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महाकुंभ : हर कुंभ 144 वर्ष बाद ही आता है, क्योंकि हमारी कुंभ ज्ञान परंपरा लाखों साल से चल रही है

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Maha Kumbh: Every Kumbh comes only after 144 years, because our Kumbh knowledge tradition has been going on for millions of years
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
डा. नरेंद्र यादव ने अपने लेख में बताया है कि भारतीय संस्कृति में ज्ञान परम्परा का एक विशेष एवं उच्च महत्व है, जिसे हर भारतीय को ही नहीं बल्कि विश्व भर के सभी नागरिकों को ध्यान देने की जरूरत है। महाकुंभ में श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या को देखते हुए इस विषय को विमर्श में लेना बेहद जरूरी है क्योंकि आम जन इस लिए इस बार के महाकुंभ में स्नान करना चाहते है कि उन्हें ऐसा ज्ञान कराया गया है कि ये पवित्र मुहूर्त 144 वर्ष बाद ही आता है तो हर किसी के मन में ये है कि हम भी इसका लाभ ले लें। इसमें आम जन की कोई गलती नहीं है , गलती है तो हमारी ज्ञान की परंपरा को संभालने वाले विद्वानों की है। मैं बहुत ही साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति हूँ तथा बहुत ही साधारण जीवन जीने वाला इंसान हूँ, मुझे भी ये अहसास होता है कि हर कुंभ ज्ञान का भंडार है। हम जब संगम की बात करते है तो गंगा, यमुना तथा सरस्वती का संगम मिलता है। संगम शब्द को दो शब्दों की संधि से बनाया है जिसमें सम + ग़म अर्थात समान रूप से गमन करना या जाना ही तो संगम है। दो या दो से अधिक नदियों के मिलने को भी संगम कहते हैं। अगर हम प्रयागराज की बात करें तो यहां गंगा, यमुना तथा सरस्वती नदियों के संगम हैं। यहां एक बात बहुत विशेष है वो सरस्वती के मिलन की है जिसमें सरस्वती का अर्थ ज्ञान से है। आपको यहां एक बात और समझनी है कि सरस्वती मां को नदियों की अधिष्ठात्री भी कहा गया है। प्रयागराज में ज्ञान का संगम होता है। वैसे संगम का मतलब ही यही है कि हम ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक स्थान पर इक्कठा हो। सरस्वती नदी, जिसे कहा जाता है कि वो विलुप्त हो गई है, क्या ये ज्ञान रूपी धारा तो नहीं थी जो धीरे धीरे खत्म होती जा रही है। अगर हम सरस्वती जी को ज्ञान के रूप में स्थापित करेंगे तो बेहतर होगा, क्योंकि हर संगम या समागम का अर्थ ज्ञान प्राप्त के लिए ही होता है। खैर हम इस विषय पर आ रहे है कि हर कुंभ के अगला वाला कुंभ, महाकुंभ ही होता है और 144 वर्ष बाद ही आता है। अगर हम इसकी स्टडी करें तो ये पाते है कि कुंभ का इतिहास लाखों वर्ष पुराना  है, अगर हम इसको, जैसा कुछ महानुभाव कहते है कि कुंभ उत्सव राजा हर्षवर्धन जी से शुरू होता है, उसे ही माने तो भी महाराजा हर्षवर्धन का जन्म 590 ईस्वी में हुआ और राजा हर्षवर्धन का शासन काल 606 से 647 ईसवी तक रहा है। इसका अर्थ ये यह हुआ कि वर्ष 606 ईस्वी से ही मान ले तो भी कुंभ के आयोजन का समय 1400 वर्ष से अधिक समय से मिलता है,
  वैसे  तो कहते है कि समुद्र मंथन से अमृत निकला था एवं वहीं से निकला अमृत की बूंद चार स्थानों पर गिरी और उन चारों स्थानों पर कुंभ का आयोजन शुरू हो गया , इसका अर्थ है कि ये लाखों समय पहले की बात है। चलो इस समय सीमा को तो हम छोड़ देते हैं, हम केवल राजा हर्षवर्धन के शासन काल से माने तो भी 144 वर्ष से तो अधिक हो गए हैं। मैं इसे अंक गणित के माध्यम से समझाना चाहता हूँ, जैसे मान लो 144 वर्ष पहले जो कुंभ आयोजित हुआ, उसके बाद इस बार का कुंभ, महाकुंभ के रूप में मनाया गया। अब आप देखिए जो कुंभ 132 वर्ष पहले आयोजित हुआ , 12 साल बाद उसके भी 144 वर्ष हो जाएंगे और वो भी महाकुंभ ही होगा। और इसी प्रकार अगले हर कुंभ 144 वर्ष बाद ही होंगे। सभी चारों स्थानों पर आयोजित होने वाले कुंभ भी महाकुंभ ही होंगे, यही बाद सभी आम जन को समझने की जरूरत है। वैसे तो ये ज्ञान कराना तो धर्म गुरुओं का काम है लेकिन धर्म गुरुओं में से कुछ को छोड़ कर सभी ऊलजलूल बाते कर रहें। मैं यहां ये कहना चाहता हूँ कि क्या ऐसे धार्मिक गुरु आम जन के लिए सही रास्ता बता रहे हैं। जब हम अपने कुछ स्वार्थों की वजह से धर्म की सही व्याख्या नहीं करते है तो वो धर्म के लिए सही पक्ष नहीं है। धर्म की परिभाषा, धर्म के लक्षण ही तो नैतिक सशक्तिकरण का रास्ता तय करते हैं। जीवन में मानवता को स्थापित करता है, जीवन में मानव मूल्यों की स्थापना होती है। 


