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महाराज सावन सिंह जी के जन्मोत्सव पर डेरा जगमालवाली में हुआ सत्संग का आयोजन, हम उस बादशाह के बेटे हैं, जिसने खंड-ब्रह्माण्ड बनाए : संत बिरेन्द्र सिंह

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On the birth anniversary of Maharaj Sawan Singh Ji, a satsang was organized at Dera Jagmalwali, we are the sons of the king who created the universe: Sant Birendra Singh
mahendra india news, new delhi

कालांवाली : मस्ताना शाह बलोचिस्तानी आश्रम, डेरा जगमालवाली के संत बिरेन्द्र सिंह जी ने रविवार को हुए सत्संग में कहा कि फ़कीर मालिक की रजा में राजी रहते हैं | ये दुनिया काल की है और यहाँ काल की हुकूमत चलती है | काल जीवों को भ्रमा देता है | सिर्फ संत काल के दुश्मन है | संत हमें अपने असली घर की याद दिलवाते है और काल नहीं चाहता कि कोई भी जीव उसके नियंत्रण से बाहर निकले | संतों के हुक्म से बाहर काल ही काल है | 

सत्संग में संत बिरेन्द्र सिंह जी ने फ़रमाया कि हम लोग घर बार भी छोड़ देते हैं | डेरे आकर रहने भी लग जाते हैं | सेवा और सिमरन भी करने लग जाते हैं | उसके बाद मन तरह तरह के चक्करों में डालना शुरू कर देता है | मन अलग-अलग पार्टियां बनानी शुरू कर देता है | इर्ष्या, निंदा और नफरत ये बिमारी अन्दर आनी शुरू हो जाती है | 

हम मालिक को तब याद करते हैं जब हम धार्मिक स्थानों पर जाते हैं | हमें मालिक को हर पल याद रखना चाहिए | उसका शुक्राना करते रहना चाहिए | लेकिन हम मालिक तो तब याद करते हैं, जब कोई दुःख आ जाता है | हम अपने स्वार्थ के लिए मालिक को याद करते हैं | हम लोग मालिक के साथ व्यापार करते है कि पहले आप मेरा ये काम करो फिर मैं प्रसाद बाटूंगा | लेकिन मालिक को बिना किसी इच्छा के याद करना चाहिये , क्योंकि जो हमारी किस्मत में लिखा है, हमें उतना ही मिलना है | हमने अनगिनत इच्छाएं पाल रखी है | हमें अपेक्षारहित जीवन जीना है | जितना मिला है, उसी में सब्र करना चाहिए | आगे फ़रमाया कि हम उस धन के पीछे भाग रहें हैं जो साथ नहीं जाएगा | जो धन साथ नहीं जाना है उसके पीछे हम आपस में लड़ाई कर रहे हैं | एक भाई दुसरे भाई का दुश्मन बना बैठा है | असली धन तो राम नाम का धन है | राम नाम का धन ही आगे हमारे साथ जाएगा | जो धन साथ नहीं जायेगा, उसके पीछे पागलों की तरह जिंदगी गँवा रहें है और जो धन साथ जायेगा, उसके बारे में विचार ही नहीं कर रहे हैं | ये जीवन सिमरन, बंदगी के लिए मिला है | 

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संत ने फ़रमाया कि तुम उस बादशाह का बेटे हो | जिसने खंड ब्रह्माण्ड बनाए हैं , लेकिन इंसान जमीन के छोटे छोटे टुकड़े, रुपयों के पीछे चोरी, ठगी कर रहें है | तुम इतना नहीं समझ रहे कि तुम बादशाह के बेटे हो |  तुम समुद्र के हकदार हो | अपनी सोच बड़ी रखो | इस दुनिया के अन्दर आकर यह रूह परमात्मा से बिछड़ गई | मारी मारी फिर रही है | हमने ढूंढना तो सतगुरु को था, लेकिन हम दुनिया के तुच्छ पदार्थो के पीछे लग गए | 

संत ने आगे कहा कि मालिक और हमारे बीच सिर्फ अहंकार का पर्दा है | अहंकार ने हमारी मिट्टी पलित कर रखी है | इस अहंकार और बुद्धि को छोड़ दो , मालिक की दया मेहर आनी शुरू हो जाएगी | संत इस दुनिया के अन्दर आते हैं और अपनी ड्यूटी पूरी कर के चले जाते हैं | जो फायदा उठा लेता है वो उठा लेता है बाकी खाली रह जाते हैं | संत इस दुनिया में ना तो कोई नया धर्म चलाने के लिए आते, ना जात-पात के झगडे करवाने के लिए आते हैं | वो तो जीवों को अपने घर की याद दिलवाने के लिए आते हैं कि तू पराये देश में पडा है | गुलाम हो रहा है, दुःख भोग रहा है | संत सिमरन बंदगी करने की याद दिलवाते रहते हैं | संत जीवों को समझाने में कोई कमी नहीं छोड़ते | 

संत बिरेन्द्र सिंह जी ने फ़रमाया कि माया के लिए बहुत से लोग कितनी चोरी करते हैं, डाकें डालते हैं, रिश्वत लेते हैं | इस माया के जाल से कोई नहीं बच पाया | धर्म के नाम पर कितनी ठगी हो रही हैं | उन्होंने कहा कि जितनी ठगी इस धर्म के काम में है , इतनी किसी दुसरे काम में नहीं है | ये काल का जाल ही ऐसा है, सब माया के चक्कर में लगे हुए हैं | लोगो को होश ही नहीं है |