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Khatu Shyam: बर्बरीक के सिर ने जब अपनी हंसी से रोक दिए थे युद्ध में रथ, जाने महाभारत की वो कहानी...

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Khatu Shyam: बर्बरीक के सिर ने जब अपनी हंसी से रोक दिए थे युद्ध में रथ, जाने महाभारत की वो कहानी... 
Khatu Shyam: हारे का सहारा, श्याम बाबा के द्वार खाटू श्याम में भक्तों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। Sikar में खाटू श्याम के अंदर दिनरात भक्तों की दर्शनों के लिए लाइन लगी रहती है। 

आपको बता दें कि शिरश्छेदित बोलते सिर की कहानी व्यास द्वारा रचित मूल महाभारत में नहीं है। इसके बावजूद लोककथाओं में वह अत्यंत लोकप्रिय धारणा है। ऐसी कहानियां Rajasthan से लेकर देश के कई राज्यों में फेली हुई है। जो आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल तक फैली हुई हैं। 

आपको बता दें कि तमिलनाडु में मान्यता है कि अर्जुन और उलूपी के बेटे अरावन का शिरश्छेदित सिर बोलता था। कुरुक्षेत्र के युद्ध के 7वें दिन कृष्ण ने पांडवों को चेतावनी दी कि युद्ध की देवी काली को किसी दोषरहित पुरुष की बलि चढ़ाए बिना वे युद्ध नहीं जीतेंगे। 

इसी को लेकर पांडव असमंजस में थे कि किसकी बलि चढ़ाई जाए। केवल कृष्ण और अर्जुन के शरीर दोषरहित थे। लेकिन उनकी बलि चढ़ाना अकल्पनीय था। अंतत: अरावन नामक योद्धा, जिनका दोषरहित बॉडी थी। अपनी बलि चढ़ाए जाने के लिए  राजी हो गये। लेकिन वे चाहते थे कि मौत से पहले उनका विवाह हो।

बताया जा रहा है कि पांडव, जो अरावन की बलि चढ़ाना चाहते थे, उनकी इच्छा पूरी करने के लिए बाध्य थे। चूंकि अरावन की अगले दिन मृत्यु निश्चित थी, इसलिए किसी भी औरत ने उनसे शादी करने से इंकार कर दिया। अंतत: कृष्ण ने मोहिनी का रूप लेकर अरावन से विवाह किया और पांडवों की दुविधा दूर कर डाली। दोनों ने एक रात साथ बिताई। 

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तमिल परंपरा के मुताबिक अरावन शिव के रूप हैं और इसलिए उन्हें कूठंडावर कहते हैं। मोहिनी रूपी विष्णु से शादी करके वे सभी विपरीतलिंगी व्यक्तियों के दिव्य पति बन गए। अगली सुबह जब अरावन की बलि चढ़ाई गई तब मोहिनी उनका शोक मनाकर फिर से कृष्ण बन गईं। इस बलि से प्रसन्न होकर काली ने पांडवों को आश्वासन दिया कि युद्ध में उनकी ही विजय होगी। 

अरावन का उद्देश्य पूरा हुआ था और इसलिए सभी उन्हें भूल गए। मधुचंद्र की रात्रि उन्होंने मोहिनी से युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की थी। इसलिए बलि के पश्चात कृष्ण ने उनका कटा हुआ सिर एक लंबी नोंक पर रखकर उसमें प्राण फूंक दिया गया। इस प्रेक्षण स्थल से इस सिर ने अगले दस दिन तक युद्ध देखा। 

आपको बता दें कि एक और मान्यता के मुताबिक बर्बरीक नामक महान धनुर्धर का कटा हुआ सिर बोलता था। जब कृष्ण ने उन्हें बरगद के पेड़ पर सभी पत्तों में एक ही बाण से छेद करने के लिए कहा गया।

इसके बाद तब बर्बरीक ने पेड़ के पत्तों सहित उन पत्तों में भी छेद कर दिए, यही नहीं जो कृष्ण ने तोड़कर अपने पैर के नीचे रखा हुआ था।  आंध्रप्रदेश की लोककथाओं के मुताबिक बर्बरीक भीम के पुत्र घटोत्कच के बेटे थे।

बर्बरीक को वरदान मिला था कि जब तक वे बलहीन की ओर से लड़ेंगे, तब तक वे अपराजेय रहेंगे। इसलिए, जब वे कुरुक्षेत्र के युद्ध में लड़े तब युद्ध ने कोई निर्णायक मोड़ नहीं लिया। यह इसलिए कि जब भी कोई पक्ष निर्बल हो जाता था, तब बर्बरीक की सहायता से उसका फिर से वर्चस्व हो जाता था। 

इसे रोकने हेतु कृष्ण ने बर्बरीक से मिलकर उनसे मदद मांगी। बर्बरीक सहायता मांग रहे किसी व्यक्ति को नकार नहीं सकते थे। कृष्ण ने बर्बरीक की आंखों के सामने एक आईना रखते हुए उनसे कहा कि 'यह व्यक्तिÓ उन्हें आतंकित कर रहा है।

इसी दौरान उन्होंने बर्बरीक से इस व्यक्ति के सिर को उसके धड़ से अलग करके उस आतंक को रोकने का अनुरोध किया। अपने आप का शिरश्छेदन करने के अतिरिक्त बर्बरीक के पास कोई चारा नहीं बचा था। लेकिन ऐसा करने से पहले उन्होंने कृष्ण से अपनी आखिर इच्छा व्यक्त की। वह युद्ध देखना चाहते थे।

बताया जा रहा है कि कृष्ण ने उनकी इच्छा को स्वीकार कर बर्बरीक के कटे हुए सिर को नोंक पर रखकर उसे जीवित कर दिया। महाभारत के सभी नायक अगर मिल जाएं, तब भी वे बोलने वाले सिर से कम शक्तिशाली हैं।

एक दंतकथा के मुताबिक युद्ध के वक्त किसी की कोलाहलपूर्ण हंसी ने अर्जुन के रथ को पीछे ढकेल दिया था। अर्जुन को आश्चर्यचकित देखकर कृष्ण ने उन्हें बताया था कि वह हंसी बर्बरीक की थी।

इस दौरान उन्होंने समझाया कि बर्बरीक इतने शक्तिशाली धनुर्धर थे कि वे अपने तरकश में केवल 3 बाण रखते थे- वे पहले बाण से कौरवों का, दूसरे बाण से पांडवों का और तीसरे बाण से स्वयं कृष्ण का नाश कर सकते थे।

कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कैसे उन्होंने चालाकी से बर्बरीक का सिर काट दिया था, ताकि वे युद्ध को प्रभावित न कर सके। इसलिए बर्बरीक को मात्र अपनी हंसी से युद्ध में हस्तक्षेप करते देखकर कृष्ण चिढ़ गए थे। 

उन्होंने बर्बरीक का सिर पहाड़ के शिखर से नीचे लाकर तल पर रख दिया गया, ताकि उनकी हंसी किसी रथ को न रोक पाए।