मैं सभी आम जन को कहना चाहता हूँ कि आगे भी होने वाले कुंभ भी महाकुंभ होंगे और वो भी उतना ही लाभ देंगे। यहां कुंभ में स्नान करने से पहले अपने जीवन में मानव मूल्यों की स्थापना करें। अरे लोगों को इतना भी ज्ञान नहीं हैं कि अमावस्या का स्नान को महत्वपूर्ण है, पूर्णिमा को होने वाला स्नान क्यों महत्वपूर्ण हैं, मौनी अमावस्या का क्या मतलब है, मकर संक्रांति का स्नान का क्या महत्व है, बसंत पंचमी स्नान का क्या अर्थ है, महाशिव रात्रि के दिन के स्नान का क्या महत्व है? अरे ज्ञान के महोत्सव को भी कुछ महापखंडियों ने मनोरंजन का केंद्र बना दिया है। यहां ऐसे लोग न आवे जो इस ज्ञान के महोत्सव को केवल पिकनिक मनाने आ रहे हैं। मैं यहां सुझाव देना चाहता हूँ कि ये केवल स्नान का उत्सव नहीं है ये ज्ञान का उत्सव हैं। यहां अगर कोई ये कह दे कि कुंभ में जो स्नान नहीं करेंगे वो देश द्रोही माना जायेंगे तो क्या ये ऐसे उत्सव को दिशा भ्रमित करने जैसा नहीं है। 

भारत देश ज्ञान के मामले में विश्व को एक अलग रास्ता दिखाने वाला रहा है। हमारे यहां बहुत विद्वान महानुभाव हुए है, बड़े बड़े ऋषि मुनि हुए है जिन्होंने विश्व को पृथ्वी के संरक्षण, पर्यावरण के देखभाल, नदियों के संरक्षण, पेड़ पौधों की रक्षा, वनों की सुरक्षा, तथा मानव मूल्यों को स्थापित करने के सिद्धांत दिए है। ह्यूमन वैल्यू की स्थापना का जिम्मा महानुभावों के पास होनी चाहिए जो अपने को विद्वान कहते हैं। आओ मिलकर हम भारतीय ज्ञान की धारा को समझने के लिए अपनी आँखें खोलें तथा बुद्धि को भी खोलें। जीवन का उत्थान ज्ञान से होता है। अरे कुछ तो अपने शास्त्रों का ध्यान करो, अपने वेदों में दिए गए मंत्रों का भी विवेक से ध्यान करे ,जिसमें मैं यहां एक मंत्र का भी जिक्र करना चाहूंगा, जैसे " असतो मा सद्गमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्यृ मा अमृत गमय" अर्थात हमारे वेद मंत्र कहते है कि हमे असत से सत्य की तरफ ले चलो, अज्ञान से ज्ञान से ओर ले चलो, मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो, जिसका अर्थ साफ है कि हम ज्ञान के माध्यम से अपने जीवन को जन जन के लिए कल्याणकारी बनाएं। मानव जीवन बहुत महत्वपूर्ण है जो सभी को रास्ता दिखाने का कार्य करता हैं। आओ मिलकर जीवन को ज्ञान से भर लें और जीवन की एक एक गतिविधि कल्याणकारी  बनाएं। मैं यहां एक बात और कहना चाहता हूँ कि मानव जीवन में केवल स्नान से मोक्ष नहीं मिलेगा। मोक्ष केवल मोह के क्षय से ही मिलेगा। मोक्ष सर्वश्रेष्ठ जीवन का एक डेकोरेशन है जो जीवन में ही मिलता है मरने के बाद नहीं मिलेगा। जीवन में ज्ञान प्राप्त करने का अर्थ जानकारियां इक्कठी करना नहीं है बल्कि अपने विवेक का उत्थान , आत्मा का करना हैं। अपने भय से मुक्ति पाना, अपने क्रोध से मुक्त होना, अपने लालच से मुक्त होना, अपने लोभ से मुक्त होना, अपने अज्ञान से मुक्त होना, अपने स्वार्थ से मुक्त होना, अपने द्वेष जलन से मुक्त होना, अपने भीतर छुपे पक्षपात से मुक्त होना, अपने अन्याय से मुक्त होना, ही तो मोक्ष की प्राप्ति हैं। इसे सभी को समझने का प्रयास जन जन को करना पड़ेगा।
जय हिंद, वंदे मातरम

 

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