:
1. कथा वाचक राधा शब्द से क्या समझते है?
2. माखन से क्या अर्थ लेते है, यह किस बात का सिंबॉलिक विज्ञान है?
3. रास लीला का क्या अर्थ समझते है, इसका क्या सिंबॉलिक अर्थ है?
4. कंश किस बात का सिंबल है, इसका क्या अर्थ है?


5. वेदांत में सागर किस बात का द्योतक है?
6. सुदर्शन चक्र किस अर्थ का सिंबल है, इससे कोई कथा वाचक क्या समझते है?
7. बांसुरी, गाय, पर्वत, गोपियां किस बात की सिंबल है, इससे आप क्या समझते है?
8. अर्जुन कौन है?
9. जिस रथ के सारथी भगवान कृष्ण है उसका का अर्थ है?
10. विष्णु के अवतार का क्या अर्थ है, क्या हर कथा वाचक इसे समझते है।
11. क्या कोई दूसरे धर्म कहो या पंथ कहो, उनमें उनके धार्मिक पुस्तक के विरुद्ध आचरण कर सकते हैं?


ये कुछ ऐसे प्रश्न है जिनका जबाव हर कोई अपनी चेतना, संवेदना, ज्ञान, शास्त्रीय ज्ञान, शिक्षा दीक्षा तथा तर्कशीलता के अनुसार ही दे पाएंगे, अन्यथा कहानी तो कोई भी सुना सकते है। यहां एक बात और क्लियर करने की जरूरत है कि विप्र का अर्थ विद्वान है, विप्र का अर्थ ब्रह्म को जानने वाले को कहते है, विप्र जिस भी श्लोक में आता है कुछ पाखंडी लोग उसे ब्राह्मण जाति से जोड़ लेते है, लेकिन सभी इसका अर्थ ब्राह्मण जाति ही समझते है। यही तो बुद्धिहीनता का प्रतीक है, जिन्हे इसका अर्थ भी नहीं पता है, वो कथा करने लायक नहीं है। आज मैं बहुत ही गंभीरता से लोगों को चेताना चाहता हूँ कि अगर आप भागवत कथा या श्री कृष्ण की कथा कराना चाहते है तो विद्वान ढूंढिए, अगर ये ब्राह्मणवाद जाति के तौर पर ऐसे चलता रहा तो समझ लो, कि ज्ञान तो इस भारत से विदा ही हो जाएगा।

एक बात सभी को समझ लेनी चाहिए कि विद्वान या विप्र सभी जातियों में विद्यमान है। अब समय आ गया है अगर धर्म की रक्षा करनी है तो सभी विद्वान महानुभाव आगे आएं चाहे वो किसी भी जाति से संबंध रखते हो, और ऐसे पाखंडियों को रोकने का कार्य करें जो समाज में वेद विरुद्ध बाते फैला रहे है, आम जन में भ्रांतियां फैला रहे है। सभी लोग विप्र का अर्थ समझें, पंडित का अर्थ समझे और ब्रह्म का अर्थ समझे। भाई ये कोई जाति नहीं है ये विद्वत्ता है जो हर जाति में मिलती है। यहां मैं एक बात विशेष रूप से कहना चाहता हूँ कि ये जातियां कभी खत्म होने वाली नहीं है, जिस प्रकार से जानबुझ कर इन्हें बढ़ाया जा रहा है, बस समझने की जरूरत है। अगर नहीं समझेंगे तो ऐसे ही शोषण होता रहेगा और लोग अपनी कष्ट कमाई, मेहनत की कमाई को ऐसे ही धूर्त लोगों पर लुटाते रहेंगे। जीवन में सजगता बेहद जरूरी है। स्वामी दयानंद सरस्वती जी ने कहा था कि पाखंडियों को जड़ से मिटाने की जरूरत है।

आचार्य, शास्त्री सभी जातियों में है, हम सभी को चाहिए कि अपने समाज से पढ़े लिखे लोगों को जो आचार्य है, जो शास्त्री है, जिन्होंने अध्यात्म को जाना है, जो सच्चे है उन्ही को अपने घरों में धार्मिक कार्यों के लिए बुलाया जाए, उन्ही के पास धर्म को जानने तथा समझने के लिए जाना चाहिए। उन्ही से भागवत कथा करानी चाहिए। साथियों, जो लोग अपने समाज के पढ़े लिखे आचार्यों को इग्नोर करके, दूसरे ढोंगी लोगों के चक्र में फंसते है, उनके यहां माथा टेकने के लिए जाते है और हजारों लाखों रूपये खर्च करते है, जो किसी चमत्कार के चक्र में फंसते है, उन्हें जागरूक बनने की जरूरत है। आप जिन आचार्यों या संतो को जानते है जो तुम्हारे है और ज्ञानी भी है, जो सच्चे है, उनसे ही नाम दान लेने की जरूरत है, क्योंकि कुछ पाखंडी लोग बेचारे भोले भाले लोगों को ठगने का कार्य करते है और फिर बाद में उन्हीं का शोषण करते है। एक बात सभी ध्यान में रख लें कि आज जो लोग दूसरी जातियों को नीचा दिखाने का कार्य कर रहे है,

दूसरे विद्वान लोगों को भी जाति के नाम पर अपमानित कर रहे है, ऐसे पाखंडियों को तजना ही ठीक है, क्योंकि अगर पढ़ लिखकर भी अपमानित होना है तो फिर ऐसे लोगों से बचना ही ठीक है। सभी के यहां पढ़े लिखे आचार्यों शास्त्री की कोई कमी नहीं है, अगर हम अपने पढ़े लिखे, जिन्होंने गुरुकुल से शिक्षा पाई है, उन्हें सम्मान नहीं देंगे तो फिर ऐसे ही अपमानित होना पड़ेगा। आओ मिलकर जागरूक बने और अपने सशक्त समाज का निर्माण करे, जिससे राष्ट्र सशक्त बनें।
जय हिंद, वंदे मातरम