भगवान श्री हनुमानजी, सेवा के सबसे बड़े प्रतीक है, सभी मनुष्य श्री बजंगबली से सेवाभाव सीखने की जरूरत
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
ने अपने लेख में बताया है कि "जानी राम सेवा सरस, मन हि किन अनुमान। पुरखा से सेवक भयो, हर से भये हनुमान।।" कहते है श्री हनुमान जी भगवान शिव के अवतार है। हनुमान जी ने श्रीराम की सेवा को ही सबसे सुंदर माना था, तभी तो ईश्वर से सेवक बन गए तथा महादेव शिव से हनुमान बन कर श्रीराम की सेवा में हाजिर हुए तथा धरती को असुरों से मुक्त कराने की ठानी। इसी लिए उन्हें महावीर बोला जाता है। जब असुरों का प्रभाव अधिक बढ़ गया था तभी महादेव, महावीर के रूप में श्री राम जी की सेवा हेतु प्रकट हुए।
जब हम श्री रामचरित मानस या रामायण को पढ़ते है तो इसमें एक ही चरित्र ऐसा मिलता है जो सदैव सेवक की भूमिका में रहे। वो साक्षात् हर हर महादेव के अवतार है। हम श्रीरामचरित मानस में अगर विभीषण को देखें तो उन्हें सेवा के बदले में श्रीलंका का शासन मिला। वानर राज सुग्रीव को भी बाली को मारने के उपरांत किष्किंधा का राज मिला। केवट को भी भगवान श्रीराम का आशीर्वाद मिला। अहिल्या के पत्थर अभिशापित शरीर को भी श्रीराम का स्पर्श मिलते ही मानव शरीर मिलता है। मां शबरी को भी तो श्रीराम के दर्शन से साक्षात् आशीर्वाद मिला। श्री हनुमान जी ने, साक्षात् महादेव के अवतार के रूप में होते हुए भी श्रीराम जी से कुछ नहीं मांगा, जब कि हनुमान ने श्री लक्ष्मण जी का जीवन संजीवनी बूटी लाकर बचाया था, श्रीराम तथा श्री लक्ष्मण जी को पाताल लोक से अपने कंधों पर बैठा कर लाए थे। मां सीता का पता लगाने श्रीलंका में रावण के सामने उत्साह से खड़े रहे थे, और पूरी लंका में आग लगा दी थी। नाग फांस से छुड़ाने में मदद की। लेकिन इतनी सेवा के बदले में भी भगवान श्रीराम से कुछ नहीं मांगा था, इसी को तो कहते है निस्वार्थ सेवा। श्री हनुमान जी ने सदैव अपने को श्रीराम के चरणों में ही स्थान दिया है। मैं यहां एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूँ कि जब राष्ट्र पर या समाज पर बहुत बड़ी विपदा आती है तो फिर वो ही लोग सहायता कर सकते है जो निस्वार्थ हो। जब देवताओं पर असुर भारी पड़ने लगे थे तब भी महादेव शंकर ने कहा था कि ऐसी परिस्थितियों में बड़े पद की लालसा रखने वाले महानुभाव सहायक नहीं बन सकते, क्योंकि उन्हें सबसे पहले अपने पद की चिंता होती है। तो भगवान शिव ने कहा था कि ऐसी स्थिति में महादेव के अवतार की आवश्यकता होती है। कहते है कि" ऊंच निवास नीच करतूति, देख सके ना पराई विभूति" अर्थात जो जितने बड़े पद पर रहते है, जितने बड़े घर में रहते है, उन्हें सबसे अधिक अपने धन वा अपने पद की ही चिंता होती है जो दूसरों का भला होते नहीं देख सकते हैं। श्री हनुमान जी ही थे,
जिन्होंने सब कुछ छोड़कर श्रीराम के लिए अपना जीवन नौछावर कर दिया था। वो हर हर महादेव के प्रतिरूप थे, परंतु सब कुछ मर्यादा की स्थापना के लिए, कर्तव्य की स्थापना के लिए, सभ्यता की स्थापना के लिए खुद को भूलकर श्रीराम के हो गए थे। मैं यहां इसी लिए कह रहा हूँ कि श्रीहनुमान जी, सेवा के सबसे उच्च प्रतीक के रूप में हमारे सामने है, उन्होंने जब श्रीराम जी से कुछ नहीं मांगा था तो श्रीराम ने कहा था कि " प्रति उपकार करूं क्या तोरा, सम्मुख होय सके ना मन मोरा"।। अर्थात श्रीराम ने जब हनुमान जी को कुछ मांगने के लिए कहा था तो भी कुछ नहीं मांगने पर, श्रीराम ने कहा था कि तुम मेरे लिए सदैव सम्मानित रहोगे। जब हम हनुमान जी की सेवा की बात करते है तो उनसे बड़े सेवक इस दुनिया में नहीं मिलेगा। लोग हनुमान चालीसा तो खूब पढ़ते है, पाठ करते थे, मंगलवार को लोग उपवास भी करते है, श्री हनुमान जी के मंदिर में जाकर दर्शन करते है परंतु उनके दैवीय चरित्र से हम कुछ सीखने का प्रयास नहीं करते है। हनुमान जी सेवा के सबसे बड़े प्रतीक के रूप में हमारे दिलों में विराजते है। श्रीराम की जो सेवा उन्होंने की और सदैव उनके चरणों में बैठते रहे। हम सभी को श्री हनुमान जी के सेवाभाव से कुछ तो सीखना चाहिए, जैसे ;
1. जो लोग अपने को श्री हनुमान जी के भक्त मानते है उन्हे अपने राष्ट्र समाज की सेवा में अपना जीवन लगाना चाहिए।
2. अपने मातापिता के चरणों में खुद को रखना भी तो हनुमान जी की सेवा ही तो है, उनसे प्रेम करना, अपने हृदय में सजाना भी तो श्रीहनुमान जी की सेवा है।
3. अपने गांव की, अपने शहर की , अपने समाज में स्वच्छता सेवा करना, जल संरक्षण करने की सेवा में अपना योगदान देना भी तो श्री हनुमान जी की सेवा ही तो है।
4. अपने मातापिता से प्रेम से बात करना, उनकी हर बात का सम्मान करना तथा उनकी सेवा में सदैव बिना किसी स्वार्थ के तत्पर रहना भी तो श्री हनुमान जी की सेवा है।
5. अपने बड़े बुजुर्गो के आदर सत्कार के लिए उनकी सेवा में कुछ भी कार्य करने के लिए सदैव तत्पर रहना भी तो हनुमान जी के सेवा का प्रतीक हैं और उनके आदेशों का पालन करना भी तो श्री बजरंगबली की सेवा है।
6. अपने समाज के हर छोटे बड़े, अमीर गरीब जरूरतमंद लोगों का सहयोग करना, उनका सहारा बनना भी तो सेवाभाव ही है। जहां सेवा की जरूरत है वहां निस्वार्थ भाव से खड़े होने की हिम्मत जुटाएं।
7. अगर कोई भी व्यक्ति अपने को श्री हनुमान जी के भक्त के रूप में देखते है तो उन्हें अपने सेवा भाव को समाज वा राष्ट्र की सेवा में लगाना चाहिए। आपको अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार अपने समाज की सेवा करनी चाहिए।
8. निश्चल भाव से अपने दैवी संपद से भरे पूरे लोगों की सेवा करनी चाहिए। जीवन में अगर श्रीहनुमान जी की कृपा चाहते हो तो उन महानुभावों की निस्वार्थभाव से सेवा करों, जिनका तुम्हारे जीवन में, समाज की बेहतरी में तथा राष्ट्र की सेवा में योगदान रहा है।
9. एक सबसे महत्वपूर्ण बात जो हम सभी को अपने चरित्र में उतारनी चाहिए, जो सेवा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है वो है खुद को चारित्रिक रूप से सशक्त रखना, जिससे कभी भी अपने सेवा के वचन से विचलित ना हो पाएं, क्योंकि हनुमान जी ब्रह्मचर्य के प्रतीक भी तो है।
मुझे ऐसा लगता है कि वर्तमान में जनसाधारण को यह भी बताने की जरूरत है कि जो हमारी पवित्र पुस्तकों में लिखा है, केवल उसे पढ़ने या पाठ करने से काम नहीं चलेगा, उन्हें अपने जीवन में उतारने की जरूरत भी होती है, जिसे हम कुछ लोगों के पाखंडवश भूल गए है। हमारे सामने जो हमारे पूर्वज देवी देवताओं के रूप में एक विशेष शक्ति को धारण किए हुए है, उसे हमे भी अपने हर कर्म में दर्शाना होगा अन्यथा फिर तो ये केवल कर्मकांड ही होगा। अगर हमारे पूर्वजों का स्तर इतना श्रेष्ठ था तो फिर हमारा जीवन भी उस श्रेष्ठता तक पहुंचना चाहिए। आओ मिलकर अपने जीवन को श्री हनुमान जी द्वारा दिखाए गए सेवाभाव के अनुसार ढालने का अभ्यास करें।
जय हिंद, वंदे मातरम